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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 88 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 88/ मन्त्र 4
    ऋषिः - उशनाः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इन्द्रो॒ न यो म॒हा कर्मा॑णि॒ चक्रि॑र्ह॒न्ता वृ॒त्राणा॑मसि सोम पू॒र्भित् । पै॒द्वो न हि त्वमहि॑नाम्नां ह॒न्ता विश्व॑स्यासि सोम॒ दस्यो॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रः॑ । न । यः । म॒हा । कर्मा॑णि । चक्रिः॑ । ह॒न्ता । वृ॒त्राणा॑म् । अ॒सि॒ । सो॒म॒ । पूः॒ऽभित् । पै॒द्वः । न । हि । त्वम् । अहि॑ऽनाम्नाम् । ह॒न्ता । विश्व॑स्य । अ॒सि॒ । सो॒म॒ । दस्योः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रो न यो महा कर्माणि चक्रिर्हन्ता वृत्राणामसि सोम पूर्भित् । पैद्वो न हि त्वमहिनाम्नां हन्ता विश्वस्यासि सोम दस्यो: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः । न । यः । महा । कर्माणि । चक्रिः । हन्ता । वृत्राणाम् । असि । सोम । पूःऽभित् । पैद्वः । न । हि । त्वम् । अहिऽनाम्नाम् । हन्ता । विश्वस्य । असि । सोम । दस्योः ॥ ९.८८.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 88; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यः) योऽयं सोमः (इन्द्रः, न) इन्द्रतुल्यः (महाकर्म्माणि) महतां कर्म्मणां (चक्रिः) कारकोऽस्ति। (सोम) हे परमात्मन् ! (वृत्राणां, हन्ता, असि) त्वमज्ञानानां नाशकोऽसि। (पूर्भित्) अज्ञानग्रन्थिभेदकोऽसि। (पैद्वः, न) विद्युदिव त्वं (अहिनाम्नां) तमसां (हन्ता) घातकश्चासि। (विश्वस्य, दस्योः) त्वं निखिलदस्यूनां (हन्ता, असि) हननकर्तासि ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यः) जो सोम (इन्द्रो न) इन्द्र के समान (महाकर्म्माणि) बड़े-बड़े कर्म्मों को (चक्रिः) करता है। (वृत्राणां हन्ता असि) अज्ञानों के तुम हनन करनेवाले हो। (सोम) हे सोम ! (पूर्भित्) अज्ञानरूपी ग्रन्थियों को भेदन करनेवाले हो (पैद्वो, न) और विद्युत् के समान (अहिनाम्नां) अन्धकारों के (हन्ता) हनन करनेवाले हो। (विश्वस्य दस्योः) सम्पूर्ण दस्युओं के आप (हन्ता, असि) हनन करनेवाले हैं ॥४॥

    भावार्थ

    परमात्मा सब प्रकार के अज्ञानों का नाश करनेवाला है। उसकी कृपा से उपासक में ऐसा प्रभाव उत्पन्न होता है, जिससे वह विद्युत् के समान तेजस्वी बनकर विरोधी शक्तियों का दलन करता है ॥४॥

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    विषय

    व्रतनिष्ठ विद्वान् का विजयी सेनापति के तुल्य आत्म-विजय।

    भावार्थ

    (यः) जो (इन्द्रः न) विद्युत्, वायु, सूर्य, गुरु, प्रभु राजा के तुल्य (महा कर्माणि चक्रिः) बड़े २ काम करने वाला है वह हे (सोम) वीर्यवन् ! बलवन् ! पदाभिषिक्त, व्रताभिषिक्त विद्वन् ! (पूर्भित्) शत्रु-नगरी को तोड़ने वाले सेनापति के तुल्य (पूर्भित्) ब्रह्मपुरी या देह-बन्धन का भेदन करने वाला होकर (वृत्राणाम्) बढ़ते एवं आवरण करने वा घेर लेने वाले दुर्विचारों को शत्रुवत् (हन्ता असि) नाशक हो। (पैद्वः न) अश्व के समान (हि) ही (त्वम्) तू (अहि-नाम्नां) सन्मुख आकर लड़ने वाले और शत्रु नायक जनों और (विश्वस्य दस्योः हन्ता असि) समस्त दुष्टजनों को मारने वाला हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    उशना ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः – १ सतः पंक्ति:। २, ४, ८ विराट् त्रिष्टुप्। ३, ६, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। ५ त्रिष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    महाकर्माणि चक्रिः दस्यो हन्ता

    पदार्थ

    (इन्द्रः न) = सब बल के कर्मों को करनेवाले प्रभु की तरह (यः) = जो तू महाकर्माणि महान् कर्मों को (चक्रिः) = करनेवाला है वह तू (वृत्राणाम्) = ज्ञान की आवरणभूत वासनाओं का (हन्ता) = विनाश करनेवाला है। हे सोम ! तू (पूर्भित् असि) = असुरों की पुरियों का विदारण करनेवाला है। 'काम- क्रोध-लोभ' तीनों की पुरियों का विदारण करके तू हमें सशक्त शरीरवाला, निर्मल हृदयवाला तथा परिशुद्ध बुद्धिवाला बनाता है। (पैद्वः न) = निरन्तर गतिशील अश्व की तरह हे सोम ! (त्वम्) = तू (हि) = निश्चय से (अहिनाम्नाम्) = अहि नामवाले शत्रुओं का (हन्ता असि) = विनाशक है। इन अहि [वृत्र] नाम का ही नहीं, अपितु (विश्वस्य दस्योः) = सब विनाशक शत्रुओं का तू हन्ता असि=नाश करनेवाला है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें प्रभु की तरह महान् कार्यों को करनेवाला बनाता है, और वासनाओं को नष्ट करता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, who are a great performer like Indra, the omnipotent, you are the destroyer of demonic forces and the breaker of their strongholds. Like lazer beams, you are the killer of the malignant, the poisonous and all the other negativities of the world.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा सर्व प्रकारच्या अज्ञानाचा नाश करणारा आहे. त्याच्या कृपेने उपासकात असा प्रभाव उत्पन्न होतो की ज्यामुळे तो विद्युतप्रमाणे तेजस्वी बनून विरोधी शक्तीचे दलन करतो. ॥४॥

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