ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 64/ मन्त्र 6
ते नो॒ अर्व॑न्तो हवन॒श्रुतो॒ हवं॒ विश्वे॑ शृण्वन्तु वा॒जिनो॑ मि॒तद्र॑वः । स॒ह॒स्र॒सा मे॒धसा॑ताविव॒ त्मना॑ म॒हो ये धनं॑ समि॒थेषु॑ जभ्रि॒रे ॥
स्वर सहित पद पाठते । नः॒ । अर्व॑न्तः । ह॒व॒न॒ऽश्रुतः॑ । हव॑म् । विश्वे॑ । शृ॒ण्व॒न्तु॒ । वा॒जिनः॑ । मि॒तऽद्र॑वः । स॒ह॒स्र॒ऽसाः । मे॒धसा॑तौऽइव । त्मना॑ । म॒हः । ये । धन॑म् । स॒म्ऽइ॒थेषु॑ । ज॒भ्रि॒रे ॥
स्वर रहित मन्त्र
ते नो अर्वन्तो हवनश्रुतो हवं विश्वे शृण्वन्तु वाजिनो मितद्रवः । सहस्रसा मेधसाताविव त्मना महो ये धनं समिथेषु जभ्रिरे ॥
स्वर रहित पद पाठते । नः । अर्वन्तः । हवनऽश्रुतः । हवम् । विश्वे । शृण्वन्तु । वाजिनः । मितऽद्रवः । सहस्रऽसाः । मेधसातौऽइव । त्मना । महः । ये । धनम् । सम्ऽइथेषु । जभ्रिरे ॥ १०.६४.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 64; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ते-अर्वन्तः) वे विद्वान्-उच्चविज्ञानवाले (हवनश्रुतः) जो ह्वान-प्रार्थनावचन को सुनते हैं-स्वीकार करते हैं (ते वाजिनः-मितद्रवः) वे आत्मबलसम्पन्न शास्त्रप्रमाणित आचरण करनेवाले (विश्वे शृण्वन्तु) वे सब प्रार्थनावचन को सुनें-स्वीकार करें (सहस्रसा मेघसातौ-इव) बहुत विज्ञानसम्भक्ति में अर्थात् बहुत ज्ञानवाली गोष्ठी में (त्मना) आत्मा से अर्थात् शिष्यभाव से आत्मा को समर्पण करनेवाले के द्वारा (ये समिथेषु) जो अज्ञानादि संग्रामों में प्रवृत्त हुए-हुए हैं (धनं जभ्रिरे) ज्ञान धन को ग्रहण कराते हैं ॥६॥
भावार्थ
ऊँचे विद्वान् शास्त्र अनुसार आचरण करते हैं। वे ज्ञानप्राप्त कराने की प्रार्थना को अवश्य स्वीकार करते हैं। जब कोई इनकी गोष्ठी में शिष्यभाव से आता है या आवे और जो अज्ञान आदि के साथ संग्राम करने का इच्छुक होता है, उसे वे ज्ञान प्रदान करते हैं ॥६॥
विषय
शूरवार दानी, लोगों से प्रार्थना।
भावार्थ
(ये) जो (समिथेषु) संग्रामों में (महः धनं जभ्रिरे) बहुत सा धन और यश प्राप्त करते हैं और जो (त्मना) अपने सामर्थ्य से (मेधसाता सहस्त्रसा) यज्ञ में सहस्त्रों का दान करते हैं (ते) वे (अर्वन्तः) ज्ञानी, आगे बढ़ने वाले (हवन-श्रुतः) ग्रहण करने योग्य ज्ञान और प्रजाओं के उत्तम आह्वान को श्रवण करनेहारे (मित-द्रवः) मित, ज्ञात मार्ग में द्रुतगति से जाने वाले, (वाजिनः) ज्ञानवान् बलवान् धनवान् पुरुष (विश्वे) सब (नः हवं शृण्वन्तु) हमारे आह्वान, पुकार एवं ग्राह्य वचन को श्रवण करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गयः प्लातः॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:- १, ४, ५, ९, १०, १३, १५ निचृज्जगती। २, ३, ७, ८, ११ विराड् जगती। ६, १४ जगती। १२ त्रिष्टुप्। १६ निचृत् त्रिष्टुप्। १७ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ सप्तदशर्चं सुक्तम्॥
विषय
वाजिनः
पदार्थ
[१] (ते) = वे (अर्वन्तः) = वासनाओं का संहार करनेवाले, (हवनश्रुतः) = हीन व आर्तजनों की पुकार को सुननेवाले, (वाजिनः) = शक्तिशाली, (मितद्रवः) = नपी-तुली गतिवाले, (सहस्रसाः) = सहस्र - संख्याक धनों को देनेवाले अथवा [स+हस्] प्रसन्नतापूर्वक देनेवाले (विश्वे) = सब देव (नः) = हमारी (हवम्) = पुकार को व प्रार्थना को (शृण्वन्तु) = सुनें । देव जनों के लक्षण यहाँ बड़ी सुन्दरता से कह दिये गये हैं । ये [क] वासनाओं से ऊपर उठते हैं, [ख] आर्तों के क्रन्दन को सुनते हैं, [२] शक्तिशाली बनते हैं, [घ] नपी-तुली गतिवाले होते हैं और [ङ] दानशील होते हैं। हम इनके सम्पर्क में आयें, इनके प्रिय हों, हमारी आवाज इनसे सुनी जाए। [२] उन देवों से हमारी बात सुनी जाए (ये) = जो (मेधसातौ इव) = यज्ञों की तरह (समिथेषु) = संग्रामों में भी (महः धनम्) = महत्त्वपूर्ण ऐश्वर्य को (त्मना) = स्वयं (जाभ्रिरे) = प्राप्त करते हैं । ये देव यज्ञों में प्रवृत्त होते हैं । ये यज्ञ इन्हें इस लोक व परलोक दोनों लोकों में कल्याण को देनेवाले होते हैं। इसी प्रकार ये वासनाओं के साथ संग्राम में चलते हैं और यह वासनाओं के साथ होनेवाला संग्राम इनकी शक्ति की व ऐश्वर्य की वृद्धि का कारण बनता है। इन देवों के सम्पर्क में हम भी यज्ञों में व इन अध्यात्म-संग्रामों में चलते हुए उत्कृष्ट ऐश्वर्य के भागी बनते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- देवों के सम्पर्क में आकर हम भी देव बनें। हम भी उनकी तरह 'वासनाओं का संहार करनेवाले, दीनजनों की पुकार को सुननेवाले, शक्तिशाली, युक्तचेष्ट व दानी बनें।
इंग्लिश (1)
Meaning
May all those veteran scholars and scientists who listen to the call of the nation and, moving at measured speed, win victories in their fields, who in their pioneering adventures discover and produce great wealth in all sincerity by their own competence while they bring us a thousand gifts in our yajnic programmes, listen to our invocation and exhortation at this juncture too.
मराठी (1)
भावार्थ
उच्च विद्वान शास्त्रानुसार आचरण करतात. ते ज्ञानप्राप्तीची प्रार्थना अवश्य स्वीकारतात. जेव्हा कुणी त्यांच्या सभेत शिष्यभावाने येतो व जो अज्ञान इत्यादीबरोबर संघर्ष करण्यास इच्छुक असतो त्याला ते ज्ञान प्रदान करतात. ॥६॥
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