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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 25
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - शाला छन्दः - एकावसाना त्रिपदा प्राजापत्या बृहती सूक्तम् - शाला सूक्त

    प्राच्या॑ दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्येभ्यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्राच्या॑: । दि॒श: । शाला॑या: । नम॑: । म॒हि॒म्ने । स्वाहा॑ । दे॒वेभ्य॑: । स्वा॒ह्ये᳡भ्य: ॥३.२५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्राच्या दिशः शालाया नमो महिम्ने स्वाहा देवेभ्यः स्वाह्येभ्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्राच्या: । दिश: । शालाया: । नम: । महिम्ने । स्वाहा । देवेभ्य: । स्वाह्येभ्य: ॥३.२५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 25

    पदार्थ -
    (प्राच्याः दिशः) पूर्व दिशा से (शालायाः) शाला की (महिम्ने) महिमा के लिये (नमः) अन्न हो, (स्वाह्येभ्यः) सुवाणी के योग्य (देवेभ्यः) कमनीय विद्वानों के लिये (स्वाहा) सुवाणी [वेदवाणी] हो ॥२५॥ मन्त्र २५ से ३१ तक स्वामिदयानन्दकृतसंस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में आये हैं ॥

    भावार्थ - मनुष्यों को योग्य है कि पूर्वादि सब दिशाओं से पुष्कल अन्न आदि पदार्थ संग्रह करके शाला में रक्खें, जिस में विद्वान् लोग वेदों का विचार करते रहें ॥२५-३१॥

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