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  • यजुर्वेद - अध्याय 2/ मन्त्र 12
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - भूरिक् बृहती, स्वरः - मध्यमः
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    ए॒तं ते॑ देव सवितर्य॒ज्ञं प्राहु॒र्बृह॒स्पत॑ये ब्र॒ह्मणे॑। तेन॑ य॒ज्ञम॑व॒ तेन॑ य॒ज्ञप॑तिं॒ तेन॒ माम॑व॥१२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒तम्। ते॒। दे॒व॒। स॒वि॒तः॒। य॒ज्ञम्। प्र। आ॒हुः॒। बृह॒स्पत॑ये। ब्र॒ह्मणे॑। तेन॑। य॒ज्ञम्। अ॒व॒। तेन॑। य॒ज्ञप॑ति॒मिति॑ य॒ज्ञऽप॑तिम्। तेन॑। माम्। अ॒व॒ ॥१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एतन्ते देव सवितर्यज्ञम्प्राहुर्बृहस्पतये ब्रह्मणे । तेन यज्ञमव तेन यज्ञपतिं तेन मामव ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एतम्। ते। देव। सवितः। यज्ञम्। प्र। आहुः। बृहस्पतये। ब्रह्मणे। तेन। यज्ञम्। अव। तेन। यज्ञपतिमिति यज्ञऽपतिम्। तेन। माम्। अव॥१२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 2; मन्त्र » 12
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    भाषार्थ -

    हे (देव!) दिव्य सुख और गुणों के दातः! (सवितः) सकल ऐश्वर्य के विधाता जगदीश्वर! वेद और विद्वान् लोग जिस (एतम्) इस पूर्वोक्त सुखदायक यज्ञ को आप से प्रकाशित हुआ (प्राहुः) बतलाते हैं, जिससे (बृहस्पतये) सब से बड़ी वेद-वाणी का पालन करने वाले (ब्रह्मणे) चारों वेदों के अध्ययन से ब्रह्मा के पद को जिसने प्राप्त किया है, उस विद्वान् को सुख एवं श्रेष्ठ अधिकार प्राप्त होते हैं, (तेन) उस महान् विज्ञान के प्रदान से इस (यज्ञम्) पूर्वोक्त तीन प्रकार के यज्ञ की, [तेन] उस यज्ञ का रूप धर्मानुष्ठान से (यज्ञपतिम्) यज्ञानुष्ठान से यज्ञ की रक्षा करने वाले की, और (तेन) उस विद्या-धर्म रूप प्रकाश के द्वारा (माम्) मेरी भी (अव) सदा रक्षा कर॥२।१२॥

    भावार्थ -

    ईश्वर ने सृष्टि के प्रारम्भ में दिव्य गुणों वाले अग्नि, वायु, रवि (आदित्य) और अग ऋषियों के लिए चारों वेदों का उपदेश करके सब मनुष्यों को विद्याप्राप्ति से सुखी होने के लिये यज्ञ करने की विधि का उपदेश किया तथा इसी से रक्षा की विधि भी बतलाई।

     विद्या और शुद्धि क्रिया के बिना किसी को भी सुख और रक्षा की प्राप्ति नहीं हो सकती इसलिए सब लोग परस्पर प्रीति के लिये उनकी वृद्धि और रक्षा प्रयत्नपूर्वक सदा करें।

    और--जो ग्यारहवें मन्त्र के द्वारा यज्ञफल के उपभोग का उपदेश किया गया है,उसका प्रकाश ईश्वर ने ही किया है॥२।१२॥

    भाष्यसार -

    १. ईश्वर--दिव्य गुणों और सुखों का दाता और सकल ऐश्वर्य का विधाता है। यज्ञ का रक्षक है।

    २. यज्ञ--वेद और विद्वान् लोग कहते हैं कि यज्ञ का प्रकाश ईश्वर ने किया है। यज्ञ से ही बृहस्पति और ब्रह्मा का पद प्राप्त होता है। वेदवाणी के पालक को बृहस्पति और चारों वेदों के अध्येता को ब्रह्मा कहते है।

    ३. ईश्वर प्रार्थना--हे जगदीश्वर! आप महान् विज्ञान के प्रदान से उक्त तीन प्रकार के यज्ञ की रक्षा कीजिए। धर्मानुष्ठान की शिक्षा से यज्ञपति की रक्षा कीजिए। विद्या और धर्म को मेरे हृदय में प्रकाशित करके मेरी रक्षा कीजिए।

    विशेष -

    परमेष्ठी प्रजापतिः। सविता=ईश्वरः॥ भुरिग्ब्रिहती। मध्यमः॥

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