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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 169 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 169/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्र: छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    प्रति॒ प्र या॑हीन्द्र मी॒ळ्हुषो॒ नॄन्म॒हः पार्थि॑वे॒ सद॑ने यतस्व। अध॒ यदे॑षां पृथुबु॒ध्नास॒ एता॑स्ती॒र्थे नार्यः पौंस्या॑नि त॒स्थुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रति॑ । प्र । या॒हि॒ । इ॒न्द्र॒ । मी॒ळ्हुषः॑ । नॄन् । म॒हः । पार्थि॑वे । सद॑ने । य॒त॒स्व॒ । अध॑ । यत् । ए॒षा॒म् । पृ॒थु॒ऽबु॒ध्नासः॑ । एताः॑ । ती॒र्थे । न । अ॒र्यः । पौंस्या॑नि । त॒स्थुः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रति प्र याहीन्द्र मीळ्हुषो नॄन्महः पार्थिवे सदने यतस्व। अध यदेषां पृथुबुध्नास एतास्तीर्थे नार्यः पौंस्यानि तस्थुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रति। प्र। याहि। इन्द्र। मीळ्हुषः। नॄन्। महः। पार्थिवे। सदने। यतस्व। अध। यत्। एषाम्। पृथुऽबुध्नासः। एताः। तीर्थे। न। अर्यः। पौंस्यानि। तस्थुः ॥ १.१६९.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 169; मन्त्र » 6
    अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे इन्द्र त्वं यद्ये पृथुबुध्नासो जना एताः स्त्रियश्चैषां पौंस्यानि तीर्थे समुद्रादितारिकायां नाव्यर्य्यो न तस्थुः तान् मीढुषो नॄन् प्रति प्रयाह्यध महः पार्थिवे सदने यतस्व ॥ ६ ॥

    पदार्थः

    (प्रति) (प्र) (याहि) गच्छ (इन्द्र) प्रयतमान (मीढुषः) सुखैः सेचकान् (नॄन्) नायकान् (महः) महति (पार्थिवे) पृथिव्यां विदिते (सदने) गृहे (यतस्व) यतमानो भव (अध) अनन्तरम् (यत्) ये (एषाम्) (पृथुबुध्नासः) विस्तीर्णान्तरिक्षाः (एताः) (तीर्थे) तरन्ति येन तस्मिन् (न) इव (अर्यः) वैश्यः (पौंस्यानि) बलानि (तस्थुः) तिष्ठन्ति ॥ ६ ॥

    भावार्थः

    ये पुरुषा याः स्त्रियश्च ब्रह्मचर्येण बलानि वर्द्धयित्वाऽऽप्तान् सज्जनान् सेवन्ते ते ताश्च विद्वांसो विदुष्यश्च जायन्ते ॥ ६ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) प्रयत्न करनेवाले ! आप (यत्) जो (पृथुबुध्नासः) विस्तारयुक्त अन्तरिक्षवाले जन (एताः) ये स्त्रीजन और (एषाम्) इनके (पौंस्यानि) बल (तीर्थे) जिससे समुद्ररूप जल समूहों को तरें उस नौका में (अर्यः) वैश्य के (न) समान (तस्थुः) स्थिर होते हैं उन (मीढुषः) सुखों से सींचनेवाले (नॄन्) अग्रगामी मनुष्यों को (प्रति) (प्र, याहि) प्राप्त होओ (अध) इसके अनन्तर (महः) बड़े (पार्थिवे) पृथिवी में विदित (सदने) घर में (यतस्व) यत्न करो ॥ ६ ॥

    भावार्थ

    जो पुरुष और जो स्त्री ब्रह्मचर्य से बलों को बढ़ाकर आप्त धर्म्मात्मा शास्त्रवक्ता सज्जनों की सेवा करते हैं, वे पुरुष विद्वान् और वे स्त्रियाँ विदुषी होती हैं ॥ ६ ॥

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    विषय

    धन का मुख्य प्रयोजन दान

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = सब ऐश्वर्यों के स्वामिन् प्रभो! आप (महः) = पूजा की वृत्तिवाले (मीळ्हुष:) = प्राजापत्य यज्ञ में धनों की वर्षा करनेवाले-उदारता से दान देनेवाले (नॄन्) = प्रगतिशील पुरुषों को (प्रति प्र याहि) = प्राप्त होओ। इनको प्राप्त होकर इनके (पार्थिवे सदने) = हृदयान्तरिक्षरूप पार्थिव गृह में (यतस्व) = [Stir up, rouse] स्थित होकर इन्हें उत्साहित कीजिए। आपकी प्रेरणा से ये धनों के और भी अधिक देनेवाले हों। २. आपकी प्राप्ति होने पर (अध) = अब (एषाम्) = इन दान की वृत्तिवाले पुरुषों में (यत्) - जब कुछ (पृथुबुध्नासः) = विशाल आधारवाले (एता:) = [श्वेता:, shining] शुद्ध, दीप्त जीवनवाले मनुष्य होते हैं, वे (पौंस्यानि तस्थुः) = बलों का अधिष्ठातृत्व करते हैं, उसी प्रकार (न) = जैसे कि (अर्यः) = एक वैश्य (तीर्थे) = घाट पर [वैश्य लोग तीर्थों-घाटों पर] स्थित नावों के द्वारा दूर-दूर जाकर व्यापार करते हैं। ये 'पृथुबुध्न एत' लोग भी बलों का अधिष्ठातृत्व करते हुए अपने जीवन को प्रभु प्राप्ति के योग्य बनाते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु उन्हें ही प्राप्त होते हैं जो धनों का लोकहित के कार्यों में विनियोग करते हैं। -

