ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 49/ मन्त्र 9
प्र॒थ॒म॒भाजं॑ य॒शसं॑ वयो॒धां सु॑पा॒णिं दे॒वं सु॒गभ॑स्ति॒मृभ्व॑म्। होता॑ यक्षद्यज॒तं प॒स्त्या॑नाम॒ग्निस्त्वष्टा॑रं सु॒हवं॑ वि॒भावा॑ ॥९॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒थ॒म॒ऽभाज॑म् । य॒शस॑म् । व॒यः॒ऽधाम् । सु॒ऽपा॒णिम् । दे॒वम् । सु॒ऽगभ॑स्तिम् । ऋभ्व॑म् । होता॑ । य॒क्ष॒त् । य॒ज॒तम् । प॒स्त्या॑नाम् । अ॒ग्निः । त्वष्टा॑रम् । सु॒ऽहव॑म् । वि॒भाऽवा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रथमभाजं यशसं वयोधां सुपाणिं देवं सुगभस्तिमृभ्वम्। होता यक्षद्यजतं पस्त्यानामग्निस्त्वष्टारं सुहवं विभावा ॥९॥
स्वर रहित पद पाठप्रथमऽभाजम्। यशसम्। वयःऽधाम्। सुऽपाणिम्। देवम्। सुऽगभस्तिम्। ऋभ्वम्। होता। यक्षत्। यजतम्। पस्त्यानाम्। अग्निः। त्वष्टारम्। सुऽहवम्। विभाऽवा ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 49; मन्त्र » 9
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्याः कं सेवेरन्नित्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! योऽग्निरिव विभावा होता त्वष्टारं सुहवं पस्त्यानां मध्ये यजतमृभ्वं सुगभस्तिं प्रथमभाजं यशसं वयोधां सुपाणिं देवं यक्षत्स एव युष्माभिः सङ्गन्तव्यः ॥९॥
पदार्थः
(प्रथमभाजम्) यः प्रथमान् भजति सेवते (यशसम्) यशः कीर्तिर्विद्यते यस्य तम् (वयोधाम्) यो वयो जीवनं दधाति तम् (सुपाणिम्) शोभनौ धर्मकर्मकरौ पाणी श्रेष्ठो व्यवहारो वा यस्य तम् (देवम्) दातारं विद्वांसम् (सुगभस्तिम्) सुष्ठुप्रकाशम् (ऋभ्वम्) मेधाविनम् (होता) दाता (यक्षत्) सङ्गच्छेत् (यजतम्) सङ्गन्तव्यम् (पस्त्यानाम्) गृहाणाम् (अग्निः) पावक इव वर्त्तमानः (त्वष्टारम्) छेत्तारम् (सुहवम्) सुष्ठ्वाह्वयितुं योग्यम् (विभावा) यो विशेषेण भाति ॥९॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या विद्यावृद्धान् पावकवदविद्यादुःखदाहकान् विदुषः सेवन्ते ते गृहे दीप इवोपदेश्यानामात्मनः प्रकाशयितुमर्हन्ति ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य किसका सेवन करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (अग्निः) पावक के समान वर्त्तमान (विभावा) विशेषता से प्रकाशमान (होता) दानशील जन (त्वष्टारम्) छेदन-भेदन करनेवाले (सुहवम्) बुलाने योग्य वा (पस्त्यानाम्) घरों के बीच (यजतम्) सङ्ग करने योग्य वा (ऋभ्वम्) बुद्धिमान् (सुगभस्तिम्) सुन्दर प्रकाशक (प्रथमभाजम्) अगलों को सेवते हुए (यशसम्) कीर्त्तिमान् तथा (वयोधाम्) जीवन धारण करनेवाले तथा (सुपाणिम्) सुन्दर व्यवहारवाले वा शोभन धर्म कर्मकारी हस्त जिसके उस (देवम्) दान करनेवाले विद्वान् जन का (यक्षत्) सङ्ग करे, वही तुमको सङ्ग करने योग्य है ॥९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य विद्यावृद्ध, अग्नि के समान अविद्याजन्य दुःख के जलानेवाले विद्वानों की सेवा करते हैं, वे घर में दीपक के समान उपदेश देने योग्यों को आत्माओं के प्रकाश करने को योग्य हैं ॥९॥
विषय
missing
भावार्थ
( होता ) दानशील (अग्निः) तेजस्वी विद्वान् (वि-भा-वा ). विशेष कान्तिमान् होकर भी ( प्रथम-भाजं ) प्रथम, पूज्यों का सेवन करने वाले, ( यशसं ) यशस्वी, ( वयोधां ) बल, ज्ञान, दीर्घायु के धारण करने कराने वाले, ( सुपाणिं ) उत्तम हाथ वाले, उत्तम व्यवहारवान् ( देवम् ) दानशील, ज्ञानदाता, ( सु-गभस्तिम् ) सूर्यवत् उत्तम बाहु वाले और उत्तम किरणवान्, सुप्रकाशक, (ऋभ्वम् ) अति तेजस्वी, सत्य ज्ञान से युक्त ( यजतं ) सत्संग योग्य, ( त्वष्टारं ) संशयादि के छेत्ता, सूर्यवत् प्रकाशक (पस्त्यानां) गृहों, वा प्रजाओं के बीच (सु-हवं ) सुगृहीत नामधेय गुरुजन का ( यक्षत् ) सत्कार करे और उत्तम भेंट अन्न आदि प्रदान करे । स्नातक गृह में प्रवेश कर लेने या स्वयं जगत् में उच्च पदस्थ होकर भी गुरुजन व प्रभु का सदा आदर और उसकी उपासना, करता रहे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋजिश्वा ऋषिः ॥ विश्वे देवा देवता ॥ छन्दः - १, ३, ४, १०, ११ त्रिष्टुप् । ५,६,९,१३ निचृत्त्रिष्टुप् । ८, १२ विराट् त्रिष्टुप् । २, १४ स्वराट् पंक्तिः । ७ ब्राह्मयुष्णिक् । १५ अतिजगती । पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
