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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 56 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 56/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विषभेषज्य सूक्त
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    इ॒यं वी॒रुन्मधु॑जाता मधु॒श्चुन्म॑धु॒ला म॒धूः। सा विह्रु॑तस्य भेष॒ज्यथो॑ मशक॒जम्भ॑नी ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒यम् । वी॒रुत् । मधु॑ऽजाता । म॒धु॒ऽश्चुत् । म॒धु॒ला । म॒धू: । सा । विऽह्रु॑तस्य । भे॒ष॒जी । अथो॒ इति॑ । म॒श॒क॒ऽजम्भ॑नी ॥५८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इयं वीरुन्मधुजाता मधुश्चुन्मधुला मधूः। सा विह्रुतस्य भेषज्यथो मशकजम्भनी ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इयम् । वीरुत् । मधुऽजाता । मधुऽश्चुत् । मधुला । मधू: । सा । विऽह्रुतस्य । भेषजी । अथो इति । मशकऽजम्भनी ॥५८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 56; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विष नाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (इयम्) यह [ब्रह्मविद्या] (वीरुत्) जड़ी-बूटी (मधुजाता) मधुरपन से उत्पन्न हुई, (मधुश्चुत्) मधुरपन टपकानेवाली (मधुला) मधुरपन देनेवाली और (मधूः) मधुर स्वभाववाली है, (सा) वही (विह्रुतस्य) बड़े कुटिल विष की (भेषजी) ओषधि (अथो) और (मशकजम्भनी) मच्छरों [मच्छर के समान गुणों] की नाश करनेवाली है ॥२॥

    भावार्थ

    मन्त्र मे बिच्छु आदि के विष को दूर करने वाली औषधि के गुणो को बताया है जो खाने मे मधुर स्वाद वाली है अर्थात यष्टिमधु जिसे मुलेठी कहते हैं। इसको पीसकर रोगी को देने से विष दूर हो जाता है

    टिप्पणी

    २−(इयम्) ब्रह्मविद्या (वीरुत्) ओषधिः (मधुजाता) माधुर्याद् निष्पन्ना (मधुश्चुत्) श्चुतिर् क्षरणे-क्विप्। मधुररसस्य क्षरणशीला (मधुला) ला दाने-क। माधुर्यदात्री (मधूः) मधुरस्वभावा (सा) वीरुत् (विह्रुतस्य) विशेषकुटिलस्य विषस्य (भेषजी) ओषधिः (अथो) अपि च (मशकजम्भनी) जभि नाशने-ल्युट्। मशकानां मशकस्वभावानां नाशयित्री ॥

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    विषय

    [मधू]'मधुका' सर्पविषनाशनी

    पदार्थ

    १. (तिरश्चिराजे:) = [तिरश्च्य राजयो यस्य] तिर्यग्भूत रेखाओंवाले, (असितात्) = कृष्णवर्ण के, (पदाको:) = [पर्द कुत्सिते शब्दे] कुत्सित शब्द करनेवाले सर्प से (परिसंभृतम्) = जो शरीर में चारों ओर व्याप्त हुआ है तथा (कंकपर्वण:) = कंकपक्षी के समान जोड़ोंवाले सर्प से (विषम्) = विष सम्भृत हुआ है, (तत्) = उस विष को (इयम्) = यह (वीरुत्) = विशेषरूप से वृद्धि को प्राप्त होती हुई मधुकाख्या ओषधि (अनीनशत्) = नष्ट करे। २. (इयं वीरुत्) = यह सर्पविष में प्रयुज्यमान ओषधि (मधुजाता) = मधु से निष्पन्न हुई है। (मधुश्चुत्) = मधुर रस लाविणी है। (मधुला) = मधुमती, (मधुः) = मधू नामवाली है। (सा) = वह (विहृतस्य भेषजी) = विशेषरूप से कुटिलता को उत्पन्न करनेवाले विष की औषध है (अथो) = और निश्चय से (मशकजम्भनी) = दंशक मशकों को हिंसित करनेवाली है।

    भावार्थ

    विविध प्रकार के सर्पविष के प्रभावों को यह 'मधू' [मधुला] नामक ओषधि दूर करनेवाली है।

