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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 156 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 156/ मन्त्र 2
    ऋषिः - केतुराग्नेयः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    यया॒ गा आ॒करा॑महे॒ सेन॑याग्ने॒ तवो॒त्या । तां नो॑ हिन्व म॒घत्त॑ये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यया॑ । गाः । आ॒ऽकरा॑महे । सेन॑या । अ॒ग्ने॒ । तव॑ । ऊ॒त्या । ताम् । नः॒ । हि॒न्व॒ । म॒घत्त॑ये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यया गा आकरामहे सेनयाग्ने तवोत्या । तां नो हिन्व मघत्तये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यया । गाः । आऽकरामहे । सेनया । अग्ने । तव । ऊत्या । ताम् । नः । हिन्व । मघत्तये ॥ १०.१५६.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 156; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अग्ने) हे अग्रणेत: ! राजन् ! (तव) तेरी (यया-ऊत्या सेनया) जिस रक्षिका सेना के साथ (गाः) शत्रु की भूमियों भूभागों को (आकरामहे) अपने अधिकार में लेते हैं (ताम्) उस सेना को (नः) हमारे (मघत्तये) धनप्राप्ति के लिये (हिन्व) प्रेरित कर ॥२॥

    भावार्थ

    जिस सेना के द्वारा शत्रु की भूमियों-भूभागों को जीता जाये, उनसे लाभ लेने के लिए सेना उसको सँभाले-रक्षा करे ॥२॥

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    विषय

    गो-रक्षण

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (यया) = जिस (सेनया) = [इनेन सह ] स्वामी के साथ वर्तमान आपकी (उत्था) = रक्षण शक्ति से हम (गाः) = इन सब इन्द्रियों व ज्ञान की वाणियों का (आकरामहे) = सम्पादन करते हैं, (ताम्) = उस रक्षण को (मघत्तये) = ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये (नः) = हमें (हिन्व) = प्राप्त कराइये । [२] प्रभु के रक्षण से ही सब ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं। प्रभु का रक्षण हमें प्राप्त हो, हम प्रभु को कभी भूले नहीं । यही रक्षण का 'स्वामी के साथ' होना है। यह रक्षण ही हमें इन्द्रियों को विषयों का शिकार होने से बचाने में समर्थ करता है । इन्द्रियों को सुरक्षित रखकर ही हम वास्तविक ऐश्वर्य का सम्पादन कर पाते हैं । 1

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु के रक्षण में हम इन्द्रियों को सुरक्षित रखते हुए ज्ञानैश्वर्य का सम्पादन करनेवाले हों ।

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    विषय

    सेना द्वारा वीरों का ऐश्वर्य विजय।

    भावार्थ

    (यया सेनया) जिस सेना से और (यया तव उत्या) जिस तेरी रक्षण-शक्ति और ज्ञान-शक्ति से हम (गाः आकरामहे) भूमियों और वाणियों को प्राप्त करते हैं (तां) उसी सेना और ज्ञानमयी शक्ति को (नः मघत्तये हिन्व) हमें ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये प्रेरित कर, प्रदान कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः केतुराग्नेयः॥ अग्निर्देवता॥ छन्द:- १, ३, ५ गायत्री। २, ४ निचृद् गायत्री॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अग्ने) हे अग्रणेतः ! राजन् ! (तव यया-ऊत्या सेनया) तव यया रक्षिकया सेनया (गाः-आकरामहे) भूमीः-भूभागान्-आत्मीयान् कुर्मः (तां न मघत्तये-हिन्व) तां रक्षिकां सेनामस्माकं धनप्राप्तये प्रेरय ॥२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O leading light of life, energy of fire, with your powers and means of protection by which we acquire our lands and develop our fields and cattle wealth, pray enhance and accelerate that same power for us for acquisition of wealth, power and honour.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या सेनेद्वारे शत्रूच्या भूमी-भूभागांना जिंकले जाते. त्यांच्याकडून लाभ घेण्यासाठी सेनेने त्यांना सांभाळावे, रक्षण करावे. ॥२॥

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