होता-अग्नि-विभावा
पदार्थ
[१] (होता) = दानपूर्वक अदन करनेवाला व्यक्ति (ऋभ्वम्) = [उरु भासमानम्] खूब (दीस देवम्) = प्रकाशमय प्रभु को यक्षत् = पूजित करता है, जो प्रभु (प्रथमभाजम्) = प्रथम स्थान का सेवन करनेवाले हैं, सब ज्ञान शक्ति आदि गुणों के दृष्टिकोण से प्रथम स्थान में स्थित हैं। (यशसम्) = यशस्वी हैं । (वयोधाम्) = उपासकों के लिये उत्कृष्ट जीवन का धारण करनेवाले हैं। (सुपाणिम्) = उत्तम हाथों व कर्मोंवाले हैं और (सुगभस्तिम्) = उत्तम ज्ञानरश्मियोंवाले हैं। [२] (अग्नि:) = प्रगतिशील, विभावाविशिष्ट दीप्तिवाला पुरुष (पस्त्यानां यजतम्) = सब गृहवासियों के पूज्य, (सुहवम्) = सुगमता से पुकारने योग्य (त्वष्टारम्) = उस निर्माता प्रभु को [यक्षत्] पूजता है।
भावार्थ
भावार्थ- हम 'दानपूर्वक अदन करनेवाले, प्रगतिशील व विशिष्ट दीप्तिवाले' बनकर ही प्रभु करते हैं। यह उपासना हमें 'अग्रणी-यशस्वीजीवनवाला - कार्यकुशल- ज्ञानरश्मि का उपासन -उत्कृष्ट सम्पन्न' बनाता है ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे विद्यावृद्ध अविद्यायुक्त दुःखाचे दहन करणाऱ्या अग्नीप्रमाणे विद्वानांची सेवा करतात ती घरात जसा दीपक तसे उपदेश करण्यायोग्य आत्म्यामध्ये प्रकाश करण्यायोग्य असतात. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Let agni, generous yajaka, join and offer abundant homage and service to Tvashta, maker of forms and institutions for humanity. Who is freely sociable, and first to be invited, famous and adorable, giver of health and long age, expert of hand in action, generous, brilliant, exceptionally intelligent, adorable and openly accessible and responsive to the brilliant host, agni.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Whom should men serve-is further told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men! you should associate with that man, who, being a liberal donor and shining like fire, worships an enlightened person, who is destroyer of evils, to be invited well, worthy of association, living at the houses of his pupils, genius, endowed with good light of knowledge, serving exalted wisemen, glorious, doer of good deeds with his hands or a man of noble dealings and a highly learned person, who gives knowledge to others.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those men, who serve persons of advanced knowledge and burners (destroyers) of ignorance and miseries like fire, can illuminate the souls of their audience like a lamp in the house.
Foot Notes
(त्वष्टारम्) छेत्तारम्। = Cutter or destroyer of ignorance and all evils. (ऋभ्वम् ) मेधाविनम् । ऋभुरिति मेधाविनाम् (NG 3, 15)। = Extra-ordinarily wise or genius. (सुगभस्तिम्) सुष्ठुप्रकाशम् । गभस्तयः इति रश्मिनाम (NG 1, 5) अत्र ज्ञान रश्मीनां ग्रहणम् । = Endowed with the good light (of knowledge ). (पस्त्यानाम्) गृहाणम् । पस्त्यम् इति गृहनाम (NG 3, 4) । = Of the homes.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal