ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 117/ मन्त्र 8
ऋषिः - भिक्षुः
देवता - धनान्नदानप्रशंसा
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
एक॑पा॒द्भूयो॑ द्वि॒पदो॒ वि च॑क्रमे द्वि॒पात्त्रि॒पाद॑म॒भ्ये॑ति प॒श्चात् । चतु॑ष्पादेति द्वि॒पदा॑मभिस्व॒रे स॒म्पश्य॑न्प॒ङ्क्तीरु॑प॒तिष्ठ॑मानः ॥
स्वर सहित पद पाठएक॑ऽपात् । भूयः॑ । द्वि॒ऽपदः॑ । वि । च॒क्र॒मे॒ । द्वि॒ऽपात् । त्रि॒ऽपाद॑म् । अ॒भि । ए॒ति॒ । प॒श्चात् । चतुः॑ऽपात् । ए॒ति॒ । द्वि॒ऽपदा॑म् । अ॒भि॒ऽस्व॒रे । स॒म्ऽपश्य॑न् । प॒ङ्क्तीः । उ॒प॒ऽतिष्ठ॑मानः ॥
स्वर रहित मन्त्र
एकपाद्भूयो द्विपदो वि चक्रमे द्विपात्त्रिपादमभ्येति पश्चात् । चतुष्पादेति द्विपदामभिस्वरे सम्पश्यन्पङ्क्तीरुपतिष्ठमानः ॥
स्वर रहित पद पाठएकऽपात् । भूयः । द्विऽपदः । वि । चक्रमे । द्विऽपात् । त्रिऽपादम् । अभि । एति । पश्चात् । चतुःऽपात् । एति । द्विऽपदाम् । अभिऽस्वरे । सम्ऽपश्यन् । पङ्क्तीः । उपऽतिष्ठमानः ॥ १०.११७.८
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 117; मन्त्र » 8
अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
पदार्थ
(एकपात्) एकभाग धनादि साधनवाला मनुष्य उपयोग करता हुआ (द्विपदः) द्विगुण साधनवाले मनुष्य से (भूयः-वि चक्रमे) अधिक विक्रम करता है (द्विपात्) दो भाग साधनवाला उसका उपयोग करता हुआ (त्रिपादम्) तीन भाग साधनवाले जन को-मनुष्य को (पश्चात्) पीछे (अभि एति) धकेल देता है-कर देता है (चतुष्पात्) चार धनादिभाग रखनेवाला (उपतिष्ठमानः) बैठा हुआ-उपयोग न करता हुआ (द्विपदाम्) दो भाग साधनवालों की (पङ्क्तीः) पादरेखाओं पगडण्डियों या पदचिह्नों को (सम्पश्यन्) देखता हुआ (अभिस्वरे) उनके आदेश पर (एति) चलता है ॥८॥
भावार्थ
धनादि साधन का एक भाग रखनेवाला मनुष्य उसका सदुपयोग करता हुआ द्विगुण साधनवाले से अधिक विक्रम और सफलता प्राप्त करता है, दो भाग साधनवाला उसका उपयोग करता हुआ तीन भाग साधनवाले को पीछे ढकेल देता है। चार भाग साधनवाला केवल बैठा हुआ कुछ न करता हुआ दो भाग साधनवाले उपयोग करते हुए मनुष्यों की पादरेखाओं को देखता हुआ उनके आदेश पर चलता है-चला करता है ॥८॥
विषय
दान धन के अनुपात में नहीं
पदार्थ
[१] दान धन की न्यूनाधिकता पर निर्भर नहीं है, यह तो मन की उदारता व संकुचितता के साथ सम्बद्ध है । उदार मनवाला एकपाद्- 'एक भाग' धनवाला पुरुष (द्विपदः) = संकुचित मनवाले 'द्विभाग धन' वाले पुरुष से (भूयः विचक्रमे) = अधिक पराक्रम करनेवाला होता है । एक भाग धनवाला द्विभाग धनवाले से अधिक दान दे देता है । [२] (द्विपात्) = द्विभाग धनवाला पुरुष (त्रिपादम्) = त्रिभाग धनवाले (पश्चात्) = पुरुष के पीछे-पीछे (अभ्येति) = आनेवाला होता है । अर्थात् जैसे कई बार पच्चीस रुपयेवाला पचास रुपयेवाले से अधिक दान दे देता है, इसी प्रकार पचास रुपयेवाला, उदारता के होने पर, पचहत्तर रुपयेवाले के बराबर दान देनेवाला बनता है। [३] (चतुष्पाद्) = चार भाग धनवाला, अर्थात् सौ रुपयेवाला (द्विपदाम्) = दो भाग धनवालों के पचास रुपये वालों के (अभिस्वरे) = नामोच्चारण में (एति) = आता है, अर्थात् जितना द्विपदों का दान सुनाया जाता है उतना ही इस चतुष्पात् का दान होता है। यह चतुष्पात् उन द्विपदों को (संपश्यन्) = देखता हुआ पंक्ती (उपतिष्ठमानः) = उनकी पंक्तियों का उपस्थान करता है, उनके समीप उपस्थित हुआ हुआ दिल में उनका आदर ही करता है कि 'मेरे से आधी सम्पत्तिवाले होते हुए भी ये मेरे बराबर देनेवाले हुए हैं'। इस प्रकार दान की न्यूनाधिकता धन पर आश्रित न होकर हृदय की विशालता पर आश्रित है।
भावार्थ
भावार्थ- हम विशाल हृदय होंगे तो अधिक दान देनेवाले होंगे। अधिक दान देने से हृदय को विशाल व पवित्र बना पाएँगे ।
विषय
साधनों के सिवाय सामर्थ्य, दानशीलता का महत्त्व।
भावार्थ
