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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 7

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 7/ मन्त्र 10
    सूक्त - दुःस्वप्ननासन देवता - साम्नी गायत्री छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    यज्जाग्र॒द्यत्सु॒प्तो यद्दिवा॒ यन्नक्त॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । जाग्र॑त् । यत् । सु॒प्त: । यत् । दिवा॑ । यत् । नक्त॑म् ॥७.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यज्जाग्रद्यत्सुप्तो यद्दिवा यन्नक्तम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । जाग्रत् । यत् । सुप्त: । यत् । दिवा । यत् । नक्तम् ॥७.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 7; मन्त्र » 10

    पदार्थ -
    [वैसे ही] (यत्) जो [कष्ट] (जाग्रत्) जागता हुआ, (यत्) जो [कष्ट] (सुप्तः) सोता हुआ मैं (यत्) जो [कष्ट] (दिवा) दिन में, (यत्) जो (नक्तम्) रात्रि में॥१०॥

    भावार्थ - जैसे पूर्वज विद्वान्लोग बड़े-बड़े कष्ट सहकर दुराचारी असुरों को हराते आये हैं, वैसे ही मनुष्यक्लेशें सहकर दुष्टों को हराकर शिष्टों का पालन करते रहें ॥९, १०, ११॥

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