ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 55/ मन्त्र 10
ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा
देवता - विश्वेदेवा, अग्निः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
विष्णु॑र्गो॒पाः प॑र॒मं पा॑ति॒ पाथः॑ प्रि॒या धामा॑न्य॒मृता॒ दधा॑नः। अ॒ग्निष्टा विश्वा॒ भुव॑नानि वेद म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥
स्वर सहित पद पाठविष्णुः॑ । गो॒पाः । प॒र॒मम् । पा॒ति॒ । पाथः॑ । प्रि॒या । धामा॑नि । अ॒मृता॑ । दधा॑नः । अ॒ग्निः । ता । विश्वा॑ । भुव॑नानि । वे॒द॒ । म॒हत् । दे॒वाना॑म् । अ॒सु॒र॒ऽत्वम् । एक॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
विष्णुर्गोपाः परमं पाति पाथः प्रिया धामान्यमृता दधानः। अग्निष्टा विश्वा भुवनानि वेद महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
स्वर रहित पद पाठविष्णुः। गोपाः। परमम्। पाति। पाथः। प्रिया। धामानि। अमृता। दधानः। अग्निः। ता। विश्वा। भुवनानि। वेद। महत्। देवानाम्। असुरऽत्वम्। एकम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 55; मन्त्र » 10
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
अन्वयः
हे मनुष्या योऽग्निरिव विष्णुर्गोपा यानि परमं पाथः प्रिया अमृता धामानि दधानः पाति ता तानि विश्वा भुवनानि वेद तद्देवानां महदेकमसुरत्वं यूयं वित्त ॥१०॥
पदार्थः
(विष्णुः) वेवेष्टि व्याप्नोति चराचरं जगत् स परमात्मा (गोपाः) सर्वस्य रक्षकः (परमम्) प्रकृष्टम् (पाति) रक्षति (पाथः) पृथिव्याद्यन्नम् (प्रिया) प्रियाणि कमनीयानि सेवितुमर्हाणि (धामानि) जन्मस्थाननामानि (अमृता) नाशरहितानि प्रकृत्यादीनि (दधानः) धरन् पुष्यन्त्सन् (अग्निः) पावको विद्युदिव स्वप्रकाशः (ता) तानि (विश्वा) सर्वाणि (भुवनानि) निवासस्थानानि (वेद) जानाति (महत्) व्यापकं सत् (देवानाम्) पृथिव्यादीनां मध्ये (असुरत्वम्) सर्वेषां प्रक्षेप्तारम् (एकम्) अद्वितीयं ब्रह्म ॥१०॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या योऽस्य जगत उत्पादको धाता पालको विनाशकोऽस्ति सर्वेषां जीवानां हिताय विविधान् पदार्थान्निर्मिमीते तमेव यूयं सेवध्वम् ॥१०॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (अग्निः) अग्निरूप बिजुली के सदृश स्वयं प्रकाशित (विष्णुः) चर और अचर संसार में व्यापक परमात्मा (गोपाः) सबकी रक्षा करनेवाला परमेश्वर जिन (परमम्) उत्तम (पाथः) पृथिवी आदि अन्न और (प्रिया) कामना करने और सेवा करने योग्य (अमृता) नाश से रहित प्रकृति आदि और (धामानि) जन्म, स्थान और नाम को (दधानः) धारण और पुष्ट करता हुआ (पाति) रक्षा करता है (ता) उन (विश्वा) सम्पूर्ण (भुवनानि) निवासस्थानों को (वेद) जानता है, उस (देवानाम्) पृथिवी आदिकों के मध्य में (महत्) व्यापक हुए (एकम्) द्वितीयरहित ब्रह्म (असुरत्वम्) सबके फेंकनेवाले को आप लोग जानो ॥१०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो इस संसार का उत्पन्न, धारण, पालन और नाश करनेवाला है और सब जीवों के हित के लिये अनेक प्रकार के पदार्थों का निर्माण करता है, उसही की आप लोग सेवा करो ॥१०॥
विषय
धामों व अमृतों का धारण
पदार्थ
[१] (विष्णुः) = वे प्रभु व्यापक हैं। (गोपा:) = गोरूप सब प्राणियों के रक्षक हैं-प्रजाएँ गौवें हैं, तो प्रभु गोपाल । वे प्रभु (परमम्) = सर्वोत्कृष्ट (पाथः पाति) = मार्ग का रक्षण करते हैं। प्रभुकृपा से हम अपने जीवनों में मार्गभ्रष्ट नहीं होते। इस मार्ग पर चलाने द्वारा वे प्रभु (प्रिया धामानि) = प्रिय तेजों को (दधानः) = धारण करते हैं और (अमृता) = [दधानः] = नीरोगता को प्राप्त कराते हैं । [२] (अग्निः) = वे अग्रणी प्रभु (ता विश्वा भुवनानि) = उन सब प्राणियों को वेद जानते हैं। प्रभु सब प्राणियों का ध्यान करते हैं। इन सब प्राणियों के पालन के लिए ही सूर्यादि दिव्यपिण्डों की रचना उस प्रभु ने की है और इन दिव्यपिण्डों का [देवों का] प्राणशक्ति-संचार का कार्य अद्वितीय है व महान् है ।
