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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 133 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 133/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अगस्त्य देवता - मेखला छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मेखलाबन्धन सूक्त
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    यां त्वा॒ पूर्वे॑ भूत॒कृत॒ ऋष॑यः परिबेधि॒रे। सा त्वं परि॑ ष्वजस्व॒ मां दी॑र्घायु॒त्वाय॑ मेखले ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम् । त्वा॒ । पूर्वे॑ । भू॒त॒ऽकृत॑: । ऋष॑य: । प॒रि॒ऽबे॒धि॒रे । सा । त्वम् । परि॑ । स्व॒ज॒स्व॒ । माम् । दी॒र्घा॒यु॒ऽत्वाय॑ । मे॒ख॒ले॒ ॥१३३.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यां त्वा पूर्वे भूतकृत ऋषयः परिबेधिरे। सा त्वं परि ष्वजस्व मां दीर्घायुत्वाय मेखले ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याम् । त्वा । पूर्वे । भूतऽकृत: । ऋषय: । परिऽबेधिरे । सा । त्वम् । परि । स्वजस्व । माम् । दीर्घायुऽत्वाय । मेखले ॥१३३.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 133; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    मेखना बाँधने का उपदेश।

    पदार्थ

    (याम् त्वा) जिस तुझको (पूर्वे) पहिले (भूतकृतः) सत्यकर्मी (ऋषयः) ऋषियों ने (परिबेधिरे) चारों ओर बाँधा था। (सा त्वम्) सो तू, (मेखले) हे मेखला ! (दीर्घायुत्वाय) दीर्घ आयु के लिये (माम्) मुझ में (परि) सब ओर से (स्वजस्व) चिपट जा ॥५॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य ऋषियों के समान कटिबद्ध होकर शुभकार्य करते हैं, वे ही कीर्तिमान् होते हैं ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(याम्) मेखलाम् (त्वा) (पूर्वे) पूर्वजाः (भूतकृतः) सत्यकर्माणः (ऋषयः) साक्षात्कृतधर्माणः (परिबेधिरे) बध बन्धने−लिट्, आत्मनेपदत्वं छान्दसम्। परिबद्धवन्तः (सा) (त्वम्) (परि) सर्वतः (स्वजस्व) ष्वञ्ज परिष्वङ्गे। आलिङ्ग (दीर्घायुत्वाय) चिरकालजीवनाय (मेखले) ॥

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    विषय

    दीर्घायुत्वाय

    पदार्थ

    १. हे (मेखले) = मेखले! (यां त्वा) = जिस तुझे (पूर्वे) = अपना पालन व पूरण करनेवाले (भूतकृता) = यथार्थ कर्मों को करनेवाले (ऋषयः) = वासना-बिनाशक [ऋषु to kill] तत्वद्रष्टा पुरुष (परिबेधिरे) = बाँधते हैं, (सा त्वम्) = वह तु (मां परिष्वजस्व) = मेरा आलिङ्गन कर, जिससे दीर्घायुत्वाय-मैं दीर्घजीवन को प्राप्त करनेवाला बनूं।

    भावार्थ

    मेखला धारण करनेवाला 'अपना पालन व पूरण करता है, यथार्थ कर्मों को करता है, वासनाओं का विनाश करता है, तत्त्वद्ष्टा बनता है, और इसप्रकार दीर्घजीवनवाला होता है।

    विशेष

    यह दृढ़निश्चयी पुरुष वासनाओं का विनाश करके शक्तिशाली बनता है, अत: "शुक्र: ' [शुक्रं वीर्यम् अस्य अस्ति इति शुक्रः] कहलाता है। यही अगले दो सूक्तों का ऋषि है।

     

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    भाषार्थ

    (याम् त्वा) जिस तुझ को (पूर्व) पूर्वकाल के, (भूतकृतः) सत्स्वरूप परमेश्वर द्वारा निर्दिष्ट कर्तव्य का पालन करने वाले (ऋषयः) ऋषियों ने (परि बेधिरे) कटि भाग के चारों ओर बांधा, (सा) वह (त्वम्) तूं (मेखले) हे मेखला ! (माम्) मुझे (परिष्वजस्व) कटिभाग के चारों ओर आलिङ्गित कर, (दीर्घायुत्वाय) मेरी दीर्घ आयु के लिये।

