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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 131 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 131/ मन्त्र 18
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    अदू॑हमि॒त्यां पूष॑कम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अदू॑हमि॒त्याम् । पूष॑कम् ॥१३१.१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अदूहमित्यां पूषकम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अदूहमित्याम् । पूषकम् ॥१३१.१८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 18
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (अत्यर्धर्च) हे अत्यन्त बढ़ी हुई स्तुतिवाले ! (पूरुषः) इस पुरुष ने (अदूहमित्याम्) अनष्ट ज्ञान के बीच (परस्वतः) पालन सामर्थ्यवाले [मनुष्य] के (पूषकम्) बढ़ती करनेवाले व्यवहार को (व्याप) फैलाया है ॥१७-१९॥

    भावार्थ

    मनुष्य विद्या आदि की प्राप्ति से संसार का उपकार करके अपनी कीर्ति फैलावे, जैसे लोहार धौंकनी की खालों को वायु से फुलाकर फैलाता है ॥१७-२०॥

    टिप्पणी

    १८−(अदूहमित्याम्) अ+दुहिर् अर्दने-क+माङ् माने-क्तिन्। अनष्टायां मित्यां ज्ञाने, (पूषकम्) पूष वृद्धौ-ण्वुल्। वृद्धिकरं व्यवहारम् ॥

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    विषय

    पूषक-परस्वान्

    पदार्थ

    १. (अ-दूह-मित्याम्) = [अ-दुहिर् Hurt अर्दने, मिति ज्ञान]-हिंसा न करनेवाला ज्ञान होने पर ही मनुष्य (पूषकम्) = उस सर्वपोषक प्रभु को पाता है। प्रभु पूषा हैं। साधक भी पूषा-न कि हिंसक बनकर ही प्रभु को प्राप्त करता है। २. [अति, ऋधू वृद्धौ, ऋच् स्तुतौ] (अत्यर्थर्च) = हे अतिशयेन प्रवद्ध स्तुतिवाले जीव! तू ही उस (परस्वत:) = [पृ पालनपुरणयो:, अस्। परस्+मत्] पालन व पूरण के कौवाले प्रभु को पानेवाला होता है। प्रभु का स्तवन करता हुआ भी 'परस्वान्'-पालनात्मक व पूरणात्मक कौवाला होता है। ३. इस (हस्तिन:) = प्रशस्त हाथोंवाले पुरुष के (दौव) = [दो:-भुजा] दोनों ही हाथ (दृती) = [दु विदारणे]-शत्रुओं का विदारण करनेवाले होते हैं। वस्तुत: प्रभु की शक्ति से शक्ति-सम्पन्न बनकर यह शत्रुओं का विदारण करता हुआ उत्तमता से पालन करनेवाला होता है।

    भावार्थ

    हमारा ज्ञान अहिंसक होगा तो ही हम पोषक प्रभु को प्राप्त करेंगे। प्रभु का स्तवन करनेवाला अवश्य पालनात्मक व पूरणात्मक कर्मों को करता है। इसके दोनों हाथ शत्रुओं का विदारण करनेवाले होते हैं।

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    भाषार्थ

    हे शिष्य! मैंने (पूषकम्) पुष्टिदायक परमपुरुष परमेश्वर से तुझे (इत्याम्) विशेष प्रगति (अदूहम्) प्राप्त करा दी है।

    टिप्पणी

    [अदूहम्=दुह प्रपूरणे, द्विकर्मक धातु।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    I have received the life-giving milk of the Divine Presence.

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    Translation

    There should þe efficiency in flourished knowledge.

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    Translation

    There should be efficiency in flourished knowledge.

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    Translation

    Just as the milk is milked, from the cow similarly is the nectar is got from Him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १८−(अदूहमित्याम्) अ+दुहिर् अर्दने-क+माङ् माने-क्तिन्। अनष्टायां मित्यां ज्ञाने, (पूषकम्) पूष वृद्धौ-ण्वुल्। वृद्धिकरं व्यवहारम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ঐশ্বর্যপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অত্যর্ধর্চ) হে অত্যন্ত বর্ধিত স্তুতিসম্পন্ন! (পূরুষঃ) এই পুরুষ (অদূহমিত্যাম্) অনষ্ট জ্ঞানের মধ্যে (পরস্বতঃ) পালন সামর্থ্যবানের [মনুষ্যের] (পূষকম্) বৃদ্ধিকারক ব্যবহারকে (ব্যাপ) বিস্তার করেছে ॥১৭-১৯॥

    भावार्थ

    মনুষ্য বিদ্যা আদি লাভ করে জগতের উপকার/কল্যান করে নিজের কীর্তি বিস্তৃত করুক, যেমন কামারের হাপরকে বায়ু দিয়ে ফুলিয়ে বিস্তৃত করে ॥১৭-২০॥

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    भाषार्थ

    হে শিষ্য! আমি (পূষকম্) পুষ্টিদায়ক পরমপুরুষ পরমেশ্বরের প্রতি তোমাকে (ইত্যাম্) বিশেষ প্রগতি (অদূহম্) প্রাপ্ত করিয়েছি।

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