अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 6/ मन्त्र 8
सूक्त - उषा,दुःस्वप्ननासन
देवता - आसुरी जगती
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
कु॒म्भीका॑दू॒षीकाः॒ पीय॑कान् ॥
स्वर सहित पद पाठकु॒म्भीका॑: । दू॒षीका॑: । पीय॑कान् ॥६.८॥
स्वर रहित मन्त्र
कुम्भीकादूषीकाः पीयकान् ॥
स्वर रहित पद पाठकुम्भीका: । दूषीका: । पीयकान् ॥६.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 6; मन्त्र » 8
विषय - रोगनाश करने का उपदेश।
पदार्थ -
(कुम्भीकाः)कुम्भीकाओं [रोग जिस में पेट बटलोही-सा बजता है], (दूषीकाः) दूषीकाओं [जिनरोगों में रोगी गिरता जाता है], (पीयकान्) अन्य दुःखदायी रोगों ॥८॥
भावार्थ - जो मनुष्य ईश्वरनियमको छोड़कर कुपथ्य करतेहैं, वे अनेक महाक्लिष्ट रोग भोगते हैं॥७-९॥
टिप्पणी -
८−(कुम्भीकाः)कुम्भी+कै शब्दे-क। कुम्भी उखेव कायन्ति शब्दायन्ते यासु ताः पीडाः (पीयकान्)पीयतिर्हिंसाकर्मा-निघ० ४।२५। क्वुन्। शिल्पिसंज्ञयोरपूर्वस्यापि। उ० २।३२।पीयति-क्वुन्। हिंसकान् रोगान् ॥