अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 18
ऋषिः - मातृनामा
देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त
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यस्ते॒ गर्भं॑ प्रतिमृ॒शाज्जा॒तं वा॑ मा॒रया॑ति ते। पि॒ङ्गस्तमु॒ग्रध॑न्वा कृ॒णोतु॑ हृदया॒विध॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठय: । ते॒ । गर्भ॑म्। प्र॒ति॒ऽमृ॒शात् । जा॒तम् । वा॒ । मा॒रया॑ति । ते॒ । पि॒ङ्ग: । तम् । उ॒ग्रऽध॑न्वा । कृ॒णोतु॑ । हृ॒द॒या॒विध॑म् ॥६.१८॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्ते गर्भं प्रतिमृशाज्जातं वा मारयाति ते। पिङ्गस्तमुग्रधन्वा कृणोतु हृदयाविधम् ॥
स्वर रहित पद पाठय: । ते । गर्भम्। प्रतिऽमृशात् । जातम् । वा । मारयाति । ते । पिङ्ग: । तम् । उग्रऽधन्वा । कृणोतु । हृदयाविधम् ॥६.१८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
गर्भ की रक्षा का उपदेश।
पदार्थ
[हे स्त्री !] (यः) जो (ते) तेरे (गर्भम्) गर्भ को (प्रति मृशात्) दबा देवे, (वा) अथवा (ते) तेरे (जातम्) उत्पन्न [बालक] को (मारयाति) मार डाले। (उग्रधन्वा) प्रचण्ड धनुष् वाला (पिङ्गः) पराक्रमी पुरुष (तम्) उसको (हृदयाविधम्) हृदय में बरमे [से छेद] वाला (कृणोतु) करे ॥१८॥
भावार्थ
राजा भ्रूणहत्यारे और बालहत्यारे की छाती में वर्मा चला कर नष्ट कर देवे ॥१८॥
टिप्पणी
१८−(यः) घातकः (ते) तव (गर्भम्) भ्रूणम् (प्रतिमृशात्) प्रतिकूलं मृशेत्। स्पृशेत्। पीडयेत् (जातम्) उत्पन्नं बालकम् (वा) अथवा (मारयाति) मारयेत् (पिङ्गः) म० ६। पराक्रमी राजा (उग्रधन्वा) प्रचण्डचापः (कृणोतु) करोतु (हृदयाविधम्) आङ्+व्यध ताडने-घञर्थे क। हृदये आविधः काष्ठादिवेधनसाधनं सूच्याकाराग्रमस्त्रं यस्य तम्। आविधेन हृदये छिन्नम् ॥
विषय
पिङ्गः
पदार्थ
१. (य:) = जो रोगकृमि (ते) = तेरे (गर्भम्) = गर्भ को-गर्भस्थ सन्तान को (प्रतिमृशात्) = पीड़ित करे, (वा) = अथवा (जातम्) = उत्पन्न हुए-हुए (ते) = तेरे पुत्र को (मारयाति) = मार देता है, (तम्) = उसे यह (उग्रधन्वा) = उद्गुर्ण गतिबाला अथवा भंयकर धनुष से युक्त (पिङ्गः) = गौर सर्षप (हृदयाविधम् कृणोतु) = विद्ध [पीड़ित हृदयवाला] करे। यह सर्षप औषध देवता ही है, इसी से इसे यहाँ 'उग्रधन्वा' कहा है। यह उन गर्भविघातक कृमियों को हृदय में विद्ध करके नष्ट कर डालता है|
भावार्थ
योग्य वैद्य गौर सर्षप के प्रयोग से उन कृमियों को नष्ट करें, जो गर्भ में दोष उत्पन्न कर देते हैं।
भाषार्थ
(यः) जो (ते) तेरे (गर्भम्) गर्भस्थ शिशु को (प्रतिमृशात्) पीड़ित करे, (जातम्, वा) अथवा पैदा हुए (ते) तेरे बच्चे को (मारयाति) मार दे, (तम्) उसे (उग्रधन्वा) उग्र धनुष् वाला (पिङ्गः) पिङ्ग पुरुष [मन्त्र २१] (हृदयाविधम्, कृणोतु) हृदय में विद्ध कर दे।
टिप्पणी
[कामुक-पुरुष का वर्णन है, जो कि गर्भिणी के साथ बलात्कार कर के गर्भस्थ बच्चे को पीड़ित करता है, और संभोग के कारण कोई बच्चा पैदा होता है तो उसे मार देता है, ताकि भोगी का अपयश न हो। ऐसे पुरुष को बाण द्वारा हृदयाविध करा देना चाहिये। सायणाचार्य ने "पिङ्ग" का अर्थ किया है "पीतसर्षप"। इस अर्थ में मन्त्र के पूर्वार्ध में रोगकीटाणु का वर्णन कविता में जानना चाहिये]।
इंग्लिश (4)
Subject
Foetus Protection
Meaning
Expectant mother, whatever touches and violates your foetus, or whatever destroys your new born baby, let Pinga, the man of strength, or Pinga, the strong herb, wielding a powerful bow, pierce through the heart.
Translation
Whoever touches your embryo, or whoever kills your new-born - may the pinga (brown-one), formidable with bow, pierce him through the heart.
Translation
Let the Pinga (the herbaceous plant) which is as mighty as a man having bow pierce in the heart of germ which touches your fetus, O woman ! and which kills the child if born.
Translation
If one should injure the babe in thy womb, or kill thine infant newly born, the king with mighty bow shall pierce, him even to the heart.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१८−(यः) घातकः (ते) तव (गर्भम्) भ्रूणम् (प्रतिमृशात्) प्रतिकूलं मृशेत्। स्पृशेत्। पीडयेत् (जातम्) उत्पन्नं बालकम् (वा) अथवा (मारयाति) मारयेत् (पिङ्गः) म० ६। पराक्रमी राजा (उग्रधन्वा) प्रचण्डचापः (कृणोतु) करोतु (हृदयाविधम्) आङ्+व्यध ताडने-घञर्थे क। हृदये आविधः काष्ठादिवेधनसाधनं सूच्याकाराग्रमस्त्रं यस्य तम्। आविधेन हृदये छिन्नम् ॥
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