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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 100 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 100/ मन्त्र 5
    ऋषिः - दुवस्युर्वान्दनः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    इन्द्र॑ उ॒क्थेन॒ शव॑सा॒ परु॑र्दधे॒ बृह॑स्पते प्रतरी॒तास्यायु॑षः । य॒ज्ञो मनु॒: प्रम॑तिर्नः पि॒ता हि क॒मा स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रः॑ । उ॒क्थेन॑ । शव॑सा । परुः॑ । द॒धे॒ । बृह॑स्पते । प्र॒ऽत॒री॒ता । अ॒सि॒ । आयु॑षः । य॒ज्ञः । मनुः॑ । प्रऽम॑तिः । नः॒ । पि॒ता । हि । क॒म् । आ । स॒र्वऽता॑तिम् । अदि॑तिम् । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र उक्थेन शवसा परुर्दधे बृहस्पते प्रतरीतास्यायुषः । यज्ञो मनु: प्रमतिर्नः पिता हि कमा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः । उक्थेन । शवसा । परुः । दधे । बृहस्पते । प्रऽतरीता । असि । आयुषः । यज्ञः । मनुः । प्रऽमतिः । नः । पिता । हि । कम् । आ । सर्वऽतातिम् । अदितिम् । वृणीमहे ॥ १०.१००.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 100; मन्त्र » 5
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (उक्थेन) प्रशंसनीय (शवसा) बल से (परुः) हमारे पर्वों-जोड़ों को (दधे) संयुक्त करे-जोड़े-जोड़ता है (बृहस्पते) हे वेदवाणी के स्वामी ! तू (आयुषः) आयु का (प्रतरीता) बढ़ानेवाला (असि) है (यज्ञः) यजनीय-सङ्गमनीय (मनुः) मननशक्ति देनेवाला (प्रमतिः) प्रकृष्ट मतिवाला सर्वज्ञ (नः-पिता हि) हमारा पिता है (कम्) सुख प्रदान कर (सर्वतातिम्०) पूर्ववत् ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा शरीर के जोड़ों को जोड़ता है, आयु को बढ़ाता है, सदा समागम के योग्य तथा पितासमान रक्षक है, उस जगद्विस्तारक अनश्वर को मानना और उसकी उपासना करना चाहिए ॥५॥

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    विषय

    मन में स्तवन, शरीर में शक्ति

    पदार्थ

    [१] (इन्द्रः) = वे परमैश्वर्यशाली प्रभु (उक्थेन) = स्तोत्रों के हेतु से तथा (शवसा) = बल के हेतु से (परुः) = पालन व पूरण करनेवाले अन्न के द्वारा हमारे अंगों को (दधुः) = धारण करते हैं । [परु:- अन्न ज्य०, परुः=limb]। (बृहस्पते) = हे ज्ञान के स्वामिन् प्रभो! आप (आयुषः) = जीवन के (प्रतरीता असि) = दीर्घ करनेवाले हैं। प्रभु हमारी वृत्ति को ऐसा बनाते हैं कि हम शरीर में शक्ति को धारण करनेवाले बनें और मन में स्तवन की वृत्ति को । इस प्रकार शरीर में व्याधियों से हम आक्रान्त नहीं होते तथा मन में आधियों के आक्रमण से बचे रहते हैं । यही दीर्घजीवन का मार्ग है। [२] वे प्रभु (यज्ञः) = पूजा के योग्य हैं, हमें सब कुछ देनेवाले हैं। (मनुः) = ज्ञान-विज्ञान के पुञ्ज हैं। (प्रमतिः) = हमें प्रकृष्ट बुद्धि के देनेवाले हैं । (नः पिता) = हमारे रक्षक हैं, (हि कम्) = निश्चय से सुखस्वरूप हैं । इनसे हम (अदितिम्) = उस स्वास्थ्य का (आवृणीमहे) = सर्वथा वरण करते हैं जो (सर्वतातिम्) = सब गुणों का विस्तार करनेवाला है।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु हमारा धारण करते हैं, हमारे मनों में स्तवन की वृत्ति को तथा शरीर में शक्ति को प्राप्त कराते हैं। इस प्रकार हमारे दीर्घायुष्य को सिद्ध करते हैं ।

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    विषय

    सर्वपालक प्रभु का माता पिता के तुल्य वरण।

    भावार्थ

    (इन्द्रः) जल, अन्न का दाता, ऐश्वर्यवान् प्रभु (उक्थेन शवसा) स्तुत्य वा उपदेश योग्य, ज्ञान-बल से (परुः दधे) सबके पालक अन्न का धारण-पोषण करता और सब को प्रदान करता है। हे (बृहस्पते) महान् विश्व एवं ब्रह्म-ज्ञान के पालक प्रभो ! तू ही (आयुषः प्र-तरीता असि) जीवन, आयु का देने और बढ़ाने वाला है। तू (मनुः) ज्ञानवान्, माननीय (प्र-मतिः) सब से उत्तम बुद्धि और ज्ञान से सम्पन्न, सर्वोत्कृष्ट विचारवान् और (यज्ञः) सब सुखों का दाता, सर्वपूज्य, (नः पिता हि कम्) हमारा पालक पिता-मातावत् है। उस (सर्व-तातिम्) समस्त जगत् के हितकारी (अदितिम्) भूमि सूर्यवत् अन्न जल, प्रकाश तापवत् ज्ञान अन्न जीवन के देने वाले तुझको (आवृणीमहे) हम सब प्रकार से वरण करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्दुवस्युर्वान्दनः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः–१–३ जगती। ४, ५, ७, ११ निचृज्जगती। ६, ८, १० विराड् जगती। ९ पादनिचृज्जगती। १२ विराट् त्रिष्टुप्। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्द्रः-उक्थेन शवसा परुः-दधे) ऐश्वर्यवान् परमात्मा प्रशंसनीयेन बलेनास्मदादीनां परूंषि पर्वाणि सन्धत्ते संयोजयति (बृहस्पते) हे वेदवाचः स्वामिन् ! (आयुषः-प्रतरीता-असि) त्वमायुषो वर्धयिताऽसि (यज्ञः-मनुः-प्रमतिः-पिता-नः-हि) यजनीयः सङ्गमनीयो मन्ता सर्वज्ञः सोऽस्माकं पालकः परमात्मा ह्यसि (कम्) सुखं प्रयच्छतु (सर्वतातिम्०) पूर्ववत् ॥५॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    With divine energy realisable by adoration, lndra sustains every state and every stage of life and its structure. O lord of Infinity, Brhaspati, you are the harbinger of life and health of higher order for us. Reflected in yajna, power of thought and meditation, holiness of intelligence, you are our sustainer as father giver of happiness. We honour and adore Aditi, imperishable Infinity, the universal mother.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर शरीराच्या अवयवाचे सांधे जोडतो. आयुष्य वाढवितो. तो सदैव संग करण्यायोग्य आहे. पित्याप्रमाणे रक्षक आहे. त्या जगत विस्तारक, अनश्वर परमेश्वराला मानले पाहिजे.

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