ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 88/ मन्त्र 7
शु॒ष्मी शर्धो॒ न मारु॑तं पव॒स्वान॑भिशस्ता दि॒व्या यथा॒ विट् । आपो॒ न म॒क्षू सु॑म॒तिर्भ॑वा नः स॒हस्रा॑प्साः पृतना॒षाण्न य॒ज्ञः ॥
स्वर सहित पद पाठशु॒ष्मी । शर्धः॑ । न । मारु॑तम् । प॒व॒स्व॒ । अन॑भिऽशस्ता । दि॒व्या । यथा॑ । विट् । आपः॑ । न । म॒क्षु । सु॒ऽम॒तिः । भ॒व॒ । नः॒ । स॒हस्र॑ऽअप्साः । पृ॒त॒ना॒षाट् । न । य॒ज्ञः ॥
स्वर रहित मन्त्र
शुष्मी शर्धो न मारुतं पवस्वानभिशस्ता दिव्या यथा विट् । आपो न मक्षू सुमतिर्भवा नः सहस्राप्साः पृतनाषाण्न यज्ञः ॥
स्वर रहित पद पाठशुष्मी । शर्धः । न । मारुतम् । पवस्व । अनभिऽशस्ता । दिव्या । यथा । विट् । आपः । न । मक्षु । सुऽमतिः । भव । नः । सहस्रऽअप्साः । पृतनाषाट् । न । यज्ञः ॥ ९.८८.७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 88; मन्त्र » 7
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 7
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अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 7
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(शुष्मी) “सर्वशोषणात् परमात्मनो नाम शुष्मी” हे बलस्वरूप परमात्मन् ! (मारुतं) विदुषां गणान् (शर्धः, न) बलवत् (पवस्व) त्वं पवित्रय (यथा) येन प्रकारेण (दिव्या, विट्) दिव्यप्रजानां (अनभिशस्ता) सुखप्रदो राजा पूतो भवति। तथैव (आपः, न) सत्कर्मतुल्यः (मक्षु) शीघ्रं (सुमतिः, भव) मह्यं सुमतिमुत्पादय। (सहस्राप्साः) अनन्तशक्तिसम्पन्नस्त्वं (पृतनाषाट्) सङ्ग्रामेषु दुराचारिणान्नाशकर्त्तः परमात्मन् ! त्वं (यज्ञः, न) मह्यं यज्ञतुल्यो भव ॥७॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(शुष्मी) सबको शोषण करने के कारण परमात्मा का नाम शुष्मी है। हे बलस्वरूप परमात्मन् ! (मारुतं) विद्वानों के गण को (शर्धो न) बल के समान (पवस्व) आप पवित्र करें। (यथा) जैसे (दिव्या, विट्) दिव्य प्रजाओं का (अनभिशस्ता) सुख देनेवाला राजा पवित्र होता है, इसी प्रकार (आपो न) सत्कर्मों के समान (मक्षु) शीघ्र (सुमतिः भव) हमारे लिये सुमति उत्पन्न करें। (सहस्राप्साः) अनन्त शक्तियोंवाले आप (पृतनाषाट्) अनाचारियों को युद्ध में नाश करनेवाले परमात्मन् ! (यज्ञो न) आप हमारे लिये यज्ञ के समान हो ॥७॥
भावार्थ
परमात्मा का बल सब बलों में से मुख्य है, इसीलिये “य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उषासते” ऋ.। मं.। १०। २१। २ इत्यादि मन्त्रों में जिसको सर्वोपरि बलस्वरूप कथन किया गया है, वह हमको बल प्रदान करे ॥७॥
विषय
विद्वान वा राजा का अन्यों को बिना पीड़ा दिये आना और विजय करना।
भावार्थ
हे सोम ! विद्वन् ! स्वामिन् ! तू (शुष्मी) बलवान् होकर भी (मारुतं शर्धः न पवस्व) वायु के झकोरे के समान हमें ऐसे प्राप्त हो (यथा) जिससे (दिव्या विट्) उत्तम प्रजा (अनभि-शस्ता) पीड़ित, हिंसित न हो। तू (मक्षु) शीघ्र ही (नः) हमारे प्रति (आपः न) जलों के तुल्य, आप्तजनों के समान (सु-मतिः) शुभ ज्ञान वाला (भव) हो। तू (सहस्र-अप्साः) बलवान् रूप वाला, दृढ़ांग होकर (यज्ञः न पृतना-षाट) संगति प्राप्त सैन्य के समान संग्राम में शत्रु सेनाओं को पराजय करने वाला हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
उशना ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः – १ सतः पंक्ति:। २, ४, ८ विराट् त्रिष्टुप्। ३, ६, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। ५ त्रिष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्॥
विषय
शुष्मी-अनभिशस्ता-सुमति-पृतनाषाद्
पदार्थ
हे सोम ! (शुष्मी) = शत्रु शोषक बलवाला तू (पवस्व) = हमें प्राप्त हो । तू (मारुतं शर्धः न) = प्राणों के बल के समान हमें प्राप्त हो। यह सोम क्या है ? यह तो प्राणों का बल है। यह सोम तो (अनभिशस्ता) = आनन्दित (दिव्या विट् यथा) = दिव्य प्रजा के समान है। वस्तुतः सोम ही प्राणों के बल को प्राप्त कराता है और यह सोम ही हमारे जीवन को आनन्दित व दिव्य बनाता है। आपो (न) = जलों के समान तू (नः) = हमारे लिये (सुमतिः भव) = कल्याणी मतिवाला हो। जल शरीर के सब रोगों को दूर करके स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का कारण बनते हैं, इसी प्रकार सोम तीव्र बुद्धि के जनक हैं, वस्तुतः ये ही ज्ञानाग्नि के ईंधन हैं। (सहस्त्राप्सा:) = यह सोम [सहस्] आनन्दमय रूप को प्राप्त करानेवाला है। (पृतनाषाण् न) = शत्रु सैन्य के पराभव करनेवाले के समान यह (यज्ञः) = संगतिकरण योग्य है । सोम का हम शरीर में संगतिकरण करेंगे, तो यह हमारे सब शत्रुओं का पराभव करनेवाला होगा, हमें नीरोग-निर्मल व तीव्र बुद्धिवाला बनायेगा ।
भावार्थ
भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम हमें बलवान् बनाता है, हमारे जीवन को आनन्दित करता है, सुमति को देता है और हमारे रोग वासना रूप शत्रुओं का पराभव करता है।
इंग्लिश (1)
Meaning
O mighty power of purity and action like the force of winds, flow and purify, blow away the dead leaves, dry up the roots of negativity so that the nation of humanity may be clean and brilliant, free from malice, hate and fear of misfortune. Be instant cleanser and sanctifier of our will and understanding like holy waters of grace and give us a noble mind. Be like yajna, giver of a thousand noble powers and a victor in conflicts within and outside.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्म्याचे बल सर्व बलांमध्ये मुख्य आहे. त्यासाठी (य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते ऋ. १०.२१.२) इत्यादी मंत्रात ज्याला सर्वात मोठे बलस्वरूप मानलेले आहे. त्याने आम्हाला बल प्रदान करावे. ॥७॥
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