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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 121 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 121/ मन्त्र 4
    ऋषिः - हिरण्यगर्भः प्राजापत्यः देवता - कः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यस्ये॒मे हि॒मव॑न्तो महि॒त्वा यस्य॑ समु॒द्रं र॒सया॑ स॒हाहुः । यस्ये॒माः प्र॒दिशो॒ यस्य॑ बा॒हू कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्य॑ । इ॒मे । हि॒मऽव॑न्तः । म॒हि॒ऽत्वा । यस्य॑ । स॒मु॒द्रम् । र॒सया॑ । स॒ह । आ॒हुः॒ । यस्य॑ । इ॒माः । प्र॒ऽदिशः॑ । यस्य॑ । बा॒हू इति॑ । कस्मै॑ । दे॒वाय॑ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्येमे हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्रं रसया सहाहुः । यस्येमाः प्रदिशो यस्य बाहू कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्य । इमे । हिमऽवन्तः । महिऽत्वा । यस्य । समुद्रम् । रसया । सह । आहुः । यस्य । इमाः । प्रऽदिशः । यस्य । बाहू इति । कस्मै । देवाय । हविषा । विधेम ॥ १०.१२१.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 121; मन्त्र » 4
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (इमे हिमवन्तः) ये हिमालय पर्वतप्रदेश (यस्य) जिसके (महित्वा) महत्त्व को (आहुः) वर्णन करते हैं, (रसया सह समुद्रम्) नदी के साथ समुद्र भी जिसके महत्त्व का वर्णन करते हुए से लगते हैं, (यस्य) जिसकी (इमाः प्रदिशः) ये सब चारों ओर की दिशाएँ (बाहू) बाहू जैसी-फैली हुयी हैं (कस्मै....) पूर्ववत् ॥४॥

    भावार्थ

    नदियों के साथ समुद्र, हिमालय पर्वत और समस्त दिशाएँ परमात्मा के महत्त्व को दर्शा रही हैं, उस ऐसे सुखरूप प्रजापति के लिये उपहाररूप में अपनी आत्मा को समर्पित करना चाहिये ॥४॥

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    विषय

    'पर्वत - पृथ्वी - नदी' सब प्रभु की विभूति हैं

    पदार्थ

    [१] (इमे हिमवन्तः) = ये हिमाच्छादित पर्वत (यस्य) = जिसकी (महित्वा) = महिमा को (आहुः) = प्रकट कर रहे हैं। और (रसया सह) = इस पृथ्वी के साथ (समुद्रम्) = समुद्र (यस्य) = जिसकी महिमा को प्रकट कर रहा है। हिमाच्छादित पर्वतों में, समुद्र में, पृथिवी में सर्वत्र प्रभु की महिमा का दर्शन होता है । [२] (इमाः प्रदिशः) = ये प्रकृष्ट दिशाएँ (यस्य) = जिसकी महिमा को प्रकट करती हैं और वस्तुतः ये सब दिशाएँ (यस्य बाहू) = जिसकी बाहुएँ ही है। 'बाह् प्रयत्ने' इन सब दिशाओं में प्रभु की कृतियों का ही दर्शन होता है। उस (कस्मै) = आनन्दस्वरूप (देवाय) = प्रकाशमय या सब कुछ देनेवाले प्रभु के लिए (हविषा) = दानपूर्वक अदन से (विधेम) = पूजा करें।

    भावार्थ

    भावार्थ-यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड प्रभु की ही विभूति है, ये सब पर्वत-पृथिवी-समुद्र प्रभु की ही महिमा का गायन करते हैं। इन सब में प्रभु की महिमा को देखते हुए हम प्रभु का ही स्तवन करें ।

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    विषय

    समस्त विश्व विभूतियों का स्वामी प्रभु।

    भावार्थ

    (इमे हिमवन्तः) ये हिम वाले, ऊंचे ऊंचे पर्वत (यस्य महित्वा आहुः) जिसके महान् सामर्थ्यों को बतलाते हैं और (यस्य महित्वा रसया सह समुद्रम् आह) जिसके महान् सामर्थ्यों को ‘रसा’ जलयुक्त नदी वा गतिशील पृथिवी सहित यह समुद्र या महान् आकाश बतला रहा है और (यस्य इमाः प्रदिशः) जिसके महान् सामर्थ्य को ये मुख्य दिशाएं (यस्य बाहूः) जिसके बाहुवत् होकर महान् सामर्थ्य को बतला रही हैं (कस्मै देवाय हविषा विधेम) उस एक, अद्वितीय जगत्-कर्त्ता की हम विशेष भक्ति से उपासना करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषि हिरण्यगर्भः प्राजापत्यः। को देवता ॥ छन्द:– १, ३, ६, ८, ९ त्रिष्टुप २, ५ निवृत् त्रिष्टुप् ४, १० विराट् त्रिष्टुप्। ७ स्वराट् त्रिष्टुप्॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (इमे हिमवन्तः) ये हिम वाले पर्वत (यस्य महित्वा-आहुः) जिसके महत्व को कह रहे हैं (रसया सह समुद्रं यस्य) नदियों सहित समुद्र-नदियां समुद्र जिसके महत्त्व को कह रहे (इमा: प्रदिशः-यस्य बाहू) ये समस्त दिशायें जिसकी बाहू अर्थात् धारण सामर्थ्य हैं (कस्मै देवाय हविषा विधेम) उस प्रजापति के लिए प्रेम नम्रता श्रद्धा सद्भाव सुख स्वरूप परमात्मा की भेंट प्रदान करें ॥४॥

    टिप्पणी

    "आत्मानां दाता आत्मनो हि सर्वे परमात्मन उत्पद्यन्ते यद्धा आत्मानां शोधयिता 'दैप् शोधने' (सायणः)

    विशेष

    ऋषिः- हिरण्यगर्भः प्राजापत्यः (प्रजापति परमात्मा की उपासना से उसके विराट स्वरूप एवं उसके तेज को अपने अन्दर धारण कर्ता प्रजापति परमात्मा का उपासक) (प्रश्नात्मक अनिर्वचनीय सुखस्वरूप प्रजापति परमात्मा)

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इमे हिमवन्तः) एते हिमालयाः पर्वताः पर्वतप्रदेशाः (यस्य महित्वा-आहुः) यस्य-महत्त्वं वर्णयन्तीव (रसया सह समुद्रम्) नद्या सह समुद्रः “समुद्रं नपुंसकं छान्दसम्” नदीसमुद्राः-यस्य महत्त्वं वर्णयन्तीव (यस्य-इमाः-प्रदिशः-बाहू) यस्येमाः प्रदिशः खलु बहू इवेति (कस्मै....) पूर्ववत् ॥४॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Whose majesty these snow covered mountains proclaim, whose depth and grandeur the ocean with rivers declares, whose arms these quarters of space extend to infinity, that lord of light and sublimity let us worship with offers of homage in havis.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    नद्यांबरोबर समुद्र हिमालय पर्वत व संपूर्ण दिशा परमात्म्याचे महत्त्व दर्शवीत आहेत. अशा सुखस्वरूप प्रजापतीला उपहाररूपात आपल्या आत्म्याला समर्पित केले पाहिजे. ॥४॥

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