Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 171 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 171/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - मरुतः छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    स्तु॒तासो॑ नो म॒रुतो॑ मृळयन्तू॒त स्तु॒तो म॒घवा॒ शम्भ॑विष्ठः। ऊ॒र्ध्वा न॑: सन्तु को॒म्या वना॒न्यहा॑नि॒ विश्वा॑ मरुतो जिगी॒षा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्तु॒तासः॑ । नः॒ । म॒रुतः॑ । मृ॒ळ॒य॒न्तु॒ । उ॒त । स्तु॒तः । म॒घऽवा॑ । शम्ऽभ॑विष्ठः । ऊ॒र्ध्वा । नः॒ । स॒न्तु॒ । को॒म्या । वना॑नि । अहा॑नि । विश्वा॑ । म॒रु॒तः॒ । जि॒गी॒षा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्तुतासो नो मरुतो मृळयन्तूत स्तुतो मघवा शम्भविष्ठः। ऊर्ध्वा न: सन्तु कोम्या वनान्यहानि विश्वा मरुतो जिगीषा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्तुतासः। नः। मरुतः। मृळयन्तु। उत। स्तुतः। मघऽवा। शम्ऽभविष्ठः। ऊर्ध्वा। नः। सन्तु। कोम्या। वनानि। अहानि। विश्वा। मरुतः। जिगीषा ॥ १.१७१.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 171; मन्त्र » 3
    अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे मरुतोऽस्माभिः स्तुतासो भवन्तो नोऽस्मान् मृळयन्तु उतापि स्तुतस्सन्मघवा शम्भविष्ठोऽस्तु। हे मरुतो यथा नो विश्वा कोम्या जिगीषा वनान्यहान्यूर्ध्वा सन्ति तथा युष्माकमपि सन्तु ॥ ३ ॥

    पदार्थः

    (स्तुतासः) प्रशंसिता (नः) अस्मान् (मरुतः) बलिष्ठा विद्वांसः (मृळयन्तु) सुखयन्तु (उत) अपि (स्तुतः) प्रशंसां प्राप्तः (मघवा) पूजितुं योग्यः (शम्भविष्ठः) सुखस्यः भावयितृतमः (ऊर्ध्वा) उत्कृष्टानि (नः) अस्माकम् (सन्तु) (कोम्या) प्रशंसनीयानि (वनानि) भजनीयानि (अहानि) दिनानि (विश्वा) सर्वाणि (मरुतः) शूरवीराः (जिगीषा) जेतुमिष्टानि ॥ ३ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्येषु यादृशा गुणकर्मस्वभावास्स्युः तेषां तादृश्येव प्रशंसा कार्या त एव प्रशंसिता भवेयुर्येऽन्येषां सुखोन्नतये प्रयतेरन् त एव सेवनीयाः स्युर्य इह पापाचरणं विहाय धार्मिका भवेयुस्ते प्रतिदिनं विद्यासुशिक्षावृद्धय उद्योगिनः स्युः ॥ ३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (मरुतः) बलवान् विद्वानो ! हम लोगों से (स्तुतासः) स्तुति किये हुए आप (नः) हमको (मृळयन्तु) सुखी करो (उत) और (स्तुतः) प्रशंसा को प्राप्त होता हुआ (मघवा) सत्कार करने योग्य पुरुष (शम्भविष्ठः) अतीव सुख की भावना करनेवाला हो। हे (मरुतः) शूरवीर जनो ! जैसे (नः) हमारे (विश्वा) समस्त (कोम्या) प्रशंसनीय (जिगीषा) जीतने और (वनानि) सेवने योग्य (अहानि) दिन (ऊर्ध्वा) उत्कृष्ट हैं वैसे तुम्हारे (सन्तु) हों ॥ ३ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जिनमें जैसे गुण, कर्म, स्वभाव हों, उनकी वैसी ही प्रशंसा करें और प्रशंसा योग्य वे ही हों जो औरों की सुखोन्नति के लिये प्रयत्न करें और वे ही सेवने योग्य हों जो पापाचरण को छोड़ धार्मिक हों, वे प्रतिदिन विद्या और उत्तम शिक्षा की वृद्धि के अर्थ उद्योगी हों ॥ ३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    स्तुति व अधिकाधिक शान्ति