(एक-पात् भूयः) एक आश्रय वाला भी (द्वि-पदः) दौ पैर वाले अनेक मनुष्यों से (भूयः वि चक्रमे) बहुत अधिक विक्रमशील होता है। और (द्वि-पात्) दो चरण वाला मनुष्य भी (त्रि-पादम्) तीन चरण वाले, ज्ञानी पुरुष के (पश्चात् अभि एति) पीछे २ आता है। और (पंक्तीः) पद पंक्तियों को (सम्पश्यन्) देखता हुआ (उप-तिष्ठमानः) उपस्थित होकर (चतुष्पात्) चार पैर वाला पशु भी (द्विपदाम् अभिस्वरे) दो पाये मनुष्यों के स्थान में (एति) प्राप्त हो जाता है । इसलिये न्यूनाधिक पदों या साधनों या आश्रयों के ऊपर समृद्धि नहीं, प्रत्युत सामर्थ्य और दानशीलता पर ही उत्तमता निर्भर है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्भिक्षुः॥ इन्द्रो देवता—घनान्नदान प्रशंसा॥ छन्दः—१ निचृज्जगती—२ पादनिचृज्जगती। ३, ७, ९ निचृत् त्रिष्टुप्। ४, ६ त्रिष्टुप्। ५ विराट् त्रिष्टुप्। ८ भुरिक् त्रिष्टुप्। नवर्चं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(एकपात्-द्विपदः-भूयः-विचक्रमे) धनादि साधन का एक पाद एक भाग रखने वाला उसक सदुपयोग सत्प्रयोग-सदुद्योग के द्वारा दो पाद वाले दो भाग रखने वाले से अधिक विक्रम कर जाता है-आगे बढ जाता है- ऊपर उठ जाता है (द्विपात् त्रिपादं पश्चात्-अभ्येति) धनादि साधन के दो पाद वाला- दो भाग रखने वाला उसके सदुपयोग-सत्प्रयोग सदुद्योग से तीन पाद रखने वाले तीन भाग रखने वाले को पोछे प्रेरित कर देता है-पीछे ढकेल देता है । (चतुष्पात्-उपतिष्ठमान:) अन्न आदि साधन के चार पाद वाला- चार भाग रखने वाला बैठा हुआ- उसका सदुपयोग -सत्प्रयोग सदुद्योग न करता हुआ (द्विपदां पङ्क्तीः सम्पश्यन् अभिस्वरे-एति) अन्य सदुपयोग सत्प्रयोग सदुद्योग कर्ता दो पाद वालों दो भाग वालों की पगडण्डियों को देखता हुआ उनके अभिघोष- आदेश पर चलता है ॥८॥
टिप्पणी
"स्वृ शब्दे" (भ्वादि०)
विशेष
ऋषिः- भिक्षुः परमात्म सत्सङ्ग का भिक्षु गौणरूप में अन्न का भी भिक्षु परमात्मसत्सङ्गार्थ ही भिक्षु [(अन्न का भिक्षु)] देवता- धनान्नदान प्रशंसा, इन्द्रश्च (धनान्नदान की प्रशंसा और भिक्षाचर्या में अभीष्ट परमात्मा)
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एकपात्-द्विपदः-भूयः-वि चक्रमे) एकधनादिसाधनवान् पुरुषो द्विगुणसाधनवतो पुरुषात्खल्वधिकं विक्रमं करोति तदुपयोगं कुर्वन् (द्विपात्-त्रिपादं पश्चात्-अभि एति) द्विपात्-द्विसाधनवान् तदुपयोगं कुर्वन् त्रिपादं-त्रिपादवन्तं पश्चात् प्रेरयति (चतुष्पात्-उपतिष्ठमानः) चतुर्गुण-साधनवान् केवलमुपतिष्ठमानस्तदुपयोगं न कुर्वाणः (द्विपदां-पङ्क्तीः सम्पश्यन्-अभिस्वरे-एति) द्विसाधनभागवतां तदुपयोगं कुर्वतां पङ्क्तीः पादरेखाः पश्यन् तेषामादेशे “स्वृ शब्दे” [भ्वादि०] चलति ॥८॥
इंग्लिश (1)
Meaning
In the process of evolution and mutual exhortation, the man of the first order of wealth looks up to the man of double order of wealth and, if he be active and generous, may even surpass the doubly rich person. Similarly, the man of double order of wealth looks up to the man of triple wealth and may even surpass him. Later, the man of triple wealth looks up to the man of fourfold wealth and may overtake and even surpass him. Thus in evolution, competition, cooperation and mutual exhortation, the generous man of initiative goes on and on, watching and abiding in the line of the progressive evolution of humanity.
मराठी (1)
भावार्थ
धन इत्यादी साधनाचा एक भाग बाळगणारा माणूस त्याचा सदुपयोग करत द्विगुण साधनयुक्तापेक्षा अधिक विक्रम व सफलता प्राप्त करतो. दोन भाग साधन बाळगणारा माणूस त्याचा उपयोग करत तीन साधन बाळगणाऱ्याला मागे सारतो. चार साधन बाळगणारा केवळ बसलेला असून, काही न करता दोन भाग साधनयुक्त माणसाच्या पदचिह्नांना पाहत त्यांच्या आदेशानुसार चालतो - चालत राहतो. ॥८॥
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