Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 133 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 133/ मन्त्र 6
    ऋषिः - सुदाः पैजवनः देवता - इन्द्र: छन्दः - महापङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    व॒यमि॑न्द्र त्वा॒यव॑: सखि॒त्वमा र॑भामहे । ऋ॒तस्य॑ नः प॒था न॒याति॒ विश्वा॑नि दुरि॒ता नभ॑न्तामन्य॒केषां॑ ज्या॒का अधि॒ धन्व॑सु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒यम् । इ॒न्द्र॒ । त्वा॒ऽयवः॑ । स॒खि॒ऽत्वम् । आ । र॒भा॒म॒हे॒ । ऋ॒तस्य॑ । नः॒ । प॒था । न॒याति॑ । विश्वा॑नि । दुः॒ऽइ॒ता । नभ॑न्ताम् । अ॒न्य॒केषा॑म् । ज्या॒काः । अधि॑ । धन्व॑ऽसु ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वयमिन्द्र त्वायव: सखित्वमा रभामहे । ऋतस्य नः पथा नयाति विश्वानि दुरिता नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वयम् । इन्द्र । त्वाऽयवः । सखिऽत्वम् । आ । रभामहे । ऋतस्य । नः । पथा । नयाति । विश्वानि । दुःऽइता । नभन्ताम् । अन्यकेषाम् । ज्याकाः । अधि । धन्वऽसु ॥ १०.१३३.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 133; मन्त्र » 6
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 21; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे राजन् ! (वयं त्वायवः) हम तुझे चाहनेवाले तेरी कामना करनेवाले (सखित्वम्) तेरे सखीपन को (आरभामहे) अपने अन्दर धारण करते हैं और उसके अनुरूप वर्त्तते हैं (विश्वानि दुरिता अति) सब पापों-दुःखों को अतिक्रान्त करके (ऋतस्य पथा नय) सत्य के मार्ग से ले चल (नभन्ताम्०) पूर्ववत् ॥६॥

    भावार्थ

    प्रजा सदा राजा की मित्रता की कामना करती रहे और उसके बताये सत्यमार्ग नियम से चले ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रजाप्रिय राजा

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = शत्रु-विद्रावण करनेवाले शासक ! (वयम्) = हम (त्वायवः) = आपकी ही कामनावाले हैं। प्रजाओं को राजा बड़ा प्रिय होना चाहिए। राजा का जीवन प्रजाओं को उसके प्रति अनुरागवाला हो (सखित्वम्) = हम मित्रता को (आरभामहे) = प्रारम्भ करते हैं, अर्थात् परस्पर मित्रभाव से चलते हैं। राष्ट्र के नागरिकों में परस्पर सखित्व होने पर राष्ट्र की शक्ति बढ़ती है । [२] हे इन्द्र ! (नः) = हमें (ऋतस्य पथा नय) = ऋत के मार्ग से ले चलिये। शासक को यह प्रयत्न करना चाहिए कि उसकी प्रजाएँ बड़े व्यवस्थित जीवनवाली हों। उनके सब कार्य समय पर व ठीक स्थान पर होनेवाले हों । इस प्रकार ऋत के मार्ग से ले चल करके हमें (विश्वानि दुरिता अति) = (नय) सब दुरितों से दूर ले चलिये। हम पाप से बचकर दुर्गतियों से भी बचे रहें। (३) इस प्रकार सब प्रजाओं के जीवनों के व्यवस्थित होने पर (अन्यकेषां ज्याकाः) = कुत्सित वृत्तिवाले लोगों की डोरियाँ (अधिधन्वसु) = धनुषों पर ही (नभन्ताम्) = नष्ट हो जाए। प्रजाओं के चरित्र के ऊँचे होने पर शत्रु आक्रमण करने से घबराता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - राजा प्रजा से आदृत हो । राजा प्रजाओं को ठीक मार्ग पर ले चलता हुआ दुर्गति से बचाए ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रधान नायक के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! (वयम्) हम लोग (त्वायवः) तेरी कामना करते हुए, तुझे प्राप्त होते हुए (सखित्वम् आरभामहे) तेरे मित्र भाव को प्राप्त करें। तू (नः) हमें (ऋतस्य पथा नय) सत्य के मार्ग से ले चल। और हमें (विश्वानि दुरिता अति) सब बुरे पापों वा पाप के दुःखदायी फलों से भी पार कर। (नभन्ताम्०) इत्यादि पूर्ववत्।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः सुराः पैजवनः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः-१-३ शक्वरी। ४-६ महापंक्तिः। ७ विराट् त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्द्र) हे राजन् ! (वयं त्वायवः) वयं त्वां कामयमानाः (सखित्वम्-आ रभामहे) तव सख्यं धारयामस्तदनुरूपं वर्तामहे (विश्वानि दुरिता-अति-ऋतस्य पथा नय) सर्वाणि पापानि दुःखानि खल्वतिक्राम्य-पृथक्कृत्यास्मान् सत्यस्य मार्गेण नय (नभन्ताम्०) पूर्ववत् ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, we are yours, we love you and cherish your friendship. Lead us forward by the path of truth and rectitude across all sins and evils of the world. Save us and let the alien strings and force of the bows of sin and evil snap under their own tension.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्रजेने सदैव राजाच्या मैत्रीची कामना करावी व त्याने सांगितलेल्या सत्यमार्ग नियमाने चालावे. ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top