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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 11
    सूक्त - मातृनामा देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त

    ये कु॒कुन्धाः॑ कु॒कूर॑भाः॒ कृत्ती॑र्दू॒र्शानि॒ बिभ्र॑ति। क्ली॒बा इ॑व प्र॒नृत्य॑न्तो॒ वने॒ ये कु॒र्वते॒ घोषं॒ तानि॒तो ना॑शयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । कु॒कुन्धा॑: । कु॒कूर॑भा: । कृत्ती॑: । दू॒र्शानि॑ । बिभ्र॑ति । क्ली॒बा:ऽइ॑व । प्र॒ऽनृत्य॑न्त: । वने॑ । ये । कु॒र्वते॑ । घोष॑म् । तान् । इ॒त: । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥६.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये कुकुन्धाः कुकूरभाः कृत्तीर्दूर्शानि बिभ्रति। क्लीबा इव प्रनृत्यन्तो वने ये कुर्वते घोषं तानितो नाशयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । कुकुन्धा: । कुकूरभा: । कृत्ती: । दूर्शानि । बिभ्रति । क्लीबा:ऽइव । प्रऽनृत्यन्त: । वने । ये । कुर्वते । घोषम् । तान् । इत: । नाशयामसि ॥६.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 11

    पदार्थ -
    (ये) जो (कुकुन्धाः) कुत्सित ध्वनि रखनेवाले [भिनभिनानेवाले], (कुकूरभाः) भूसे के अग्नि समान चमकनेवाले [कीड़े] (कृत्तीः) कतरनियों [छेदन शक्तियों] और (दूर्शानि) दुष्ट हिंसाकर्मों को (बिभ्रति) रखते हैं। (ये) जो (क्लीबाः इवः) हिजड़ों के समान (प्रनृत्यन्तः) नाचते हुए [कीड़े] (वने) घर में (घोषम्) कूक (कुर्वते) करते हैं, (तान्) उन को (इतः) यहाँ से (नाशयामसि) हम नाश करते हैं ॥११॥

    भावार्थ - मनुष्य रोगजनक छोटे-छोटे कीड़ों को सुगन्धित द्रव्यों के धूम आदि से नाश करते रहें ॥११॥

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