भावार्थ
भावार्थ-वे व्यापक प्रभु हमें मार्ग का ज्ञान देते हैं। मार्ग पर आक्रमण द्वारा तेजस्विता व नीरोगता प्राप्त कराते हैं ।
विषय
सर्वज्ञ प्रभु।
भावार्थ
परमेश्वर (विष्णुः) सर्वत्र व्यापक (गोपाः) सबका रक्षक, सूर्यवत् सब गमनशील लोकों का पालक होकर (परमं पाथः पाति) सबसे उत्कृष्ट पाथस् अन्न पृथिवी आदि लोक वा परमपद को पालन करता है। और जो (प्रिया धामानि) प्रिय कमनीय धाम, तेजों नामों को (अमृता) नाशरहित प्रकृति, आकाशादि और जीवों को (दधानः) धारण करता हुआ (अग्निः) अग्नि के समान तेजस्वी स्वयं प्रकाश हो, (ता) उन (विश्वा भुवनानि) समस्त लोकों को (वेद) जानता है वह (देवानाम्) समस्त देवों, जीवों और पृथिव्यादि लोकों के बीच (महत् एकम् असुरत्वम्) बड़ा अद्वितीय सबका सञ्चालक, प्राणप्रद तत्व है। (२) सूर्य सबका रक्षक, परम सूक्ष्म (पाथः) जल को किरणों से पान करता है। प्रिय तर्पक तेजों और अन्नों को पुष्ट करता है। सब प्राणियों को, भुवनों को प्राप्त होता है, सबसे बड़ा जीवनप्रद है। (३) राजा भी व्यापक शक्ति वाला होने से विष्णु, रक्षक होने से गोपा होकर परमपद है या पालक सैन्य-बल को रक्खे, प्रजा प्रिय तेजों और अमृतमय अन्नों को धारण करे। सबका अग्रणी होकर सबको जाने। एकोनविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा ऋषिः। विश्वेदेवा देवताः। उषाः। २—१० अग्निः। ११ अहोरात्रौ। १२–१४ रोदसी। १५ रोदसी द्युनिशौ वा॥ १६ दिशः। १७–२२ इन्द्रः पर्जन्यात्मा, त्वष्टा वाग्निश्च देवताः॥ छन्दः- १, २, ६, ७, ९-१२, १९, २२ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ८, १३, १६, २१ त्रिष्टुप्। १४, १५, १८ विराट् त्रिष्टुप्। १७ भुरिक् त्रिष्टुप्। ३ भुरिक् पंक्तिः। ५, २० स्वराट् पंक्तिः॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जो या जगाला उत्पन्न करून धारण, पालन व संहार करतो, सर्व जीवांच्या हितासाठी अनेक प्रकारच्या पदार्थांना निर्माण करतो त्याचेच तुम्ही लोक सेवन करा. ॥ १० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Vishnu, lord omnipresent, all pervasive, all protective, wielding and sustaining all the dear immortal homes of existence, preserves and promotes the highest food and agents of life such as heat, water, air and the earth. Agni, vital heat and light of life’s vitality, knows, reaches and maintains all the regions of the universe. Great is the glory of the life breath of the divinities of nature and humanity, one and only one.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The nature and duties of Agni are underlined.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men! you should know that One God without a second, Who is the Omnipresent Vishnu (Supreme Being) like the purifying fire or energy is the Protector of all. It is He Who protects and preserves all, up holdings the food grains and desirable places on the earth as well as, the Eternal matter and souls. He knows thoroughly all worlds. He is the One great Lord of all putting all beings on the earth and in other planets.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men! you should adore only that One God, Who is the Creator, Upholder, Sustainer and Dissolver of this creation. It is He, Who creates various substances for the welfare of all souls.
Foot Notes
(पाथः) पृथिव्याद्यन्नम् । (पाथः) अन्नमपि पाथ उच्यते पानादिव (NKT 6,2, 6, ) = Food grains on earth etc. (अमृता) नाशरहितानि प्रकृत्यादीनि = Imperishable matter and souls. (धामानि ) जन्मस्थाननामानि धामानि त्रयाणि भवन्ति स्थानानि नामानि जन्मानीति (NKT. 9.3, 28 ) = Births, places, and names.
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