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    भाषार्थ

    (इयम्) यह (वीरुत्) ओषधि (मधुजाता) मधु की जड़ से या मधु रूप पैदा हुई है, (मधुश्चुत्) मधुस्राविणी है, (मधुला) मधुमती है (मधूः) मधू नामवाली है। (सा) वह (विह्रुतस्य) अंग को कुटिल कर देने वाले विष की (भेषजी) चिकित्सिका है, (अथो) तथा (मशकजम्भनी) मच्छरों को मारने वाली है।

    टिप्पणी

    [चक्रदत्त में "मधुक" [मौरेठी] का प्रयोग, सर्पविषचिकित्सा के लिये, अन्य कई ओषधियों के योग के साथ "महागर" नामक प्रयोग में हुआ है]।

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    विषय

    विषचिकित्सा।

    भावार्थ

    (इयम्) यह (वीरुत्) लता, ओषधि (मधु-जाता) मधु = पृथिवी से उत्पन्न है, (मधु-ला) मधु = आनन्द गुण को प्राप्त कराने वाली, (मधु-श्चुत्) मधुर रस को चुभाने वाली (मधूः) मधु ही है, वह (विह्रुतस्य) विशेष रूप से कुटिलगामी सर्पों के विषम विष की भी (भेषजी) उत्तम चिकित्सा है, (अथो) और (मशकजम्भनी) मच्छर आदि विषैले कीटों का भी नाश करती है। सायण ने ‘मधु’ शब्द से मधुक औषधि ली है—वह क्या है इस सें संदेह है। क्योंकि वह बहुतों का नाम है। परन्तु हमारी सम्मति में यह स्वतः ‘मधु’ = शहद है। मधु के गुण राजनिघण्टु में—‘छर्दिर्हिक्काविषश्वासकासशोषातिसारजित्’ मधु = वमन, हिचकी, विषवेग, सांस, दमा, खांसी और तपेदिक अतिसार आदि का नाश करता है उष्णैविरुध्यते सर्वं विषान्वयतया लघु। उष्णार्त्तरुक्षैरुष्णैर्वा तन्निहन्ति तथा विषम्। मधु ऊष्ण स्वभाव के पदार्थों से मिलकर हानि उत्पन्न करता है, वह स्वयं विष हो जाता है, इसलिये वह उस समय विष का भी नाश करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः वृश्चिकादयो देवताः। २ वनस्पतिर्देवता। ४ ब्रह्मणस्पतिर्देवता। १-३, ५-८, अनुष्टुप्। ४ विराट् प्रस्तार पंक्तिः। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Poison Cure

    Meaning

    This herb is born of honey, full of honey, honey sweet, honey itself. It is Mashaka-jambhani, killer of mosquitoes, and it is an antidote of deadly poison.

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    Subject

    Vanasatih

    Translation

    This medicinal herb is born of sweetness, is dripping Sweetness, is full of sweetness and is the sweetness incarnate. It is a remedy for the bite and wound: also it is a killer of stinging creatures (masaka - jambhani)

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.58.2AS PER THE BOOK

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    Translation

    This herb is born with sweet, it drops sweet, it is sweet in effect and it is as sweet as honey. This is the medicine of wound caused by the bite of venomous reptiles and this destroys the gnats etc.

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    Translation

    This herb, born of earth, honey-dropping, rich in sweetness, is honey itself. It is an efficacious remedy for the poison instilled by a crooked serpent. It kills the gnat that bites and stings.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(इयम्) ब्रह्मविद्या (वीरुत्) ओषधिः (मधुजाता) माधुर्याद् निष्पन्ना (मधुश्चुत्) श्चुतिर् क्षरणे-क्विप्। मधुररसस्य क्षरणशीला (मधुला) ला दाने-क। माधुर्यदात्री (मधूः) मधुरस्वभावा (सा) वीरुत् (विह्रुतस्य) विशेषकुटिलस्य विषस्य (भेषजी) ओषधिः (अथो) अपि च (मशकजम्भनी) जभि नाशने-ल्युट्। मशकानां मशकस्वभावानां नाशयित्री ॥

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