ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 100/ मन्त्र 3
आ नो॑ दे॒वः स॑वि॒ता सा॑विष॒द्वय॑ ऋजूय॒ते यज॑मानाय सुन्व॒ते । यथा॑ दे॒वान्प्र॑ति॒भूषे॑म पाक॒वदा स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । दे॒वः । स॒वि॒ता । सा॒वि॒ष॒त् । वयः॑ । ऋजु॒ऽय॒ते । यज॑मानाय । सु॒न्व॒ते । यथा॑ । दे॒वान् । प्र॒ति॒ऽभूषे॑म । पा॒क॒ऽवत् । आ । स॒र्वऽता॑तिम् । अदि॑तिम् । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो देवः सविता साविषद्वय ऋजूयते यजमानाय सुन्वते । यथा देवान्प्रतिभूषेम पाकवदा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नः । देवः । सविता । साविषत् । वयः । ऋजुऽयते । यजमानाय । सुन्वते । यथा । देवान् । प्रतिऽभूषेम । पाकऽवत् । आ । सर्वऽतातिम् । अदितिम् । वृणीमहे ॥ १०.१००.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 100; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(नः) हमारा (सविता देवः) उत्पादक परमात्मदेव (ऋजूयते) ऋजुगामी सरलप्रवृत्तिशील (सुन्वते) उपासनारस निष्पादन करनेवाले (यजमानाय) आत्मा के लिए (वयः) विज्ञान को (आसाविषत्) भलीभाँति प्राप्त कराता है (यथा देवान्) जैसे ही इन्द्रियों को (प्रतिभूषेम) संस्कृत करें (पाकवत्) पाक के समान उत्तम कर्मफलयुक्त करें (सर्वतातिम्) उस सर्वजगद्विस्तारक (अदितिम्) अविनश्वर परमात्मा को (आवृणीमहे) हम भलीभाँति वरते हैं, मानते हैं ॥३॥
भावार्थ
उत्पादक परमात्मा सरल उपासक आत्मा के लिए ऐसा विज्ञान प्राप्त करता है, जिससे इन्द्रियों को संस्कृत तथा शुभफल भोगवाली बनाया जा सके, उस सर्वजगद्विस्तारक अविनाशी परमात्मा को मानना- अपनाना चाहिये ॥३॥
विषय
'ऋजूयन्-यजमान- सुन्वन्
पदार्थ
[१] (नः) = हमारे लिए (देवः सविता) = दिव्यगुणों का पुञ्ज, प्रेरक [सू प्रेरणे] व उत्पादक [सु अभिषवे] प्रभु (वयः) = उत्कृष्ट अन्न को (आसाविषत्) = उत्पन्न करे । (ऋजूयते) = ऋजु -सरल-मार्ग से चलनेवाले, (यजमानाय) = यज्ञशील, (सुन्वते) = सोम का अपने में अभिषव [उत्पादन] करनेवाले के लिए सोमशक्ति [वीर्य-शक्ति] को अपने में सुरक्षित करनेवाले के लिए प्रभु (पाकवत्) = अत्यन्त प्रशंसनीय [praiseworthy ] (वय:) = अन्न को दें, (यथा) = जिससे (देवान्) = दिव्यगुणों को (प्रतिभूषेम) = अपने में हम सुशोभित कर पायें। [२] अन्न की सात्त्विकता वृत्ति की सात्त्विकता का कारण बनती है । सात्त्विक अन्न के सेवन से हमारे में दिव्यगुणों का विकास होता है और हम इन दिव्यगुणों से अपने जीवन को सुशोभित कर पाते हैं । इस सात्त्विक अन्न के सेवन से हम (सर्वतातिम्) - सब दिव्यगुणों का विस्तार करनेवाले (अदितिम्) = स्वास्थ्य को आवृणीमहे वरते हैं । स्वस्थ बनकर सभी उत्तम चीजों के प्राप्त करने के योग्य होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - ऋजुमार्ग से चलते हुए, यज्ञशील बनकर, सोम के सम्पादन के द्वारा हम उत्कृष्ट अन्न का सेवन करते हुए अपने जीवन को दिव्यगुणों से अलंकृत करते हैं।
विषय
प्रभु से बलादि की याचना, जिससे हम विद्वानों को तृप्त कर सकें।
भावार्थ
(सविता देवः) सब जगत् का उत्पादक, सूर्यवत् सबका प्रेरक, (नः) हम में से परमेश्वर (ऋजूयते) सरल धर्म मार्ग से जाने वाले (सुन्वते यजमानाय) उपासना करने वाले, आत्म-समर्पक, यज्ञशील जन के हितार्थ (पाकवत्) पाक से युक्त (वयः) अन्न के तुल्य (पाकवत् वयः) परिपक्व बल, ज्ञान (साविषत्) प्रदान करे। (यथा) जिस से हम (देवान् प्रति भूषेम) विद्वान् जनों की अपने प्राणों के तुल्य सेवा करें, उन्हें तृप्त, संतुष्ट करें। हम (सर्वतातिम् अदितिम् आवृणीमहे) उस सर्वमंगलकारी, जगद्-विस्तारक, अखण्ड तेजस्वी प्रभु से याचना और प्रार्थना करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्दुवस्युर्वान्दनः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः–१–३ जगती। ४, ५, ७, ११ निचृज्जगती। ६, ८, १० विराड् जगती। ९ पादनिचृज्जगती। १२ विराट् त्रिष्टुप्। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(नः सविता देवः) अस्माकमुत्पादको देवः परमात्मा (ऋजूयते सुन्वते यजमानाय) ऋजुगामिने-उपासनारसनिष्पादयित्रे-आत्मने, “आत्मा यजमानः” [कौ० १७।७] (वयः-आ साविषत्) विज्ञानम् “वयः-विज्ञानम्” [ऋ० १।७१।७ दयानन्दः] समन्तात् प्रापयति (यथा देवान् प्रतिभूषेम) यथा हीन्द्रियाणि प्रतिभूषयेम संस्कृतानि कुर्याम (पाकवत्) पाकमिव सुपक्वफलयुक्तानि कुर्याम (सर्वतातिम्-अतिथिम्-आवृणीमहे) अतस्तं सर्वजगद्विस्तारकम-विनश्वरं परमात्मनि समन्ताद् वृणुयाम ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May the self-refulgent generous Savita, divine inspirer and light giver, bless the simple, natural and creative yajamana with good health, long life and wealth of maturity and discipline of performance, so that we may serve and exalt the devas with homage and piety of mind and soul. With total submission and faith, we love and adore the universal mother Infinity.
मराठी (1)
भावार्थ
उत्पन्नकर्ता परमात्मा उपासक आत्म्यासाठी असे विज्ञान प्राप्त करवितो ज्यामुळे इंद्रिये परिष्कृत व शुभफल भोगणारी बनविली जाऊ शकतात. त्यासाठी जग विस्तारक अविनाशी परमात्म्याला स्वीकारावे. ॥३॥
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