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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 81 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 81/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अथर्वा देवता - सावित्री, सूर्यः, चन्द्रमाः छन्दः - सम्राडास्तारपङ्क्ति सूक्तम् - सूर्य-चन्द्र सूक्त
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    यो॑३ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मस्तस्य॒ त्वं प्रा॒णेना प्या॑यस्व। आ व॒यं प्या॑सिषीमहि॒ गोभि॒रश्वैः॑ प्र॒जया॑ प॒शुभि॑र्गृ॒हैर्धने॑न ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: । तस्य॑ । त्वम् । प्रा॒णेन॑ । आ । प्या॒य॒स्व॒ । आ । व॒यम् । प्या॒शि॒षी॒म॒हि॒ । गोभि॑: । अश्वै॑: । प्र॒ऽजया॑ । प॒शुऽभि॑: । गृ॒है: । धने॑न ॥८६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो३ऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तस्य त्वं प्राणेना प्यायस्व। आ वयं प्यासिषीमहि गोभिरश्वैः प्रजया पशुभिर्गृहैर्धनेन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: । तस्य । त्वम् । प्राणेन । आ । प्यायस्व । आ । वयम् । प्याशिषीमहि । गोभि: । अश्वै: । प्रऽजया । पशुऽभि: । गृहै: । धनेन ॥८६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 81; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सूर्य, चन्द्रमा के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जो मनुष्य (अस्मान्) हमसे (द्वेष्टि) द्वेष करता है, और (यम्) जिससे (वयम्) हम (द्विष्मः) विरोध करते हैं, (त्वम्) तू [हे चन्द्र !] (तस्य) उसको (प्राणेन) प्राण से (आप्यायस्व) वियुक्त कर। (वयम्) हम लोग (गोभिः) गौओं से, (अश्वैः) घोड़ों से, (पशुभिः) [हाथी भैंस भेड़ आदि] अन्य पशुओं से, (प्रजया) सन्तान भृत्य आदि से, (गृहैः) घरों से, और (धनेन) धन से (आ) सब प्रकार (प्यासिषीमहि) बढ़ें ॥५॥

    भावार्थ

    चन्द्रमा आदि के उत्तम गुण कुव्यवहार से दुःखदायक और सुव्यवहार से सुखदायक होते हैं ॥५॥ (प्यासिषीमहि) के स्थान पर पं० सेवकलाल के पुस्तक में (प्यायिषीमहि) पाठ है ॥

    टिप्पणी

    ५−(यः) शत्रुः (अस्मान्) धार्मिकान् (द्वेष्टि) विरोधयति (यम्) (वयम्) (द्विष्मः) विरोधयामः (तस्य) तम् (त्वम्) हे चन्द्र (प्राणेन) जीवनेन (आ) वियोगे-यथा आपद् शब्दे (आ प्यायस्व) वियोजय (आ) समन्तात् (वयम्) (प्यासिषीमहि) ओप्यायी वृद्धौ, आशिषि लिङि यकारस्थाने सकारश्छान्दसः। प्यायिषीमहि-यथा पं० सेवकलालस्य पुस्तके पाठः। वर्धिषीमहि। अन्यत्पूर्ववत्-म० ४॥

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    विषय

    आप्यायित

    पदार्थ

    १. (यः) = जो (अस्मान् द्वेष्टि) = समाज के हम सब सध्यों से अप्रीति करता है, (यं वयं द्विष्मः) = जिसके प्रति हम प्रीतिवाले नहीं होते, हे चन्द्र ! (त्वम्) = तू (तस्य प्राणेन) = उसके प्राण से (आप्यायस्व) = आप्यायित हो। उसके प्राण का अपहरण करके पूर्णता को प्राप्त हो। यहाँ काव्यमय भाषा में कहा गया है कि इस सर्वद्वेषी पुरुष के प्राणों को अपहत करके चन्द्र पूर्ण बने। २. (वयम्) = हम भी (गोभिः अश्वैः) = ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों (प्रजया पशुभिः) = उत्तम सन्तानों, गवादि पशुओं, तथा (गृहै: धनेन) = घर व धन के दृष्टिकोण से (आप्यासिषीमहि) = आप्यायित हों।

