ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 26
पव॑मानास आ॒शव॑: शु॒भ्रा अ॑सृग्र॒मिन्द॑वः । घ्नन्तो॒ विश्वा॒ अप॒ द्विष॑: ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑मानासः । आ॒शवः॑ । शु॒भ्राः । अ॒सृ॒ग्र॒म् । इन्द॑वः । घ्नन्तः॑ । विश्वाः॑ । अप॑ । द्विषः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानास आशव: शुभ्रा असृग्रमिन्दवः । घ्नन्तो विश्वा अप द्विष: ॥
स्वर रहित पद पाठपवमानासः । आशवः । शुभ्राः । असृग्रम् । इन्दवः । घ्नन्तः । विश्वाः । अप । द्विषः ॥ ९.६३.२६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 26
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 35; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 35; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अपद्विषः) मत्सरान् (घ्नन्तः) नाशयन् (पवमानासः) देशपवितारः शूरवीरादयः (आशवः) अतिशीघ्रकारिणः (शुभ्राः) सुन्दराङ्गाः (इन्दवः) ऐश्वर्यशालिनः (विश्वाः असृग्रम्) सर्वविधैश्वर्याणि उत्पादयन्ति ॥२६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अपद्विषः) अनुचित द्वेषियों को (घ्नन्तः) नाश करते हुए (पवमानासः) देश को पवित्र करनेवाले शूरवीर (आशवः) अति शीघ्रता करनेवाले (शुभ्राः) सुन्दर (इन्दवः) ऐश्वर्यशाली (विश्वाः असृग्रं) सब प्रकार के एश्वर्यों को उत्पन्न करते हैं ॥२६॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करता है कि जो शूरवीर अन्यायकारी दुष्टों को दमन करते हैं, वे देश के लिये अनन्त प्रकार के ऐश्वर्य को उत्पन्न करते हैं ॥२६॥
विषय
'पवित्र - शुभ्र - निर्देष' जीवन
पदार्थ
[१] (पवमानासः) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले, (आशवः) = हमें शीघ्रता व स्फूर्ति से व्याप्त करनेवाले, (शुभ्रा:) = दीप्त, (इन्दवः) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले ये सोमकण (असृग्रम्) = उत्पन्न किये जाते हैं । [२] ये सोमकण (विश्वाः) = सब (द्विषः) = द्वेष की भावनाओं को (अपघ्नन्तः) = हमारे से सुदूर विनष्ट करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें 'पवित्र, शुभ्र, निर्देष' जीवनवाला करते हैं ।
विषय
राष्ट्र-शोधक जनों का कर्त्तव्य।
भावार्थ
(पवमानासः) वेग से गात करते हुए, वा राष्ट्र का शोधन करते हुए, (आशवः) वेगवान्, (शुभ्राः) शुभ्र, तेजस्वी, शुद्धा आचारवान् आभरण आदि और गुणों से अलंकृत (इन्दवः) परम ऐश्वर्ययुक्त जन (विश्वाः द्विषः) समस्त द्वेष करने वाले, अप्रीति के योग्य जनों को (अप घ्नन्तः) दण्डित कर दूर करते हुए (असृग्रम्) प्रकट होते हैं।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
निध्रुविः काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, १२, १७, २०, २२, २३, २५, २७, २८, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७-११, १६, १८, १९, २१, २४, २६ गायत्री। ५, १३, १५ विराड् गायत्री। ६, १४, २९ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Pure and purifying, instant and effective, bright and blazing streams of soma like warriors of nature flow and advance in action, creating peace and plenty for life, dispelling and eliminating all jealous and destructive forces from society.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो की जे शूरवीर अन्यायकारी दुष्टांचे दमन करतात. ते देशासाठी अनंत प्रकारचे ऐश्वर्य उत्पन्न करतात. ॥२६॥
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