अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 5
ऋषिः - मातृनामा
देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त
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यः कृ॒ष्णः के॒श्यसु॑र स्तम्ब॒ज उ॒त तुण्डि॑कः। अ॒राया॑नस्या मु॒ष्काभ्यां॒ भंस॒सोऽप॑ हन्मसि ॥
स्वर सहित पद पाठय: । कृ॒ष्ण: । के॒शी । असु॑र: । स्त॒म्ब॒ऽज: । उ॒त । तुण्डि॑क: । अ॒राया॑न् । अ॒स्या॒: । मु॒ष्काभ्या॑म् । भंस॑स: । अप॑ । ह॒न्म॒सि॒ ॥६.५॥
स्वर रहित मन्त्र
यः कृष्णः केश्यसुर स्तम्बज उत तुण्डिकः। अरायानस्या मुष्काभ्यां भंससोऽप हन्मसि ॥
स्वर रहित पद पाठय: । कृष्ण: । केशी । असुर: । स्तम्बऽज: । उत । तुण्डिक: । अरायान् । अस्या: । मुष्काभ्याम् । भंसस: । अप । हन्मसि ॥६.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
गर्भ की रक्षा का उपदेश।
पदार्थ
(यः) जो [रोग] (कृष्णः) काला, (केशी) बहुत क्लेश वा बहुत केशवाला (असुरः) गिरानेवाला, (स्तम्बजः) बैठने के अङ्ग में उत्पन्न होनेवाला (उत) और (तुण्डिकः) कुरूप थूथन वा कुरूप नाभिवाला [है]। (अरायान्) अलक्ष्मीवाले [उन रोगों] को (अस्याः) इस [स्त्री] के (मुष्काभ्याम्) दोनों अण्डकोशों से और (भंससः) गुप्त स्थान से (अप हन्मसि) हम मिटाते हैं ॥५॥
भावार्थ
वैद्य लोग गर्भिणी स्त्री के मर्म स्थानों के कुरोगों की चिकित्सा करते रहें, जिससे बालक बलवान् और नीरोग हो ॥५॥
टिप्पणी
५−(यः) रोगः (कृष्णः) कालवर्णः (केशी) केश-इनि। क्लिशेरन् लो लोपश्च। उ० ५।३३। क्लिश उपतापे अन्। क्लेशी। यद्वा के मस्तके शेते, शीङ् शयने-अच्, अलुक्समासः। बहुबालयुक्तः (असुरः) असेरुरन्। उ० १।४२। असु क्षेपणे-उरन्। क्षेप्ता (स्तम्बजः) स्थः स्तोऽम्बजवकौ। उ० ४।९६। तिष्ठतेः। अम्बच्, स्तादेशः। स्तम्बे स्थित्यङ्गे जातः (उत) अपि च (तुण्डिकः) सर्वधातुभ्य इन्-उ० ४।११८। तुडि तोडने-इन्। कुत्सिते। पा० ५।३।७४। इति-क। कुरूपमुखः। कुत्सितनाभः (अरायान्) अलक्ष्मीकान् रोगान् (अस्याः) गर्भिण्याः (मुष्काभ्याम्) अण्डकोशाभ्याम् (भंससः) अ० २।३३।५। गुह्यस्थानात् (अपहन्मसि) विनाशयामः ॥
विषय
'अराय' पुरुष
पदार्थ
१. (यः कृष्ण:) = जो अति कृष्णवर्ण का है, (केशी) = बहुत अधिक बालोंवाला है-सब स्थानों पर बाल-ही-बालवाला है, (असुरः) = असुर-राक्षस-सा प्रतीत होता है, केवल प्राणपोषी [खाऊ-पीऊ] है (स्तम्बजः) = [स्तम्बेः जातः] जंगली-सा प्रतीत होता है, (उत) = और (तुण्डिक:) = कुत्सित मुखवाला है-इन सब (अरायान्) = अलक्ष्मीक पुरुषों को (अस्याः) = इस युवति के (मुष्काभ्याम्) = मुष्को से-अण्डकोषों से [व्यक्तं पुंसो न तु स्त्रिया:०] तथा (भंसस:) = कटिसन्धिप्रदेश से (अपहन्मसि) = दूर करते हैं।
भावार्थ
कृष्ण, केशी, असुर, स्तम्बज व तुण्डिक पुरुष स्त्री-सम्बन्ध के अयोग्य हैं।
भाषार्थ
(यः) जो (कृष्णः) काला (केशो) रोमों वाला, (असुरः) प्राणवान् अर्थात् शक्तिमान् [रोगकीटाणु है] (स्तम्बजः) झाड़ियों में पैदा हुआ (उत) तथा (तुण्डिकः) अल्पमुख वाला [रोगकीटाणु है]; (अरायान्) उन शत्रुरूप, अरातिरूप कीटाणुओं को (अस्याः) इस स्त्री के (मुष्काभ्याम्) दोनों अण्डकोशों से, (भंससः) तथा कटिप्रदेश [योनि] से (अप हन्मसि) हम अलग करते हैं और मार देते हैं।
टिप्पणी
[मुष्काभ्याम् = स्त्रियों के भी दो अण्डकोश होते हैं, परन्तु वे छिपे हुए, अनभिव्यक्तावस्था में रहते हैं। वे समय पाकर अभिव्यक्तावस्था में भी कभी-कभी प्रकट हो जाते हैं]।
इंग्लिश (4)
Subject
Foetus Protection
Meaning
The dark malignity, painful and debilitating, which affects the lower waist and the navel, such negativities we remove and root out from the ovaries and the womb of the woman.
Translation
That block, hairy spoilter of life, born in the trunk of the body, and also snouted one, - all these evil ones we drive away from her two ovaries and from-the perineum.
Translation
We drive away all the disease-germs including that which is black. Which is hairy, which is trouble-some, which is born in grass-shoots and effects knees etc and which has trunk in its mont, from the bosom, waist and the organ of the woman.
Translation
We keep away from the generative organ, and haunches of this girl, to preserve her hastity, a doer of dark deeds, a long-haired uncultured person, a glutton, a savage, a man ugly faced like a monkey, and all such ill-mannered, low-bred people.
Footnote
We' refers to parents and relatives. They should protect the chastity of the girl, and save her from falling into the clutches of debauchees.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(यः) रोगः (कृष्णः) कालवर्णः (केशी) केश-इनि। क्लिशेरन् लो लोपश्च। उ० ५।३३। क्लिश उपतापे अन्। क्लेशी। यद्वा के मस्तके शेते, शीङ् शयने-अच्, अलुक्समासः। बहुबालयुक्तः (असुरः) असेरुरन्। उ० १।४२। असु क्षेपणे-उरन्। क्षेप्ता (स्तम्बजः) स्थः स्तोऽम्बजवकौ। उ० ४।९६। तिष्ठतेः। अम्बच्, स्तादेशः। स्तम्बे स्थित्यङ्गे जातः (उत) अपि च (तुण्डिकः) सर्वधातुभ्य इन्-उ० ४।११८। तुडि तोडने-इन्। कुत्सिते। पा० ५।३।७४। इति-क। कुरूपमुखः। कुत्सितनाभः (अरायान्) अलक्ष्मीकान् रोगान् (अस्याः) गर्भिण्याः (मुष्काभ्याम्) अण्डकोशाभ्याम् (भंससः) अ० २।३३।५। गुह्यस्थानात् (अपहन्मसि) विनाशयामः ॥
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