अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 131/ मन्त्र 11
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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ते वृ॒क्षाः स॒ह ति॑ष्ठति ॥
स्वर सहित पद पाठते । वृ॒क्षा: । स॒ह । तिष्ठति ॥१३१.११॥
स्वर रहित मन्त्र
ते वृक्षाः सह तिष्ठति ॥
स्वर रहित पद पाठते । वृक्षा: । सह । तिष्ठति ॥१३१.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(ते) वे (वृक्षाः) स्वीकार करने योग्य पुरुष (सह) मिलकर (तिष्ठति) रहते हैं ॥११॥
भावार्थ
सब मनुष्य और स्त्रियाँ सदा उपकार करके क्लेशों से बचें और परस्पर प्रीति से रहें ॥६-११॥
टिप्पणी
११−(ते) पूर्वोक्ताः (वृक्षाः) वृक्ष वरणे-क। स्वीकरणीयाः पुरुषाः (सह) एकीभूय (तिष्ठति) तिष्ठन्ति। वर्तन्ते ॥
विषय
वृक्ष
पदार्थ
१. गतमन्त्र का बनिष्ठ कहता है कि (इदम्) = यह संविभजन-सबके साथ बाँटकर खाना (मह्यम्) = मेरे लिए (मदूः इति) = आनन्द देनेवाला है। इस संविभाग में सबके साथ मिलकर खाने में मैं आनन्द का अनुभव करता हूँ। २. (ते) = वे वनिष्ठ (वृक्षा:) = [प्रश्चू छेदने] वासनाओं के झाड़ झंकाड़ों को काटनेवाले होते हैं। सब वासनाओं को छिन्न करके पवित्र जीवनवाले होते हैं। (सह तिष्ठति) = प्रभु इनके साथ निवास करते हैं। प्रभु को वही प्रिय होता है जो सबके साथ बाँटकर खानेवाला होता है।
भावार्थ
संविभाग में हम आनन्द का अनुभव करें। यह संविभाग ही हमारी वासनाओं को विनष्ट करेगा। इन वनिष्ठों को ही-संभक्ताओं को ही प्रभु मिलते हैं।
भाषार्थ
(ते) वे सर्वश्रेष्ठ उपासक, (वृक्षाः) वृक्षों के सदृश अन्तःसंज्ञ होकर समाधिस्थ हो जाते हैं, तब सद्गुरु परमेश्वर (सह) उनके साथ (तिष्ठति) सदा रहता है।
टिप्पणी
[“अन्तःसंज्ञा भवन्त्येते (वृक्षाः) सुखदुःखसमन्विताः” (मनुः)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
Uprooted, in-rooted, they abide unshaken, the Master, the Mother, abides with them.
Translation
These men of selected merits sit together.
Translation
These men of selected merits sit together.
Translation
Those yogis, who are deeply immersed in meditation, sit firm like the trees.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
११−(ते) पूर्वोक्ताः (वृक्षाः) वृक्ष वरणे-क। स्वीकरणीयाः पुरुषाः (सह) एकीभूय (तिष्ठति) तिष्ठन्ति। वर्तन्ते ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
ঐশ্বর্যপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ
भाषार्थ
(তে) তাঁরা (বৃক্ষাঃ) স্বীকারযোগ্য পুরুষ (সহ) একত্রে (তিষ্ঠতি) থাকে/বাস করে ॥১১॥
भावार्थ
সকল নর-নারী পরস্পর সর্বদা উপকার করে ক্লেশ মুক্ত এবং আনন্দিত থাকুক ॥৬-১১॥
भाषार्थ
(তে) সেই সর্বশ্রেষ্ঠ উপাসক, (বৃক্ষাঃ) বৃক্ষের সদৃশ অন্তঃসজ্ঞ হয়ে সমাধিস্থ হয়/হয়ে যায়, তখন সদ্গুরু পরমেশ্বর (সহ) তাঁর সাথে (তিষ্ঠতি) সদা বর্তমান থাকে।
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