अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 12/ मन्त्र 3
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - भुरिक् प्राजापत्या अनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
1
सचा॑तिसृ॒जेज्जु॑हु॒यान्न चा॑तिसृ॒जेन्न जु॑हुयात् ॥
स्वर सहित पद पाठस: । च॒ । अ॒ति॒ऽसृ॒जेत् । जु॒हु॒यात् । न । च॒ । अ॒ति॒ऽसृ॒जेत् । न । जु॒हु॒या॒त् ॥१२.३॥
स्वर रहित मन्त्र
सचातिसृजेज्जुहुयान्न चातिसृजेन्न जुहुयात् ॥
स्वर रहित पद पाठस: । च । अतिऽसृजेत् । जुहुयात् । न । च । अतिऽसृजेत् । न । जुहुयात् ॥१२.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
यज्ञ करने में विद्वान् की सम्मति का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह [अतिथि] (च)यदि (अतिसृजेत्) आज्ञा देवे, (जुहुयात्) वह [गृहस्थ] हवन करे, (च) यदि वह (नअतिसृजेत्) न आज्ञा देवे, (न जुहुयात्) वह [गृहस्थ] न हवन करे ॥३॥
भावार्थ
विचारवान् अतिथि कीआज्ञानुसार अधिकारी गृहस्थ यज्ञ करे और अनधिकारी न करे ॥३॥
टिप्पणी
३−(सः) अतिथिः (च) यदि (अतिसृजेत्) आज्ञापयेत् (जुहुयात्) गृहस्थो होमं कुर्यात् (न) निषेधे। अन्यत्स्पष्टम् ॥
विषय
देवयज्ञ, अतिथियज्ञ
पदार्थ
१. (तत्) = इसलिए (यस्य गृहान्) = जिसके घर पर (एवं विद्वान् वात्यः) = [इण् गतौ] सर्वत्र गतिवाले प्रभु को जाननेवाला व्रती (उद्धृतेषु अग्निषु) = अग्नियों के गाई पत्य से उठाकर आहवनी में आधान किये जाने पर (अग्निहोत्रे अधिश्रिते) = अग्निहोत्र के प्रारम्भ होने की तैयारी हो जाने पर (अतिथिः आगच्छेत्) = अतिथि के रूप में प्राप्त हो तो (स्वयम्) = अपने-आप (एनं अभि उदेत्य) = इसके प्रति प्राप्त होकर कहे कि हे (व्रात्य) = वतिन्। (अतिसृज) = आप मुझे अनुज्ञा दीजिए जिससे (होष्यामि इति) = मैं यज्ञ करूँ। २. इसप्रकार अनुज्ञा मांगने पर (सः च अतिसृजेत्) = यदि वह अनुज्ञया दे दे तो (जुहुयात्) = अग्निहोत्र करे, परन्तु यदि न (च अतिसृजेत) = यदि वह अनुज्ञा न दे तो न (जुहुयात्) = अग्निहोत्र न करे।
भावार्थ
अग्निहोत्र प्रारम्भ होने के अवसर पर अकस्मात् अतिथि आ जाए तो गृहस्थ वात्य का आदरपूर्वक स्वागत करे। उससे अनुज्ञया लेकर ही अग्निहोत्र करे। जबतक अतिथि अनुजया न दे तब अग्निहोत्र स्थगित रक्खे।
भाषार्थ
(च) और (सः) वह अतिथि (अति सृजेत्) आज्ञा दे (जुहुयात्) तो हवन करे, (च) और (न, अतिसृजेत्) न आज्ञा दे, (न, जुहुयात्) तो न हवन करे।
टिप्पणी
[अग्निहोत्र की सामग्री के जुटा लेते, यदि व्रात्य अतिथि विशेष कार्यवश गृहस्थी के घर आ उपस्थित हो, तो गृहस्थी सर्वप्रथम अतिथि के प्रयोजन को सिद्ध करे, और अतिथि से आज्ञा पाने पर अग्निहोत्र करे, और यदि अतिथि आज्ञा न दे, तो अतिथि के प्रयोजन को सिद्ध कर देने के पश्चात् अग्निहोत्र करे]
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
If the venerable guest permits, the house holder should perform the yajna. If the guest does not permit, he should withhold the yajna.
Translation
If he permits, he may perform sacrifice; if he does not permit, he should not perform sacrifice.
Translation
If he (Vratya) allows him he should perform the Yajna and if he does not permit him he should not perform the Yajna.
Translation
And if he gives permission he should sacrifice, if he does not permit him he should not sacrifice.
Footnote
The learned guest’s permission is sought to perform the Yajna. He gives permission to the deserving and not to the undeserving.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(सः) अतिथिः (च) यदि (अतिसृजेत्) आज्ञापयेत् (जुहुयात्) गृहस्थो होमं कुर्यात् (न) निषेधे। अन्यत्स्पष्टम् ॥
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