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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 46 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 46/ मन्त्र 11
    ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्रः प्रगाथो वा छन्दः - निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः

    अध॑ स्मा नो वृ॒धे भ॒वेन्द्र॑ ना॒यम॑वा यु॒धि। यद॒न्तरि॑क्षे प॒तय॑न्ति प॒र्णिनो॑ दि॒द्यव॑स्ति॒ग्ममू॑र्धानः ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध॑ । स्म॒ । नः॒ । वृ॒धे । भ॒व॒ । इन्द्र॑ । न । अ॒यम् । अ॒व॒ । यु॒धि । यत् । अ॒न्तरि॑क्षे । प॒तय॑न्ति । प॒र्णिनः॑ । दि॒द्यवः॑ । ति॒ग्मऽमू॑र्धानः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अध स्मा नो वृधे भवेन्द्र नायमवा युधि। यदन्तरिक्षे पतयन्ति पर्णिनो दिद्यवस्तिग्ममूर्धानः ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अध। स्म। नः। वृधे। भव। इन्द्र। नायम्। अव। युधि। यत्। अन्तरिक्षे। पतयन्ति। पर्णिनः। दिद्यवः। तिग्मऽमूर्धानः ॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 46; मन्त्र » 11
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! यद्येऽन्तरिक्षे पर्णिन इव दिद्यवस्तिग्ममूर्द्धानो योद्धारो युधि पतयन्त्यध विजयं नायं प्रयतन्ते तैः सह नो वृधे भव युध्यस्मान् स्मा सततमवा ॥११॥

    पदार्थः

    (अध) आनन्तर्य्ये (स्मा) एव। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) अस्माकम् (वृधे) (भव) (इन्द्र) ऐश्वर्यवर्धक (नायम्) नेतुम् (अवा) रक्ष। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (युधि) सङ्ग्रामे (यत्) (अन्तरिक्षे) (पतयन्ति) गच्छन्ति (पर्णिनः) पक्षिणः (दिद्यवः) प्रकाशमानाः (तिग्ममूर्द्धानः) तिग्म उपरि वर्त्तमानाः ॥११॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् ! भवान् विमानादीनि यानानि संस्थाप्य पक्षिवदन्तरिक्षमार्गेण गमनागमने कृत्वोत्तमैः पुरुषैः सह विजयं प्राप्य सर्वोत्कृष्टो भव ॥११॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) ऐश्वर्य्य के बढ़ानेवाले सेना के स्वामी ! (यत्) जो (अन्तरिक्षे) अन्तरिक्ष में (पर्णिनः) पक्षियों के समान (दिद्यवः) प्रकाशमान (तिग्ममूर्द्धानः) ऊपर वर्त्तमान योद्धा जन (युधि) सङ्ग्राम में (पतयन्ति) जाते हैं (अध) इसके अनन्तर विजय को (नायम्) प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं उनके साथ (नः) हम लोगों की (वृधे) वृद्धि के लिये (भव) प्रसिद्ध हूजिये और सङ्ग्राम में हम लोगों की (स्मा) ही निरन्तर (अवा) रक्षा कीजिये ॥११॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! आप विमान आदि वाहनों को स्थापित कर पक्षियों के सदृश अन्तरिक्ष मार्ग से गमन और आगमन करके तथा उत्तम पुरुषों के साथ विजय को प्राप्त होकर सब से श्रेष्ठ हूजिये ॥११॥

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    विषय

    उसके कर्त्तव्य । संघ में बल देना राजा का कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) शत्रुहन्तः ! ऐश्वर्यवर्धक ! ( अध) और तू ( नः ) हमारे ( वृधे ) वृद्धि के लिये ( भवस्य ) सदा यत्नवान् होकर रह । और ( युधि ) युद्धकाल में (तत्) जब कि ( अन्तरिक्षे ) अन्तरिक्ष, आकाश में ( पर्णिनः ) पंखों से जड़े ( तिग्म-मूर्धान:) तीक्ष्ण सिरों से युक्त ( दिद्युवः ) बाण (पतयन्ति) पड़ रहे हों तब (अव) रक्षा कर । वा तेजस्वी अन्तरिक्ष से ( पर्णिनः ) अन्तरिक्ष में पक्षियों के समान ( दिद्यवः ) तीक्ष्ण ( तिग्म-मूर्धानः ) तीक्ष्ण शिर के टोप पहने, ( युधि पतयन्ति ) युद्ध में दौड़ रहे हों तब भी ( नः नायम् अव ) हमारे नायक की रक्षा कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्रः प्रगाथं वा देवता । छन्दः - १ निचृदनुष्टुप् । ५,७ स्वराडनुष्टुप् । २ स्वराड् बृहती । ३,४ भुरिग् बृहती । ८, ९ विराड् बृहती । ११ निचृद् बृहती । १३ बृहती । ६ ब्राह्मी गायत्री । १० पंक्ति: । १२,१४ विराट् पंक्ति: ।। चतुर्दशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    प्रभु स्मरण व विजय

    पदार्थ

    [१] (अध) = अब (स्मा) = निश्चय से (नः) = हमारे (वृधे) = वर्धन के लिये (भव) = होइये । हे (इन्द्र) = शत्रुविद्रावक प्रभो ! (युधि) = युद्ध में (नायम्) = हमारे अग्रणी नेता का (अवा) = रक्षण करिये । [२] उस युद्ध में रक्षण करिये, (यत्) = जब कि (अन्तरिक्षे) = अन्तरिक्ष में, चारों ओर के वातावरण में (पर्णिन:) = अग्रभाग में जिनके पंख लगे हुए हैं ऐसे, (तिग्ममूर्धान:) = बड़े तेज शिखरोंवाले (दिद्यवः) = घातक बाण (पतयन्ति) = निरन्तर गिर रहे हैं। इन युद्धों में प्रभु स्मरण ही शक्ति देता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- युद्धों में, प्रभु स्मरण हमारे लिये रक्षक हो । प्रभु स्मरणपूर्वक युद्ध करते हुए हम विजयी बनें ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! तू विमान इत्यादी वाहने तयार करून पक्ष्यांप्रमाणे अंतरिक्ष मार्गात जा-ये करून उत्तम पुरुषांच्या संगतीने विजय प्राप्त करून सर्वात श्रेष्ठ बन. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, chief of defence forces, give us those flying birds of defence and protection which blaze through skies and spaces carrying deep penetrative war heads in front, and then, also, be with us for our leadership, defend and protect us in the battles for our advancement.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should a king do-is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O (king) Indra ! augmenter of wealth, with those brilliant warriors, who go to the battle like the birds in the firmament seated above (in the aircraft etc.) and try to achieve victory, be our (increaser) helper and protect us constantly in the fight.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Having established aircrafts and other vehicles to go to and come from the firmament, like the birds in the firmament, achieve victory with the aid of good warriors and other persons and be exalted.

    Translator's Notes

    There is clear reference to the use of the aero planes in battles and for other purposes. The simile of the birds does not leave any doubt about it.

    Foot Notes

    (पतयन्ति ) गच्छन्ति । पत्लु-गतौ (भ्वा.) । = Go. (दिद्यवः) प्रकाशमानाः । दिवु-क्रीडा-दयु-गतिषु (दिवा.) अत्रदयुत्यर्थः । धृति:- प्रकाश:। = Brilliant. (तिग्ममूर्द्धान:) तिग्म उपरि वर्तमानाः । = Seated above (in the aero plane etc.)

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