ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 20
ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
क॒विं मृ॑जन्ति॒ मर्ज्यं॑ धी॒भिर्विप्रा॑ अव॒स्यव॑: । वृषा॒ कनि॑क्रदर्षति ॥
स्वर सहित पद पाठक॒विम् । मृ॒ज॒न्ति॒ । मर्ज्य॑म् । धी॒भिः । विप्राः॑ । अ॒व॒स्यवः॑ । वृषा॑ । कनि॑क्रत् । अ॒र्ष॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
कविं मृजन्ति मर्ज्यं धीभिर्विप्रा अवस्यव: । वृषा कनिक्रदर्षति ॥
स्वर रहित पद पाठकविम् । मृजन्ति । मर्ज्यम् । धीभिः । विप्राः । अवस्यवः । वृषा । कनिक्रत् । अर्षति ॥ ९.६३.२०
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 20
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 33; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 33; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अवस्यवः) रक्षाकर्तारः (विप्राः) मेधाविनः (धीभिः) बुद्ध्या (मर्ज्यम्) शुद्धस्वरूपं तथा (कविम्) सर्वज्ञं परमात्मानं (मृजन्ति) ध्यानविषयं कुर्वन्ति। स परमात्मा (वृषा) अभिलाषपूरकः एवम्भूतः परमेश्वरः (कनिक्रत्) वेदवाणीं प्रददत (अर्षति) आमोदस्य वृष्टिं करोति ॥२०॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अवस्यवः) रक्षा करनेवाले (विप्राः) मेधावी लोग (धीभिः) बुद्धि द्वारा (मर्ज्यं) शुद्धस्वरूप तथा (कविम्) सर्वज्ञ परमात्मा को (मृजन्ति) ध्यान का विषय बनाते हैं। वह परमात्मा (वृषा) जो कि कामनाओं को वृष्टि करनेवाला है, एवंभूत ईश्वर (कनिक्रत्) वेदवाणी को प्रदान करता हुआ (अर्षति) आनन्द की वृष्टि करता है ॥२०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा ने इस बात का उपदेश किया है कि जो लोग संस्कृत बुद्धि द्वारा उसका ध्यान करते हैं, उनको परमात्मा का साक्षात्कार होता है। इसीलिये उपनिषद में कहा है कि “दृश्यते त्वग्र्या बुद्ध्या सूक्ष्मया सूक्ष्मदर्शिमिः” कि सूक्ष्मदर्शी लोग सूक्ष्मबुद्धि द्वारा उसके साक्षात्कार को प्राप्त होते हैं ॥२०॥
विषय
'कवि मर्ज्य' सोम
पदार्थ
[१] (विप्राः) = अपना विशेषरूप से पूरण करनेवाले व्यक्ति, (अवस्यवः) = ' रोगों व वासनाओं' के आक्रमण से अपने रक्षण की कामनावाले इस सोम का (धीभिः) = बुद्धिपूर्वक उत्तम कर्मों में लगे रहने के द्वारा [धी= बुद्धि व कर्म] (मृजन्ति) = शोधन करते हैं । उस सोम का शोधन करते हैं, जो कि (कविम्) = हमें क्रान्तप्रज्ञ व सूक्ष्म बुद्धिवाला बनाता है तथा (मर्ज्यम्) = शोधन के योग्य है । सोम का शोधन यही है कि यह वासनाओं से मलिन न हो। इसका साधन यही है कि हम ज्ञानपूर्वक कर्मों में प्रवृत्त रहें। [२] वृषा- हमें शक्तिशाली बनानेवाला यह सोम (कनिक्रत्) = प्रभु के गुणों का उच्चारण करता हुआ (अर्षति) = शरीर में गतिवाला होता है। सुरक्षित सोम हमें शक्ति सम्पन्न व प्रभु- प्रवण बनाता है
भावार्थ
भावार्थ- ज्ञानपूर्वक कर्मों में लगे रहकर हम सोम का शोधन करें। यह हमें शक्ति सम्पन्न व प्रभु के प्रति प्रीतिवाला बनायेगा ।
विषय
परिव्राजक्रादि के तुल्य अन्य अभिषिक्तों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(अवस्यवः विप्राः) रक्षा, ज्ञान, स्नेह, समृद्धि आदि के चाहने वाले, विद्वान् बुद्धिमान् पुरुष, (धीभिः) कर्मों, वचनों और बुद्धियों द्वारा (मर्ज्यं) अभिषेक करने योग्य (कविं) विद्वान्, क्रान्तदर्शी पुरुष को (मृजन्ति) मार्जित या पदपर अभिषिक्त करते हैं। वह (वृषा) बलशाली, प्रजा पर सुखों की वर्षा करने वाला पुरुष (कनिक्रदत्) गर्जते मेघ के समान प्रजा जनों पर (कनिक्रदत्) घोषणाएं और आज्ञाएं देता हुआ और विद्वान् परिव्राजक उपदेश देता हुआ (अर्षति) आता है और ऐश्वर्य, ज्ञानादि की वर्षा करता है। अध्यात्म में—सोम आत्मा को विद्वान् शोधते हैं वह धर्ममेध रूप होकर आनन्द प्रदान करता है ! इति त्रयस्त्रिंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
निध्रुविः काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, १२, १७, २०, २२, २३, २५, २७, २८, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७-११, १६, १८, १९, २१, २४, २६ गायत्री। ५, १३, १५ विराड् गायत्री। ६, १४, २९ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Vibrant sages and scholars who need assistance and protection exalt Soma, lord of peace and joy, adorable and omniscient visionary, with songs and creative actions, and the potent and generous lord responds in loud tones of heroism and moves forward to action.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमेश्वराने या गोष्टीचा उपदेश केलेला आहे की जे लोक सुसंस्कारित बुद्धीद्वारे त्याचे ध्यान करतात त्यांना परमेश्वराचा साक्षात्कार होतो. त्यासाठी उपनिषदात म्हटलेले आहे की ‘दृष्यते बुद्ध्या सूक्ष्मया सूक्ष्मदर्शिभि:’ सूक्ष्मदर्शी लोकांना सूक्ष्मदर्शनाद्वारे त्याचा साक्षात्कार होतो. ॥२०॥
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