Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 64 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 64/ मन्त्र 9
    ऋषिः - गयः प्लातः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    सर॑स्वती स॒रयु॒: सिन्धु॑रू॒र्मिभि॑र्म॒हो म॒हीरव॒सा य॑न्तु॒ वक्ष॑णीः । दे॒वीरापो॑ मा॒तर॑: सूदयि॒त्न्वो॑ घृ॒तव॒त्पयो॒ मधु॑मन्नो अर्चत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर॑स्वती । स॒रयुः॑ । सिन्धुः॑ । ऊ॒र्मिऽभिः॑ । म॒हः । म॒हीः । अव॑सा । य॒न्तु॒ । वक्ष॑णीः । दे॒वीः । आपः॑ । मा॒तरः॑ । सू॒द॒यि॒त्न्वः॑ । घृ॒तऽव॑त् । पयः॑ । मधु॑ऽमत् । नः॒ । अ॒र्च॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सरस्वती सरयु: सिन्धुरूर्मिभिर्महो महीरवसा यन्तु वक्षणीः । देवीरापो मातर: सूदयित्न्वो घृतवत्पयो मधुमन्नो अर्चत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सरस्वती । सरयुः । सिन्धुः । ऊर्मिऽभिः । महः । महीः । अवसा । यन्तु । वक्षणीः । देवीः । आपः । मातरः । सूदयित्न्वः । घृतऽवत् । पयः । मधुऽमत् । नः । अर्चत ॥ १०.६४.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 64; मन्त्र » 9
    अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सरस्वती) सुन्दर जलवाली मेघधारा (सरयुः) नीचे सरणशीला वर्षाधारा (सिन्धुः) पृथिवी में स्पन्दनशील-बहती हुई नदी (ऊर्मिभिः) अपनी-अपनी तरङ्गों से (महीः) सारी बड़ी (वक्षणीः) बहनेवाली (अवसा यन्तु) रक्षण के हेतु प्राप्त होवें (देवीः-आपः-मातरः) वे सब दिव्य जल अन्नादि निर्माण करनेवाली जलधाराओं ! (घृतवत्-मधुमत् पयः) तेजयुक्त तथा मधुर स्वादवाले जल को (सूदयित्न्वः-अर्चत) रिसाती हुई हमें तृप्त करो ॥९॥

    भावार्थ

    आकाश में मेघधाराएँ अन्तरिक्ष में वर्षा और पृथिवी पर बहती हुई नदियाँ हमारी रक्षा के निमित्त हैं। पृथिवी पर वर्तमान सारे जल अन्न को निर्माण करनेवाली तेजस्वी एवं मधुर होते हुए हमें तृप्त करते हैं। इनका हम उपयोग करें और इनके रचयिता परमात्मा का धन्यवाद करें ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उदार देवियों का सादर आमन्त्रण और अन्नवत् ज्ञान-याचना।

    भावार्थ

    (सरस्वती) उत्तम ज्ञान वाली, (सरयुः) उत्तम ज्ञान को चाहने वाली और (सिन्धुः) नदी के तुल्य वेग से धाराप्रवाह जाने वाली, (वक्षणीः देवीः) नदियों के सदृश उदार होकर वचन बोलने वाली, (महीः) पूज्य (आपः मातरः देवीः) आप्तजन, माताएं और ज्ञानप्रद देवियें (सूदयित्न्वः) ज्ञानरस प्रदान करती हुईं (महः अवसा) बड़े प्रेम से, (आयन्तु) आवें और (नः) हमें (घृतवत् पयः) घृत से युक्त पुष्टिकारक (मधुमत्) मधुर अन्न से युक्त भोजन के समान उत्तम ज्ञान (अर्चत) प्रदान करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गयः प्लातः॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:- १, ४, ५, ९, १०, १३, १५ निचृज्जगती। २, ३, ७, ८, ११ विराड् जगती। ६, १४ जगती। १२ त्रिष्टुप्। १६ निचृत् त्रिष्टुप्। १७ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ सप्तदशर्चं सुक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'सरस्वती - सरयु - सिन्धु'

