ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 93/ मन्त्र 3
ऋषिः - तान्वः पार्थ्यः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - पादनिचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
विश्वे॑षामिरज्यवो दे॒वानां॒ वार्म॒हः । विश्वे॒ हि वि॒श्वम॑हसो॒ विश्वे॑ य॒ज्ञेषु॑ य॒ज्ञिया॑: ॥
स्वर सहित पद पाठविश्वे॑षाम् । इ॒र॒ज्य॒वः॒ । दे॒वाना॑म् । वाः । म॒हः । विश्वे॑ । हि । वि॒श्वऽम॑हसः । विश्वे॑ । य॒ज्ञेषु॑ । य॒ज्ञियाः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वेषामिरज्यवो देवानां वार्महः । विश्वे हि विश्वमहसो विश्वे यज्ञेषु यज्ञिया: ॥
स्वर रहित पद पाठविश्वेषाम् । इरज्यवः । देवानाम् । वाः । महः । विश्वे । हि । विश्वऽमहसः । विश्वे । यज्ञेषु । यज्ञियाः ॥ १०.९३.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 93; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(विश्वेषाम्) सबके (इरज्यवः) स्वामिभूत दिव्य जनो ! या दिव्यपदार्थो ! (देवानाम्) तुम देवों का (महः-वाः) महान् वरने योग्य ज्ञान है (विश्वे हि) सब ही (विश्वमहसः) सब महत्त्ववाले (यज्ञेषु यज्ञियाः) यज्ञप्रसङ्गों में सत्करणीय हो ॥३॥
भावार्थ
ऊँचे विद्वानों और दिव्य पदार्थों में बहुत गुण होते हैं, उनसे लाभ लेना चाहिये ॥३॥
विषय
देवों के लक्षण
पदार्थ
[१] गत मन्त्र के अनुसार देवों का पूजन करनेवाला भी देव बनता है । सो देवों के लक्षण प्रस्तुत मन्त्र में कहते हैं। ये देव (विश्वेषाम्) = शरीर में साधनरूप से प्राप्त करायी गयी इन्द्रियों के, मन के व बुद्धि के इन शरीर में प्रविष्ट सब साधनों के ये (इरज्यवः) = स्वामी होते हैं, इनके वशीकरण से ही तो सब साध्यों को ये सिद्ध कर पाते हैं । [२] इन साधनों के ठीक प्रयोग करने से ही (देवानाम्) = इन देवों का (महः वाः) = महान् वरणीय धन होता है। ये उचित साधनों से खूब ही ऐश्वर्य को प्राप्त करते हैं । [३] (विश्वे हि) = ये सब देव निश्चय से (विश्वमहसः) = सम्पूर्ण तेजोंवाले होते हैं। [४] (विश्वे) = ये सब (यज्ञेषु यज्ञियाः) = सदा उत्तम यज्ञों में प्रवृत्त रहनेवाले होते हैं । उत्तम कर्मों में सदा व्यापृत रहते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- देवों के लक्षण ये हैं- [क] इन्द्रियों, मन व बुद्धि के ये स्वामी होते हैं [हृषीकेश], [ख] महान् वरणीय धन का अर्जन करते हैं, [ग] तेजस्वी होते हैं, [घ] यज्ञों में लगे रहते हैं, लोक संग्रहात्मक कर्म ही इनके यज्ञ बन जाते हैं ।
विषय
सदा मान-सत्कार के पात्र हों।
भावार्थ
हे (विश्वेषाम्) सब के (इरज्यवः) स्वामी जनो ! (देवा नाम्) देवों, वीरों, विद्वानों का (महः वाः) बड़ा भारी धन है। (विश्वे) आप सब लोग (हि) निश्चय से (विश्व-महसः) समस्त तेजों के धारण करने वाले, सर्व पूज्य, और (यज्ञेषु) यज्ञ के अवसरों पर (यज्ञियाः) यज्ञ अर्थात् दान-मान और पूजा के योग्य हो।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिस्तान्वः पार्थ्यः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:- १ विराट् पक्तिः। ४ पादनिचृत् पङ्क्तिः। ५ आर्चीभुरिक् पङ्क्तिः। ६, ७, १०, १४ निचृत् पङ्क्तिः। ८ आस्तारपङ्क्तिः। ९ अक्षरैः पङ्क्तिः। १२ आर्ची पङ्क्तिः। २, १३ आर्चीभुरिगनुष्टुप्। ३ पादनिचृदनुष्टुप्। ११ न्यङ्कुसारिणी बृहती। १५ पादनिचृद् बृहती। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(विश्वेषाम्-इरज्यवः) सर्वेषां खल्वीश्वराः स्थ “इरज्यति ऐश्वर्यकर्मा” [निघ० ३।२१] (देवानां महः-वाः) युष्माकं देवानां महद् वरणीयं ज्ञानमस्ति (विश्वे हि विश्वमहसः) सर्वे हि सर्वमहत्त्ववन्तः (यज्ञेषु यज्ञियाः) यज्ञप्रसङ्गेषु सत्करणीयाः स्थ ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O masters of the world, great is the glory of the divinities. All of them command universal majesty, all of them are adorable in yajnic congregations.
मराठी (1)
भावार्थ
उच्च विद्वान व दिव्य पदार्थांमध्ये पुष्कळ गुण असतात. त्यांच्याकडून लाभ घेतला पाहिजे. ॥३॥
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