ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 8
अयु॑क्त॒ सूर॒ एत॑शं॒ पव॑मानो म॒नावधि॑ । अ॒न्तरि॑क्षेण॒ यात॑वे ॥
स्वर सहित पद पाठअयु॑क्त । सूरः॑ । एत॑शम् । पव॑मानः । म॒नौ । अधि॑ । अ॒न्तरि॑क्षेण । यात॑वे ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयुक्त सूर एतशं पवमानो मनावधि । अन्तरिक्षेण यातवे ॥
स्वर रहित पद पाठअयुक्त । सूरः । एतशम् । पवमानः । मनौ । अधि । अन्तरिक्षेण । यातवे ॥ ९.६३.८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 8
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 31; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 31; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमानः) सर्वपावकः परमात्मा (मनावधि) यः खलु नराधिपोऽस्ति स ईश्वरः (अन्तरिक्षेण) अविज्ञेयमार्गेण (यातवे) गन्तुं (सूरः) सरतीति सूरः योऽन्तरिक्षेण मार्गेण गतिं करोति (एतशम्) एतादृशशक्तिविशेषं सूर्यं (अयुक्त) योजयति ॥८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पवमानः) सबको पवित्र करनेवाला परमात्मा (मनावधि) जो मनुष्यमात्र का स्वामी है, वह (अन्तरिक्षेण) अन्तरिक्षमार्ग द्वारा (यातवे) जाने के लिये (सूरः) जो अन्तरिक्षमार्ग से गमन करता है, (एतशं) ऐसे शक्तिसम्पन्न सूर्य को (अयुक्त) जोड़ता है ॥८॥
भावार्थ
परमात्मा ने अपने सामर्थ्य से अनन्त शक्ति उत्पन्न की हैं ॥८॥
विषय
अन्तरिक्ष से जाना
पदार्थ
[१] (पवमानः) = हमारे जीवनों को पवित्र करता हुआ यह सोम (मनौ अधि) = विचारशील पुरुष में (सूरः) = सूर्य के (एतशम्) = अश्व को अयुक्त - जोतता है। सूर्य के अश्व को युक्त करने का भाव यही है कि हमारे जीवन में यह सोम ज्ञान के सूर्य को उदित करता है। [२] यह उदित हुआ- हुआ ज्ञान का सूर्य (अन्तरिक्षेण) = अन्तरिक्ष मार्ग से (यातवे) = जाने के लिये होता है। सोमरक्षण से जब हमें ज्ञान का प्रकाश प्राप्त होता है, तो हम सदा मध्यमार्ग से चलनेवाले बनते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें ज्ञान प्राप्त कराके मध्यमार्ग में चलनेवाला बनाता है।
विषय
राज्यकार्य में आकाशयानों का प्रयोग।
भावार्थ
वह (सूरः) सूर्य के समान तेजस्वी पुरुष (पवमानः) पवित्र पद पर अभिषिक्त होकर (मनौ अधि) मनुष्य वर्ग के ऊपर (अन्तरिक्षेण यातवे) अन्तरिक्ष मार्ग अर्थात् सर्वोपरि मार्ग से जाने के लिये (एतशं) वेगयुक्त अश्व यान आदि को (अयुक्त) जोड़े। अथवा—(यातवे एतशं अयुक्त) ‘यातु’ प्रजापीड़क के नाश करने के लिये वह अश्व, रथ आदि के सैन्य को अन्तरिक्ष मार्ग से भी नियुक्त करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
निध्रुविः काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, १२, १७, २०, २२, २३, २५, २७, २८, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७-११, १६, १८, १९, २१, २४, २६ गायत्री। ५, १३, १५ विराड् गायत्री। ६, १४, २९ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The light of the world, pure, radiant and inspiring over man and mind, joins the man of super fast intelligence and inspires him to rise and fly over paths of the skies.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराने आपल्या सामर्थ्याने अनंत शक्ती उत्पन्न केलेल्या आहे. ॥८॥
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