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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 121 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 121/ मन्त्र 8
    ऋषिः - हिरण्यगर्भः प्राजापत्यः देवता - कः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यश्चि॒दापो॑ महि॒ना प॒र्यप॑श्य॒द्दक्षं॒ दधा॑ना ज॒नय॑न्तीर्य॒ज्ञम् । यो दे॒वेष्वधि॑ दे॒व एक॒ आसी॒त्कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । चि॒त् । आपः॑ । म॒हि॒ना । प॒रि॒ऽअप॑श्यत् । दक्ष॑म् । दधा॑नाः । ज॒नय॑न्तीः । य॒ज्ञम् । यः । दे॒वेषु॑ । अधि॑ । दे॒वः । एकः॑ । आसी॑त् । कस्मै॑ । दे॒वाय॑ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यश्चिदापो महिना पर्यपश्यद्दक्षं दधाना जनयन्तीर्यज्ञम् । यो देवेष्वधि देव एक आसीत्कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः । चित् । आपः । महिना । परिऽअपश्यत् । दक्षम् । दधानाः । जनयन्तीः । यज्ञम् । यः । देवेषु । अधि । देवः । एकः । आसीत् । कस्मै । देवाय । हविषा । विधेम ॥ १०.१२१.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 121; मन्त्र » 8
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (यः-चित्) जो भी (महिना) अपने महत्त्व से (यज्ञं जनयन्तीः) सृष्टियज्ञ को-प्रकट करने के हेतु (दक्षं दधानाः) बल वेग धारण करते हुए (आपः) अप्तत्त्व-परमाणुओं को (यः-परि-अपश्यत्) जो सब ओर से देखता है जानता है (देवेषु-अधि देवः-एकः) देवों के ऊपर एक देव परमात्मा है (कस्मै…) पूर्ववत् ॥८॥

    भावार्थ

    परमात्मा अपने महत्त्व से सृष्टियज्ञ के प्रारम्भ करनेवाले परमाणुओं को भलीभाँति जानता है, जो सब देवों के ऊपर अधिष्ठाता होकर वर्त्तमान है, उस सुखस्वरूप प्रजापति के लिये उपहाररूप से अपनी आत्मा को समर्पित करना चाहिये ॥८॥

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    विषय

    अधिदेव

    पदार्थ

    [१] (यः) = जो (चित्) = निश्चय से (महिनः) = अपनी महिमा से (दक्षं दधानाः) = सम्पूर्ण [ growth] विकास व उन्नति को धारण करते हुए, यज्ञं (जनयन्ती:) = इस सृष्टियज्ञ को जन्म देते हुए [यज= संगतिकरण] 'सत्त्व, रज, तम' के संगतिकरण रूप संसार को जन्म देते हुए (आपः) = व्यापक महत् तत्त्व को पर्यपश्यत् सम्यक्तया देखता है, इसका अधिष्ठातृत्व करता है। अर्थात् जिसकी अध्यक्षता में ही यह महत् तत्त्व सब भूतों को जन्म देता है । [२] (यः) = जो (देवेषु) = सूर्य आदि सब देवों में (एक:) = अद्वितीय (अधि देवः) = अधिष्ठातृदेव (आसीत्) = है, जो इन सूर्यादि देवों को देवत्व प्राप्त करा रहा है। उस (कस्मै) = आनन्दमय (देवाय) = सब कुछ देनेवाले प्रभु के लिए (हविषा) = दानपूर्वक अदन द्वारा (विधेम) = पूजा को करें।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु के अधिष्ठातृत्व में ही महत्तत्त्व सब भूतों को जन्म देता है । वे प्रभु ही सूर्यादि देवों को देवत्व प्राप्त कराते हैं ।

