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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 7

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 7/ मन्त्र 9
    सूक्त - दुःस्वप्ननासन देवता - साम्नी बृहती छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    यददोअदोअ॒भ्यग॑च्छ॒न् यद्दोषा यत्पूर्वां॒ रात्रि॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अ॒द:ऽव॑द: । अ॒भि॒ऽअग॑च्छन् । यत् । दो॒षा । यत् । पूर्वा॑म् । रात्रि॑म् ॥७.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यददोअदोअभ्यगच्छन् यद्दोषा यत्पूर्वां रात्रिम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । अद:ऽवद: । अभिऽअगच्छन् । यत् । दोषा । यत् । पूर्वाम् । रात्रिम् ॥७.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 7; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    (यत्) जैसे (अदो अदः)उस-उस समय पर (यत्) जो [कष्ट] (दोषा) रात्रि में, (यत्) जो [कष्ट] (पूर्वांरात्रिम्) रात्रि के पूर्व भाग में (अभ्यगच्छन्) उन [पूर्वज लोगों] ने सामने सेपाया है ॥९॥

    भावार्थ - जैसे पूर्वज विद्वान्लोग बड़े-बड़े कष्ट सहकर दुराचारी असुरों को हराते आये हैं, वैसे ही मनुष्यक्लेशें सहकर दुष्टों को हराकर शिष्टों का पालन करते रहें ॥९, १०, ११॥

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