    पदार्थ

    १. (स्तुतासः) = [स्तुतमस्यास्तीति स्तुतः] प्रभु का स्तवन करनेवाले (मरुतः) = ये प्राण (नः) = हमें (मृळयन्तु) = सुखी करें। हम प्राणों का संयम करें। प्राणसंयम से चित्त का संयम करके हम प्रभु की ओर झुकाववाले हों । (उत) = और स्तुतः स्तुति किया गया वह (मघवा) = ऐश्वर्यशाली प्रभु (शम्भविष्ठः) = हमें अधिक से अधिक शान्ति देनेवाला हो । २. (नः) = हमारे (कोम्या) = (सोम्या) सौम्यता से सम्पन्न अथवा [काम्यानि- द०] प्रशंसनीय (वनानि) = सम्भजन व उपासन (ऊर्ध्वा सन्तु) = अधिक और अधिक उत्कृष्ट होते चलें । ३. इस प्रकार स्तवन में प्रवृत्त हुए हम लोगों को (विश्वा अहानि) = सब दिन हे (मरुतः) = प्राणो ! (जिगीषा) = काम-क्रोधादि को जीतने की इच्छा से (ऊर्ध्वा सन्तु) = उत्कृष्ट होते चलें। जो दिन वासनाओं को जीतने की इच्छा व प्रयत्न से बीतता है, वही दिन हमारे उत्कर्ष का कारण बनता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - हमारी स्तवन की वृत्ति बढ़ती चले और हम प्राणसाधना द्वारा वासनाओं को अभिभूत करें ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    विद्वानों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( मरुतः ) विद्वान् पुरुषो ! आप लोग ( स्तुतासः ) स्तुति किये जाकर और गुरुओं द्वारा उत्तम रीति से उपदेश प्राप्त करके ( नः मृडयन्तु ) हमें सदा सुखी करो । ( उत ) और ( मघवा ) उत्तम ज्ञान और ऐश्वर्य का स्वामी, पूज्य पुरुष ( स्तुतः ) अति प्रशंसित होकर ( नः ) हमारे लिये ( शंभविष्ठः ) अत्यन्त शान्ति और कल्याण का करने वाला हो । हे (मरुतः) विद्वान् वीर पुरुषो ! ( नः ) हमारे पास ( विश्वा अहानि ) सब दिनों ( ऊर्ध्वाः ) सब से ऊंचे ( काम्या ) अत्यन्त सुन्दर, उत्तम, ( वनानि ) सेवने योग्य ऐश्वर्य और (जिगीषा ) जीतने योग्य राज्य सुख प्राप्त हों ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्त्य ऋषिः । मरुतो देवता ॥ छन्द:— १, ५ निचृत् त्रिष्टुप । २ त्रिष्टुप । ४, ६ विराट् त्रिष्टुप । ३ भुरिक पङ्क्तिः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी ज्यांच्या अंगी जसे गुण, कर्म, स्वभाव असतात त्याची तशीच प्रशंसा करावी व जे प्रशंसनीय असतात ते इतरांच्या सुखोन्नतीसाठी प्रयत्न करतात व तेच स्वीकारणीय असतात. जे पापाचरण सोडून धार्मिक बनतात त्यांनी प्रत्येक दिवशी विद्या व सुशिक्षणाची वाढ करून उद्योगी बनावे. ॥ ३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Maruts, veteran visionaries of life and divinity, powers of knowledge for advancement, admired and honoured as you are, pray give us peace and well-being. Indra, lord of honour and glory, listen to our prayer and worship, and bless us with peace and prosperity. Maruts, heroes of tempestuous speed and energy, let all our future days be distinguished by high ambition, cherished goals and love of victory.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Again the virtues of the learned persons.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Let us praise the mighty learned persons. They bestow happiness upon us. May the Honorable President of the Assembly be source of great delight to us. O heroes! may all the ensuing days bring victory and success and prove gratifying and full of enjoyment.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should admire persons truly for their virtues, actions and temperament. Those persons only deserve praise who always endeavor for greater happiness of the others. They only deserve to be served who having given up all sinful conduct and are righteous. They should always put forth their concerted efforts to advance the cause of wisdom and good education.

    Foot Notes

    (मरुतः) बलिष्ठाः शूरवीरा विद्वांसः = Mighty heroic learned persons. (कोम्या) प्रशंसनीयानि = Admirable. (वनानि) भजनीयानि = Worth serving.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top