अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 6/ मन्त्र 3
सूक्त - उषा,दुःस्वप्ननासन
देवता - प्राजापत्या अनुष्टुप्
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
द्वि॑ष॒तेतत्परा॑ वह॒ शप॑ते॒ तत्परा॑ वह ॥
स्वर सहित पद पाठद्वि॒ष॒ते । तत् । परा॑ । व॒ह॒ । शप॑ते । तत् । परा॑ । व॒ह॒ ॥६.३॥
स्वर रहित मन्त्र
द्विषतेतत्परा वह शपते तत्परा वह ॥
स्वर रहित पद पाठद्विषते । तत् । परा । वह । शपते । तत् । परा । वह ॥६.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
विषय - रोगनाश करने का उपदेश।
पदार्थ -
[हे उषा !] तू (तत्)वह [कष्ट] (द्विषते) [वैद्यों से] वैर करनेवाले के लिये (परा वह) पहुँचा दे, (तत्) वह (शपते) [उन्हें] कोसनेवाले के लिये (परा वह) पहुँचा दे ॥३॥
भावार्थ - जो मनुष्य वैद्यों केशासन पर नहीं चलते, वे शीघ्र दुःख भोगते हैं ॥३॥
टिप्पणी -
३−(द्विषते) वैद्येभ्यःकुप्रीतिकारिणे (तत्) कष्टम् (परा वह) दूरे गमय (शपते) शापं कुर्वते। अन्यत्पूर्ववत् ॥