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    विषय

    सेनापति का वर्णन । पक्षान्तर में वायु, विद्युत् मेघवत् गुरु आदि के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) सेनापते ! शत्रु हन्तः ! तू ( मीळुषः नॄन् ) मेघों के समान तुझ पर शस्त्र वर्षाने वाले प्रति पक्षी शत्रु गण पर ( प्रति प्रयाहि ) प्रयाण कर । उन पर चढ़ाई कर और ( महः ) बड़े भारी ( पार्थिवे ) पृथिवी के (सदने) राज्य सिंहासन के प्राप्त करने के निमित्त ( यतस्व ) यत्न कर । कब कर ? ( यत् ) जब ( एषां ) इन अपने वीर सैनिक पुरुषों के ( पृथुबुध्नासः ) बड़े मूल, आधार वाले, दृढ़ ( एता: ) अश्व गण, बड़ी बड़ी प्रयाण करने वाली सेनाएं, स्त्रियें और प्रजाएं, ( तीर्थे ) पार पहुंचा देने वाली नाव पर ( अर्यः न ) वैश्य के समान ( तीर्थे ) संग्राम सागर से पार उतारने वाले नायक पुरुष के अधीन रहकर ( पौंस्यानि ) नाना बल कर्म ( तस्थुः ) करने को तैयार बैठी हैं। जब भी अपने वीर सैनिकों की सेनाएं उत्तम नायक के अधीन बल पकड़ें तभी वह शत्रुओं पर धावा बोल कर राज्यासन लेने का यत्न करें । ( २ ) वायु, मेघ पक्ष में—( मीळुषो नॄन् ) विद्युत् तभी बरसती मेघों पर टूटती है और पृथिवी पर आने का यत्न करती है जब वायुओं के बड़े आश्रय वाले झकोरे बल पकड़ते हैं वायु के झकोरों से पर्वत आदि रगड़ खाकर वे भी बल युक्त विद्युत् से न्यस्त हो जाते हैं तभी मेघों की बिजली भी आकर्षित होती है । (३) आचार्य पक्ष में—हे ( इन्द्र ) धनवन् ! विद्वन् ! तू उपदेश अमृत बरसाने वाले नायकों को प्राप्त पार्थिव सदन अर्थात् राज्य संचालन में यत्न कर। जब इन विद्वानों में बड़े आश्रय वाले बलवान् पुरुष ( तीर्थे ) गुरु के अधीन वीरों की रक्षा का व्रत धार चुके । वे राजा के अधीन विद्वान्, ब्रह्मचारी, बलधारी लोग सेनापति आदि कार्यो पर नियुक्त हों, दुराचारी गुण्डे नहीं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्त्य ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः– १, ३, भुरिक् पङ्क्तिः । २ पङ्क्तिः । ५, ६ स्वराट् पङक्तिः । ४ ब्राह्मयुष्णिक्। ७, ८ निचृत् त्रिष्टुप् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे पुरुष व ज्या स्त्रिया ब्रह्मचर्याने बल वाढवून आप्त धर्मात्मा शास्त्रवक्त्या सज्जनांची सेवा करतात ते पुरुष विद्वान व स्त्रिया विदुषी होतात. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, lord of power, knowledge and action, go forward to the great, virile and generous people, fast, intelligent and vibrant as the winds, and try experiments on the floor of this great earth. And then, just as the powers and transports of the master stand ready at his service, so would the mighty and spacious flying machines like horses would stand ready for the heroes of the skies.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Significance of Brahmacharya and service to learned mentioned.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O INDRA (Commander-in-Chief of the Army or President of the National Assembly) ! You go to the benevolent, large-hearted and intelligent men and women. Such people are entrenched as powerful like a trader in the ship going for business. Always try to do good to others even while staying at your home.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The men and women, having developed their strength by the observance of Brahmacharya serve absolutely truthful and noble persons, and ultimately become good scholars.

    Foot Notes

    (मीढुष:) सुखै: सेचकान् = Sprinkling with happiness. (पृथुबुध्नाः) विस्तीर्णान्त रिक्षा: = Large hearted or taking heart lofty to like the firmament. (तीथें) तरन्ति येन तस्मिन् = Boat or steamer. (अर्थ:) वैश्यः = Trader.

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