अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 71/ मन्त्र 6
ए॒वा ह्य॑स्य॒ काम्या॒ स्तोम॑ उ॒क्थं च॒ शंस्या॑। इन्द्रा॑य॒ सोम॑पीतये ॥
स्वर सहित पद पाठए॒व । हि । अ॒स्य॒ । काम्या॑ । स्तोम॑: । उ॒क्थम् । च॒ । शंस्या॑ ॥ इन्द्रा॑य । सोम॑ऽपीतये ॥७१.६॥
स्वर रहित मन्त्र
एवा ह्यस्य काम्या स्तोम उक्थं च शंस्या। इन्द्राय सोमपीतये ॥
स्वर रहित पद पाठएव । हि । अस्य । काम्या । स्तोम: । उक्थम् । च । शंस्या ॥ इन्द्राय । सोमऽपीतये ॥७१.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(एव) निश्चय करके (हि) ही (अस्य) उस [सभापति] के (काम्या) मनोहर और (शंस्या) प्रशंसनीय (स्तोमः) उत्तम गुण (च) और (उक्थम्) कहने योग्य कर्म (इन्द्राय) ऐश्वर्यवान् पुरुष के लिये (सोमपीतये) सोमरस पीने के निमित्त [हैं] ॥६॥
भावार्थ
उत्तम गुणी पुरुष को सभापति बनाकर सब मनुष्य ऐश्वर्यवाले और तत्त्वज्ञानवाले होवें ॥६॥
टिप्पणी
४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।६०।४-६ ॥
विषय
स्तोम व उक्थ
पदार्थ
१. (एवा) = इसप्रकार (हि) = निश्चय से (अस्य) = इन ऐश्वयों व रक्षणोंवाले इन्द्र के (स्तोमः) = साम मन्त्रों द्वारा स्तवन (च) = और (उक्थम्) = ऋचाओं द्वारा महिमा का प्रतिपादन (काम्या) = कामयितव्य है चाहने योग्य है और (शंस्या) = शंसन के योग्य है। सामन्त्रों द्वारा हम प्रभु के गुणों का कीर्तन करें तथा ऋमन्त्रों द्वारा सृष्टि के पदार्थों में रचना-सौन्दर्य-दर्शन से प्रभु की महिमा का शंसन करें। २. ये स्तोम व उक्थ-भक्तिप्रधान व विज्ञानप्रधान स्तवन हृदय व मस्तिष्क से होनेवाला उपासन (इन्द्राय) = परमैश्वर्य की प्राप्ति के लिए होगा और (सोमपीतये) = सोम के रक्षण के लिए होगा। प्रभु स्तवन द्वारा वासनाओं का विनाश होकर सोम का रक्षण सम्भव होता है। सोम-रक्षण द्वारा यह स्तवन हमें प्रभु को प्रास करानेवाला होता है।
भावार्थ
प्रभु का गुणस्तवन व महत्वकथन ही हमारे लिए कामयितव्य व शंसनीय हो। यही मार्ग परमैश्वर्य की प्राप्ति का साधक है और सोम-रक्षण में सहायक है।
भाषार्थ
(एवा) इसी प्रकार के अर्थात् विस्तृत [पूर्व मन्त्र ३], (हि) निश्चय से, (अस्य) इस परमेश्वर के (स्तोमः) सामगान (च) और (उक्थम्) ऋचाओं द्वारा प्रोक्त स्तुतियाँ हैं, जो कि (काम्या) उपासक जीवात्मा की कामना के योग्य हैं, और (शंस्या) प्रशंसनीय हैं। तथा (इन्द्राय) जीवात्मा के लिए (सोमपीतये) ज्ञानदुग्ध पीने के लिए हैं।
टिप्पणी
[सोम=दुग्ध। यथा—“सोमो दुग्धाभिरक्षाः” (ऋ০ ९.१०७.९), अर्थात् दुही गई गौओं से सोम (=दुग्ध) क्षरित हुआ है।]
इंग्लिश (4)
Subject
In dr a Devata
Meaning
Such are the songs of praise, adoration and celebration of this lord of life, light and power, sweet, enchanting and elevating, offered in honour of Indra, creator, protector and promoter of life and its joy.
Translation
So are the favourable set of praise admiration and laudable words (in store) for the Almighty God who is the guardian of the universe.
Translation
So are the favorable set of praise admiration and laudable words (in store) for the Almighty God who is the guardian of the universe.
Translation
See 20.60.6
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।६०।४-६ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যকর্ত্যব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(এব) নিশ্চিতরূপে (হি) ই (অস্য) তাঁর [সভাপতির] (কাম্যা) মনোহর এবং (শংস্যা) প্রশংসনীয় (স্তোমঃ) উত্তম গুণ (চ) তথা (উক্থম্) কথন যোগ্য কর্ম (ইন্দ্রায়) ঐশ্বর্যবান্ পুরুষের জন্য (সোমপীতয়ে) তত্ত্বরস পান করার নিমিত্ত [হয়] ॥৬॥
भावार्थ
উত্তম গুণযুক্ত পুরুষকে সভাপতি হিসেবে প্রতিষ্ঠিত করে সকল মনুষ্য ঐশ্বর্যবান্ ও তত্ত্ববেত্তা হয়/হোক ॥৬॥
भाषार्थ
(এবা) এরূপ অর্থাৎ বিস্তৃত [পূর্ব মন্ত্র ৩], (হি) নিশ্চিতরূপে, (অস্য) এই পরমেশ্বরের (স্তোমঃ) সামগান (চ) এবং (উক্থম্) ঋচা-সমূহ দ্বারা প্রোক্ত স্তুতি, যা (কাম্যা) উপাসক জীবাত্মার কামনার যোগ্য, এবং (শংস্যা) প্রশংসনীয়। তথা (ইন্দ্রায়) জীবাত্মার জন্য (সোমপীতয়ে) জ্ঞানদুগ্ধ পান করার জন্য।
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