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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 6

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 6/ मन्त्र 7
    सूक्त - उषा,दुःस्वप्ननासन देवता - द्विपदा साम्नी बृहती छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    ते॒ऽमुष्मै॒परा॑ वहन्त्व॒राया॑न्दु॒र्णाम्नः॑ स॒दान्वाः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । अ॒मुष्मै॑ । परा॑ । व॒ह॒न्तु॒ । अ॒राया॑न् । दु॒:ऽनाम्न॑:। स॒दान्वा॑: ॥६.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तेऽमुष्मैपरा वहन्त्वरायान्दुर्णाम्नः सदान्वाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते । अमुष्मै । परा । वहन्तु । अरायान् । दु:ऽनाम्न:। सदान्वा: ॥६.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 6; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    (ते) वे [ईश्वरनियम] (अमुष्मै) उस [कुपथ्यकारी] के लिये (अरायान्) क्लेशों, (दुर्णाम्नः) दुर्नामों [अर्श आदि रोगों] (सदान्वाः) सदा चिल्लानेवाली पीड़ाओं [रोग जिन में रोगीचिल्लाता है] ॥७॥

    भावार्थ - जो मनुष्य ईश्वरनियमको छोड़कर कुपथ्य करतेहैं, वे अनेक महाक्लिष्ट रोग भोगते हैं॥७-९॥

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