Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 46 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 46/ मन्त्र 7
    ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्रः प्रगाथो वा छन्दः - स्वराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    यदि॑न्द्र॒ नाहु॑षी॒ष्वाँ ओजो॑ नृ॒म्णं च॑ कृ॒ष्टिषु॑। यद्वा॒ पञ्च॑ क्षिती॒नां द्यु॒म्नमा भ॑र स॒त्रा विश्वा॑नि॒ पौंस्या॑ ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । इ॒न्द्र॒ । नाहु॑षीषु । आ । ओजः॑ । नृ॒म्णम् । च॒ । कृ॒ष्टिषु॑ । यत् । वा॒ । पञ्च॑ । क्षि॒ती॒नाम् । द्यु॒म्नम् । आ । भ॒र॒ । स॒त्रा । विश्वा॑नि । पौंस्या॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदिन्द्र नाहुषीष्वाँ ओजो नृम्णं च कृष्टिषु। यद्वा पञ्च क्षितीनां द्युम्नमा भर सत्रा विश्वानि पौंस्या ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। इन्द्र। नाहुषीषु। आ। ओजः। नृम्णम्। च। कृष्टिषु। यत्। वा। पञ्च। क्षितीनाम्। द्युम्नम्। आ। भर। सत्रा। विश्वानि। पौंस्या ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 46; मन्त्र » 7
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 28; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राज्ञा कुत्र किं धर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! त्वं कृष्टिषु नाहुषीषु यदोजो नृम्णं च भवेत्तदाऽऽभर वा पञ्च क्षितीनां यद् द्युम्नमस्त्यथवा सत्रा विश्वानि पौंस्या वर्त्तन्ते तानि चाऽऽभर ॥७॥

    पदार्थः

    (यत्) (इन्द्र) प्रजाप्रियधर्त्तः (नाहुषीषु) नहुषाणां मनुष्याणामासु प्रजासु (आ) (ओजः) बलकरमन्नादिकम् (नृम्णम्) धनम् (च) (कृष्टिषु) मनुष्येषु (यत्) (वा) (पञ्च) पञ्चानां तत्त्वाख्यानाम् (क्षितीनाम्) राजसम्बन्धिनीनां भूमीनां मध्ये (द्युम्नम्) शुद्धं यशः (आ) (भर) (सत्रा) सत्यानि (विश्वानि) सर्वाणि (पौंस्या) पुरुषार्थजानि बलानि ॥७॥

    भावार्थः

    हे राजन् ! यदि भवान्त्सर्वाः प्रजा धनधान्यविद्यायुक्ताः कुर्यात्तर्हि पञ्चतत्त्वाख्यं राज्यं प्राप्य धवलं यशः प्राप्नुयात् ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर राजा को कहाँ क्या धारण करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) प्रजा के प्रिय को धारण करनेवाले ! आप (कृष्टिषु) मनुष्यों में और (नाहुषीषु) मनुष्यसम्बन्धी प्रजाओं में (यत्) जो (ओजः) बलकारक अन्न आदि (नृम्णम्) धन (च) और होवे उसको (आ, भर) धारण करिये (वा) वा (पञ्च) पाँच तत्त्वों और (क्षितीनाम्) राजसम्बन्धिनी भूमियों के मध्य में (यत्) जो (द्युम्नम्) शुद्ध यश है अथवा (सत्रा) सत्य (विश्वानि) सम्पूर्ण (पौंस्या) पुरुषार्थ से उत्पन्न हुए बल वर्त्तमान हैं, उनको (आ) धारण करिये ॥७॥

    भावार्थ

    हे राजन् ! जो आप सम्पूर्ण प्रजाओं को धन-धान्य और विद्या से युक्त करिये तो पञ्चतत्त्वनामक राज्य को प्राप्त होकर धवलित यश को प्राप्त हूजिये ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उसके कर्त्तव्य । संघ में बल देना राजा का कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ( नाहुषीषु कृष्टिषु) मनुष्य प्रजाओं में ( यत् ओजः नृम्णं च ) जो बल पराक्रम और धनैश्वर्य है और ( यत् ) जो भी (पञ्च-क्षितीनां द्युम्नं ) पांचों प्रकार की राष्ट्रवासिनी प्रजाओं वा भूमियों का तेज और ऐश्वर्य है और (सत्रा) सत्य ( विश्वानि पौंस्या) सब प्रकार के पुरुषार्थोपयोगी बल हैं उन सबको ( आ भर ) तू स्वयं प्राप्त कर और हमें भी प्राप्त करा ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्रः प्रगाथं वा देवता । छन्दः - १ निचृदनुष्टुप् । ५,७ स्वराडनुष्टुप् । २ स्वराड् बृहती । ३,४ भुरिग् बृहती । ८, ९ विराड् बृहती । ११ निचृद् बृहती । १३ बृहती । ६ ब्राह्मी गायत्री । १० पंक्ति: । १२,१४ विराट् पंक्ति: ।। चतुर्दशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ओज-नृम्ण-द्युम्न-पौंस्य

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (यत्) = जो (ओजः) = बल (च) = और (नृम्णम्) = धन (नाहुषीषु) = मानव (कृष्टिषु) = प्रजाओं में होना चाहिए उसे आभर हमारे लिये प्राप्त कराइये । [२] (यद्वा) = और जो (पञ्च क्षितीनाम्) ='अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय व आनन्दमय' इन पाँचों भूमियों का (द्युम्नम्) = आन्तर ऐश्वर्य है, उसे हमारे लिये प्राप्त कराइये और (सत्रा) = सत्य (विश्वानि) = सब (पौंस्यानि) = बलों को हमें प्राप्त कराइये ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु कृपा से हमें 'ओज, नृम्ण, द्युम्न व पौंस्य' प्राप्त हों ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा ! तू संपूर्ण प्रजेला धनधान्य व विद्येने युक्त करशील तर पंचतत्त्व नामक राज्य प्राप्त होऊन उज्ज्वल यश मिळेल. ॥ ७ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, ruler of the world, whatever the lustre and splendour in humanity across history, whatever the power and wealth among communities, whatever the virtue and quality in the five elements of nature or lands of the earth, or whatever the strength and vigour of the world of existence, you bear and symbolise all that. Pray, O lord, bear and bring us all that.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should a king keep and where-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Indra! you are lover of your subjects. Bring to us all nourishing food materials, strength and wealth that is found among men. Bring to us, all manly powers produced by exertion, that are found on the land, consisting of five great elements and pure fame.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    king! if you make all subjects, full of knowledge, wealth and grain, then you can attain pure glory (or good name) and by obtaining land in which all the five elements are in proper proportion and in pure form.

    Translator's Notes

    It is certainly wrong on the part of Shri Sayahacharya; Prof. Wilson, Griffith and other to take Nahusha as the name of a particular king instead of taking it for men in general as clearly stated in the Vedic Lexicon Nighantu.

    Foot Notes

    (नाहुषीषु) नहुषाणां मनुष्याणाम् आसु-प्रजासु । नहुषः इति मनुष्यनाम (NG 2, 3)। = Among men. (ओज:) बलकरमअन्नादिकम् । ओजा इति बलनाम (NG 2, 9)। = Food grains that are nourishing or invigorating. (नृम्णम्) धनम् । = Wealth. (पौंस्या) पुरुषार्थजानि बलानि । पौस्यानि इति बलनाम (NG 2, 9)। = Manly powers produced by exertion.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top