    भावार्थ

    हम समाज में किसी के प्रति भी द्वेषवाले न होते हुए इन्द्रियों, सन्तानों, पशुओं, गृह व धन के दृष्टिकोण से पूर्ण बनें।

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    भाषार्थ

    हे क्षत्रिय या सेनापति ! (यः) जो परकीय राजा (अस्मान् द्वेष्टि) हमारे साथ द्वेष करता है, और (यम्) जिसके साथ (वयम्) हम [प्रतिक्रिया में] (द्विष्मः) द्वेष करते है, (तस्य प्राणेन) उसके प्राण द्वारा अर्थात् उसके प्राण का अपहरण कर उसे मार कर (त्वम्) तू (आप्यायस्व) वृद्धि को प्राप्त कर। और (वयम्) हम प्रजाजन (गोभिः.....) गौओं, अश्वों, प्रजा, पशुओं, गृहों, धनों द्वारा (आप्पासिषीमहि) पूर्णतया वृद्धि प्राप्त करें।

    टिप्पणी

    [मृतराजा की राष्ट्रसम्पत्तियों गोओं आदि का अपहरण कर समृद्धि प्राप्त करना]।

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    विषय

    सूर्य और चन्द्र।

    भावार्थ

    हे प्रभो ! (यः) जो (अस्मान्) हम से (द्वेष्टि) द्वेष करता है, प्रेम का व्यवहार नहीं करता और (यं च) जिसकों (वयं द्विष्मः) हम भी स्नेह से नहीं देखते (तस्य) उसके (प्राणेन) प्राण = जीवन के साधनों से हमें (प्यायस्व) बढ़ा और (वयं) हम (गोभिः, अश्वैः, प्रजया, पशुभिः, गृहैः धनेन) गौओं, घोड़ों, प्रजाओं, पशुओं, गृहों और धनों से (आ प्यासिषीमहि) सब प्रकार से वृद्धि को प्राप्त हों।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। सावित्री सूर्याचन्द्रमसौ च देवताः। १, ६ त्रिष्टुप्। २ सम्राट। ३ अनुष्टुप्। ४, ५ आस्तारपंक्तिः। षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Two Divine Children

    Meaning

    Whoever hates us, whoever we hate (is not full, not perfect, gravely wanting), him you help with prana and spiritual vision to fill up the void. May we all be full, perfect and fulfilled with cows, horses, progeny, cattle, homes and wealth.

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    Translation

    Who hates us and whom we hate - with his vital breath may you wax and increase. May we wax and increase with cows, with horses, with progeny, with cattle, with homes and with wealth.

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.86.5AS PER THE BOOK

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    Translation

    Let this moon inflate with vitality to him who hates us and also to him whom we detest. May we grow rich in horses, cows, children, cattle’s, house and wealth.

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    Translation

    O God, place at our disposal the resources of the life of the man, who dislikes us and whom we do not like. May we grow rich in kine, horses, children, cattle, houses, wealth.

    Footnote

    The man who hates ns should be brought under our control, so that we may reform him and remove his feeling of hatred.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(यः) शत्रुः (अस्मान्) धार्मिकान् (द्वेष्टि) विरोधयति (यम्) (वयम्) (द्विष्मः) विरोधयामः (तस्य) तम् (त्वम्) हे चन्द्र (प्राणेन) जीवनेन (आ) वियोगे-यथा आपद् शब्दे (आ प्यायस्व) वियोजय (आ) समन्तात् (वयम्) (प्यासिषीमहि) ओप्यायी वृद्धौ, आशिषि लिङि यकारस्थाने सकारश्छान्दसः। प्यायिषीमहि-यथा पं० सेवकलालस्य पुस्तके पाठः। वर्धिषीमहि। अन्यत्पूर्ववत्-म० ४॥

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