    टिप्पणी

    [पूर्व ऋषयः= पूर्व सृष्टि के ऋषि, या मुझसे पूर्वकाल के ऋषि। बेधिरे= निज ब्रह्मचर्य कालों में। दीर्घायुत्वाय= मेखला ब्रह्मचर्य को सूवित करती है। ब्रह्मचर्य से शरीर बलवान् और नीरोग होकर दीर्घायु वाला होता है। मेखला= तड़ागी, कटिबन्ध।] तपसा तपस् के सम्बन्ध में योगदर्शन में उल्लेख। यथा - नातपस्विनो योगः सिध्यति । अनादिकर्मलेशवासनाचित्रा मत्युपस्थितविषयजाला चाशुद्धिनान्तरेण तपः संभेदमापद्यत इति तपस उपादानस् । तञ्च चित्तप्रसादनमवाधमानमनेनासेव्यमिति मन्यते । (साधनपाद सूत्र १)। "अतपस्वी को योग सिद्ध नहीं होता। अनादि कर्मों और क्लेशों की वासनाओं से चित्रित, अत एव विषय जाल वाली अशुद्धि, विना तप के छिन्न-भिन्न नहीं हो सकती, इसलिये तप का कथन किया है। वह तप वहीं तक करना चाहिये जहां तक कि चित्त की प्रसन्नता बनी रहे।" तपः द्वन्द्व सहनम्। द्वन्द्वश्च जियत्सापिपासे, शीतोष्णे, स्थानासने, काष्ठमौनाकारमौने च (साधनपाद, सूत्र ३२ पर व्यास भाष्य)। काष्ठमौन= इशारे द्वारा भी निज अभिप्राय को प्रकाशित न करना। आकारमौन= वाणी द्वारा न बोलना। स्थानासने= खड़ा होना और बैठना]

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    विषय

    मेखला बन्धन का विधान।

    भावार्थ

    हे मेखले ! (यां त्वा) जिस तुझको (पूर्वे) ज्ञान में पूर्ण (ऋषयः) मन्त्रद्रष्टा ऋषिगण (परि बेधिरे) शरीर के चारों ओर बांधते हैं (सा) वह (त्वं) तू (मां) मुझे (दीर्घायुत्वाय) दीर्घायु, प्राप्त कराने के लिए (परि ष्वजस्व) लिपट, मेरे शरीर के सांथ आलिंगन कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्त्य ऋषिः। मेखला देवता। १ भुरिक्। २, ५ अनुष्टुभौ। ३, त्रिष्टुप्। ४ भुरिक्। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (मेखले यां त्वां भूतकृतः-ऋषयः-परिधिबेरे ) हे मेखला जिस तुझको सन्तनोत्पादक या प्राणियों के नियम बनाने वाले ब्रह्मा आदि ऋषियों ने निज कटि में बान्धा है (सा त्वं मां दीर्घायुत्वाय परिष्वजस्व) वह तू मुझे दीर्घायु की प्राप्ति के लिये सब ओर से पूर्णरूप से आलिंगन कर बन्धी रहो॥५॥

    विशेष

    ऋषिः—अगस्त्यः (अगः) = पाप को त्यागे हुये. अगः - त्यज ' डः, अन्येभ्योपि दृश्यते वा, अन्येष्वपि दृश्यते" (अष्टा० ३।२।१०१) देवता - मेखला (संयमनी रज्जु "कौपीन")

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahmachari’s Girdle

    Meaning

    O Girdle of discipline and celibacy which the creative Rshis, makers of men of noble action, tied round themselves, bind me too with love and faith to live a long life of health, honour and enlightenment.

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    Translation

    O you girdle (mekhala), whom the ancient seers, the creators of beings, girdled around then, may you,the same,embrace me for a long life.

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    Translation

    Let this girdle which primitive elements of the worldly creation, or the seers who are the maker of mankind by imparting knowledge tie around them, surround or encircle me and make me live long.

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    Translation

    Thou whom primeval Rishis (sages) girt about them, they who preached the Truth, as such do thou encircle me, O Girdle, for long days of life!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(याम्) मेखलाम् (त्वा) (पूर्वे) पूर्वजाः (भूतकृतः) सत्यकर्माणः (ऋषयः) साक्षात्कृतधर्माणः (परिबेधिरे) बध बन्धने−लिट्, आत्मनेपदत्वं छान्दसम्। परिबद्धवन्तः (सा) (त्वम्) (परि) सर्वतः (स्वजस्व) ष्वञ्ज परिष्वङ्गे। आलिङ्ग (दीर्घायुत्वाय) चिरकालजीवनाय (मेखले) ॥

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