अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 6/ मन्त्र 5
सूक्त - उषा,दुःस्वप्ननासन
देवता - साम्नी पङ्क्ति
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
उ॒षा दे॒वी वा॒चासं॑विदा॒ना वाग्दे॒व्युषसा॑ संविदा॒ना ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒षा: । दे॒वी । वा॒चा । स॒म्ऽवि॒दा॒ना । वाक् । दे॒वी । उषसा॑ । स॒म्ऽवि॒दा॒ना ॥६.५॥
स्वर रहित मन्त्र
उषा देवी वाचासंविदाना वाग्देव्युषसा संविदाना ॥
स्वर रहित पद पाठउषा: । देवी । वाचा । सम्ऽविदाना । वाक् । देवी । उषसा । सम्ऽविदाना ॥६.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 6; मन्त्र » 5
विषय - रोगनाश करने का उपदेश।
पदार्थ -
(उषाः देवी) उषा देवी [उत्तम गुणवाली प्रभातवेला] (वाचा) वाणी से (संविदाना) मिली हुयी और (वाक् देवी)वाक् देवी [श्रेष्ठ वाणी] (उषसा) प्रभात वेला से (संविदाना) मिली हुयी [होवे]॥५॥
भावार्थ - जो मनुष्य प्रभातवेलाको सत्यवाणी के साथ और सत्यवाणी को प्रभातवेला के साथ संयुक्त करते हैं, अर्थात् जो प्रभात से लेकर दूसरी प्रभात तक सत्यवाणी से काम करते हैं, वे अवश्यसुखी रहते हैं ॥५॥
टिप्पणी -
५−(उषाः) प्रभातवेला (देवी) दिव्यगुणवती (वाचा) वाण्या सह (संविदाना) संगच्छमाना (वाक्) (देवी) (उषसा) प्रभातवेलया सह (संविदाना)संगच्छमाना ॥