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    विषय

    सर्वासाक्षी प्रभु।

    भावार्थ

    (यः चित्) और जो (महिना) अपने महान् सामर्थ्य से (दक्षम् दधानाः) बल, कर्म और प्रज्ञानयुक्त जगत् सर्ग को धारण करती हुई और (यज्ञं जनयन्तीः) संसार रूप महान् यज्ञ को उत्पन्न करती हुई (आप) प्रकृति तत्त्व को (परि अपश्यत्) देखता है, इस पर अध्यक्षवत् साक्षी है। (यः देवेषु अधि) जो समस्त दीप्तिमान् लोकों में (एकः) एक, अद्वितीय, सर्वोपरि (देवः) सबका प्रकाशक है। (कस्मै देवाय हविषा विधेम) उस सर्वकारण, परम सुखमय देव की हम भक्ति-ज्ञानपूर्वक उपासना करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषि हिरण्यगर्भः प्राजापत्यः। को देवता ॥ छन्द:– १, ३, ६, ८, ९ त्रिष्टुप २, ५ निवृत् त्रिष्टुप् ४, १० विराट् त्रिष्टुप्। ७ स्वराट् त्रिष्टुप्॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (य:-चित्) और जिसने (महिना) अपने महत्त्व सेमहत्ता से (यज्ञं जनयन्तीः) सृष्टि यज्ञ-संसार यज्ञ समष्टि को उत्पन्न करने के हेतु (दक्षं दधानाः-आपः पर्यपश्यत्) बल को प्रवाहरूप वेग को धारण करते हुए जल समान वहने वाले परमात्माओं को "अपः-द्वितीयार्थे प्रथमा" देखा किसने देखा सो कहते हैं (यः-देवेषु-अधि-एकः-देवः-आसीत्) जो देवों में एक देव था और है (कस्मै देवाय हविषा विधेम) उस द्रष्टा प्रजापति सुखस्वरूप परमात्मा के लिए प्रेम श्रद्धा नम्रता भेंट समपर्ण करें ॥८॥

    टिप्पणी

    आपो वा इदमग्रे यत्तत्सलिलमासीत् ( जै० उ० १।५६।१) 'तम आसीत् तमसा गूढमग्रेऽप्रकेतं सलिलं सर्वमा इंदम्” (ऋ० १०।१२९।३)

    विशेष

    ऋषिः- हिरण्यगर्भः प्राजापत्यः (प्रजापति परमात्मा की उपासना से उसके विराट स्वरूप एवं उसके तेज को अपने अन्दर धारण कर्ता प्रजापति परमात्मा का उपासक) (प्रश्नात्मक अनिर्वचनीय सुखस्वरूप प्रजापति परमात्मा)

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यः-चित्) योऽपि (महिना) स्वमहत्त्वेन (यज्ञं जनयन्तीः) सृष्टियज्ञं प्रकटयन्तीः-प्रकटीकरणहेतोः लक्षणहेत्वोः क्रियायाः” [अष्टा० ३।२।१२६] (दक्षं दधानाः-आपः-परि-अपश्यत्) बलं वेगम् “दक्षः-बलनाम” [निघ० २।९] धारयमाणान्-अपपदार्थान् “आप” द्वितीयार्थे प्रथमा व्यत्ययेन परितः पश्यति (यः-देवेषु-अधि देवः-एकः) यो देवेषु खलूपरि देव एक एवास्ति (कस्मै....) पूर्ववत् ॥८॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The one who with his might pervades, watches and overall controls the ocean of charged particles of Vayu energy bearing the heat mode producing the yajnic process of life’s evolution, who is on top of all the divinities of existence, that One supreme lord let us worship with havis.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा आपल्या महानतेने सृष्टियज्ञाचा आरंभ करणाऱ्या परमाणूंना चांगल्या प्रकारे जाणतो. जो सर्व देवांचा अधिष्ठाता आहे. त्या सुखस्वरूप प्रजापतीला उपहारस्वरूपाने आपल्या आत्म्याला समर्पित करावे. ॥८॥

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