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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 7

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 7/ मन्त्र 4
    सूक्त - दुःस्वप्ननासन देवता - प्राजापत्या गायत्री छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    ए॒वाने॒वाव॒ साग॑रत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒व । अने॑व । अव॑ । सा । ग॒र॒त् ॥७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवानेवाव सागरत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एव । अनेव । अव । सा । गरत् ॥७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 7; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (एव) इस प्रकार से [अथवा] (अनेव) अन्य प्रकार से (सा) वह [न्यायव्यवस्था] [कुमार्गी को] (अव गरत्)निगल जावे ॥४॥

    भावार्थ - राजा अपनी अनेक न्यायव्यवस्थाओं से दुष्टों का नाश करता रहे ॥४॥

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