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र के वर्णन के अनुसार 'सरस्वती' ज्ञानवाहिनी नदी है, 'सरयु' भक्तिवाहिनी है और 'सिन्धु' कर्मवाहिनी । ये (सरस्वती सरयुः सिन्धुः) = सरस्वती, सरयु और सिन्धु तीनों ही (ऊर्मिभिः) = अपनी ज्ञान, भक्ति व कर्म की तरंगों से (महो मही:) = महान् से महान् हैं, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। ये (चक्षणी:) = [चक्ष् to grow ] हमारी उन्नति की कारणभूत नदियाँ (अवसा) = रक्षण के हेतु से यन्तु हमें प्राप्त हों। हमारे मस्तिष्क में सरस्वती का प्रवाह हो, हृदय स्थली में सरयु का तथा भुजाओं में सिन्धु प्रवाहित हो। [२] इन तीनों नदियों के (आपः) = जल (देवी:) = प्रकाश को करनेवाले हों [दिव् = द्युति], (मातरः) = हमारे जीवनों में सब अच्छाइयों का निर्माण करनेवाले हों तथा (सूदयिल्वः) = शरीर से सब मलों को दूर करनेवाले हो । क्रियाशीलता के होने पर मलों का सम्भव ही नहीं रहता। मलों का उपाय अकर्मण्यता के होने पर ही होता है । [सूद् to eject, to throw away] । सरस्वती के जल 'देवी' हों, सरयु के 'मातरः ' तथा सिन्धु के सूदयितु । [३] इन सब नदियों से प्रार्थना करते हैं कि (नः) = हमारे लिये अपने उस (पयः) = जल को (अर्चत) = [प्रयच्छत सा० ] दो जो (घृतवत्) = दीप्तिवाला तथा मलों के क्षरणवाला है और (मधुमत्) = स्वास्थ्य प्रदान के द्वारा अत्यन्त माधुर्यवाला है । सरस्वती का जल ज्ञानदीप्ति को देता है, सरयु का जल मानस मलों का क्षरण करता है, तो सिन्धु का जल स्वास्थ्य के द्वारा जीवन को मधुर बनाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- 'सरस्वती' हमारे में ज्ञान का संचार करे, 'सरयु' हमें निर्मल मनवाला बनाकर प्रभु से मिलने के योग्य बनाये तथा 'सिन्धु' हमें कर्मशील बनाकर स्वाथ्य का माधुर्य प्राप्त कराये ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सरस्वती) सुन्दरजलवती मेघधारा (सरयुः) नीचैः सरणशीला वृष्टिधारा (सिन्धुः) पृथिव्यां स्पन्दमाना नदी (ऊर्मिभिः) तरङ्गैः (महीः) सर्वा महत्यः (वक्षणीः) वहनशीलाः (अवसा यन्तु) रक्षणहेतुना प्राप्नुवन्तु (देवीः-आपः-मातरः) ता दिव्याः सर्वाः-अन्नादिनिर्मात्र्यः (घृतवत् मधुमत्पयः-सूदयित्न्वः-अर्चत) तेजोवत्-तेजस्वि मधुरं जलं क्षरन्त्यः तृप्यन्तु ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    For our protection and progress may Sarasvati, cloud forming vapour streams, Sarayu, torrents of falling rain, rivers flowing on earth, and all mighty floods rushing and rolling at tempestuous speed flow for our benefit. O divine rivers, mother streams of nourishing waters full of living energy, ghrta, nectar and honey, pray flow shining and roaring and bring us honour and grandeur.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    आकाशातील मेघधारा, अंतरिक्षात वृष्टी व पृथ्वीवर वाहणाऱ्या नद्या आमच्या रक्षणाचे निमित्त आहेत. पृथ्वीवर असलेले सर्व जल अन्न निर्माण करणारे तेजस्वी व मधुर असून, आम्हाला तृप्त करणारे आहे. आम्ही त्यांचा उपयोग करून घ्यावा व त्यांचा रचनाकार असलेल्या परमेश्वराला धन्यवाद द्यावा. ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top