अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 56/ मन्त्र 8
ऋषिः - अथर्वा
देवता - वृश्चिकादयः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - विषभेषज्य सूक्त
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य उ॒भाभ्यां॑ प्र॒हर॑सि॒ पुच्छे॑न चा॒स्येन च। आ॒स्ये॒ न ते॑ वि॒षं किमु॑ ते पुच्छ॒धाव॑सत् ॥
स्वर सहित पद पाठय: । उ॒भाभ्या॑म् । प्र॒ऽहर॑सि । पुच्छे॑न । च॒ । आ॒स्ये᳡न । च॒ । आ॒स्ये᳡ । न । ते॒ । वि॒षम् । किम् । ऊं॒ इति॑ । ते॒ । पु॒च्छ॒ऽधौ । अ॒स॒त् ॥५८.८॥
स्वर रहित मन्त्र
य उभाभ्यां प्रहरसि पुच्छेन चास्येन च। आस्ये न ते विषं किमु ते पुच्छधावसत् ॥
स्वर रहित पद पाठय: । उभाभ्याम् । प्रऽहरसि । पुच्छेन । च । आस्येन । च । आस्ये । न । ते । विषम् । किम् । ऊं इति । ते । पुच्छऽधौ । असत् ॥५८.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विष नाश का उपदेश।
पदार्थ
[हे बिच्छू !] (यः) जो तू (उभाभ्याम्) दोनों (पुच्छेन) पूँछ से (च च) और (आस्येन) मुख से (प्रहरसि) चोट मारता है। (ते) तेरे (आस्ये) मुख में (विषम्) विष (न) नहीं है, (उ) तौ, (ते) (पुच्छधौ) पूँछ की थैली में (किम्) क्या (असत्) होवे ॥८॥
भावार्थ
बिच्छू के मुख में तो विष नहीं होता, उसकी पूँछ के विष को भी विद्वान् लोग ओषधि द्वारा नाश करें ॥८॥
टिप्पणी
८−(यः) (उभाभ्याम्) द्वाभ्याम् (प्रहरसि) बाधसे (पुच्छेन) म० ६। लाङ्गलेन (आस्येन) मुखेन (च च) समुच्चये (आस्ये) मुखे (न) निषेधे (ते) तव (विषम्) (किम् असत्) किं स्यात्, न भवेदित्यर्थः (ते) तव (पुच्छधौ) पुच्छ+डुधाञ्-कि। पुच्छधान्याम् ॥
विषय
पुच्छेन च आस्येन च
पदार्थ
१. हे वृश्चिक! (य:) = जो तू (उभाभ्यां पुच्छेन च आस्येन च) = पूँछ और मुख दोनों से (प्रहरसि) = प्रहार करता है, अत: (ते आस्ये) = तेरे मुख में तो (विष न) = विष नहीं है, (किम् उ) = और क्या (ते) = तेरे इस (पुच्छधौ) = छोटी पूँछ ही में (असत्) = होता है, अर्थात् तेरा विष किसी को क्या मार सकता है? अतः व्यर्थ में तु डसता ही क्यों है?
भावार्थ
बिच्छू के मुख में तो विष होता ही नहीं, पुच्छधि में होनेवाला विष भी सरलता से ही चिकित्स्य है।
गत सूक्त के सर्प व वृश्चिक की भाँति मुझे औरों को डसनेवाला नही बनना' इस भावना से जीवन का निर्माण करनेवाला यह साधक 'वामदेव' बनता है, वाम सुन्दर दिव्य गुणोंवाला। यही अगले सूक्त का ऋषि है -
भाषार्थ
(यः) जो (उभाभ्याम्) दोनों द्वारा (प्रहरसि) तू प्रहार करता है, (पुच्छेन) पूंछ द्वारा (च) और (आस्येन च) मुख द्वारा (ते) तेरे (आस्ये) मुख में (न विषम्) विष नहीं है (किमु) क्या ही (ते) तेरे (पुच्छधौ) पुच्छनिष्ठ काँटे में (असत्) हो।
टिप्पणी
[बिच्छु मुख और पुच्छ दोनों द्वारा प्रहार करता है। मुख द्वारा निज भोज्य पर, और पुच्छधि द्वारा प्राणी पर। सर्प के मुख में विष होता है, बिच्छु के मुख में विष नहीं होता। इसकी पूंछ में विष होता है, वह भी अत्यल्प न के बराबर, नगण्य। पुच्छधौ= पुच्छे धीयते इति पुच्छधिः; तस्मिन्, पुच्छ में निहित काण्टे में]।
विषय
विषचिकित्सा।
भावार्थ
(यः) जो तू (पुच्छेन च) पूंछ से भी और (आस्येन च) मुख से भी (प्रहरसि) प्रहार करता है, काटता है, (ते) तेरे (आस्ये) मुख में (विषं न) विष नहीं है (किम् उ) तो क्या वह (पुच्छ-धौ) पूंछड़ी में (असत्) है। (पुच्छधिः) ‘पुच्छवत् आघीयते इति पुच्छधिः’ पुच्छ के समान जिस अंग को धारण किया है वह ‘पुच्छधिः’ कहाता है। हिन्दी में ‘पूंछड़ी’ है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः वृश्चिकादयो देवताः। २ वनस्पतिर्देवता। ४ ब्रह्मणस्पतिर्देवता। १-३, ५-८, अनुष्टुप्। ४ विराट् प्रस्तार पंक्तिः। अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Poison Cure
Meaning
O Scorpion, you attack with both the tail and the mouth. In your mouth there is no poison. Then how come there is poison in the tail?
Translation
You attack with both, with your tail as well as with your mouth. There is no poison in your mouth. What, then will there be at the root - receptacle of your tail ?
Comments / Notes
MANTRA NO 7.58.8AS PER THE BOOK
Translation
This is the creature which inflicts injury both with its tail and with its mouth, there it has no poison in its mouth then what will be of that poison which it has on the root of its tail.
Translation
Thou scorpion, who inflictest both with thy mouth and with thy tail! no poison in thy mouth hast thou; what at thy tail’s root will there be.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(यः) (उभाभ्याम्) द्वाभ्याम् (प्रहरसि) बाधसे (पुच्छेन) म० ६। लाङ्गलेन (आस्येन) मुखेन (च च) समुच्चये (आस्ये) मुखे (न) निषेधे (ते) तव (विषम्) (किम् असत्) किं स्यात्, न भवेदित्यर्थः (ते) तव (पुच्छधौ) पुच्छ+डुधाञ्-कि। पुच्छधान्याम् ॥
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