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यजुर्वेद अध्याय - 26

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  • यजुर्वेद - अध्याय 26/ मन्त्र 18
    ऋषिः - महीयव ऋषिः देवता - विद्वान् देवता छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः
    2

    ए॒ना विश्वा॑न्य॒र्यऽआ द्यु॒म्नानि॒ मानु॑षाणाम्। सिषा॑सन्तो वनामहे॥१८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒ना। विश्वा॑नि। अ॒र्यः। आ। द्यु॒म्नानि॑। मानु॑षाणाम्। सिषा॑सन्तः। सिसा॑सन्त॒ऽइति॒ सिसा॑ऽसन्तः। व॒ना॒म॒हे॒ ॥१८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एना विश्वान्यर्यऽआ द्युम्नानि मानुषाणाम् । सिषासन्तो वनामहे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एना। विश्वानि। अर्यः। आ। द्युम्नानि। मानुषाणाम्। सिषासन्तः। सिसासन्तऽइति सिसाऽसन्तः। वनामहे॥१८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 26; मन्त्र » 18
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    ईश्वरः कथमुपास्य इत्याह॥

    अन्वयः

    योऽर्यो मानुषाणमेना विश्वानि द्युम्नानि शास्ति तं सिषासन्तो वयं सुखान्यावनामहे॥१८॥

    पदार्थः

    (एना) एनानि (विश्वानि) सर्वाणि (अर्यः) ईश्वरः (आ) (द्युम्नानि) प्रदीप्तानि यशांसि (मानुषाणाम्) मनुष्याणाम् (सिषासन्तः) सेवितुमिच्छन्तः (वनामहे) याचामहे॥१८॥

    भावार्थः

    येनेश्वरेण मनुष्याणां सुखाय धनानि वेदा भोज्यादीनि वस्तूनि चोत्पादितानि तस्यैवोपासना सर्वैर्मनुष्यैः सदा कर्त्तव्या॥१८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    ईश्वर की उपासना कैसी करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    जो (अर्यः) ईश्वर (मानुषाणाम्) मनुष्यों की (एना) इन (विश्वानि) सब (द्युम्नानि) शोभायमान कीर्त्तियों की शिक्षा करता है, उस की (सिषासन्तः) सेवा करने की इच्छा करते हुए हम लोग (आ, वनामहे) सुखों को मांगते हैं॥१८॥

    भावार्थ

    जिस ईश्वर ने मनुष्यों के सुख के लिये धनों, वेदों और खाने-पीने योग्य वस्तुओं को उत्पन्न किया है, उसी की उपासना सब मनुष्यों को सदा करनी चाहिये॥१८॥

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    विषय

    उत्तम विद्वानों, नायकों और शासकों से भिन्न-भिन्न कार्यों की कामना ।

    भावार्थ

    (एना) ये ( विश्वा ) सब प्रकार के ( मानुषाणां द्युम्नानि ) मनुष्यों के उपयोगी धनों का (अर्य:) स्वामी ही (आ) प्राप्त करता है। हम (सिषासन्तः) उनका सेवन करना चाहते हुए (वनामहे ) उन्हीं पदार्थों की याचना करते और सेवन करते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विद्वान् । विराड गायत्री । षड्जः ॥

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    विषय

    यज्ञशेष का सेवन

    पदार्थ

    १. 'अमहीयु' प्रार्थना करता है- (अर्य:) = सब धनों का स्वामी प्रभु (एना) = इन (विश्वानि) = सब (मानुषाणाम्) = मनुष्यों के, अर्थात् विचारशील पुरुषों के लिए हितकर (द्युम्नानि) = धनों को हमारे लिए (आ) = [आनयतु] प्राप्त कराए। प्रभुकृपा से हम उन सब धनों को प्राप्त करनेवाले बनें, जो मनुष्य के लिए हितकर हैं। २. इन धनों को प्राप्त करके 'अमहीयु' चाहता है कि हम इन धनों को (सिषासन्तः) = उचित पात्रों में दान करते हुए ही (वनामहे) = [ संभुज्महे] इनका उपयोग करें। भौतिक शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन का विनियोग आवश्यक ही है, परन्तु हम अपने जीवनों में इस भोग को प्रथम स्थान न दे दें, ('त्यक्तेन भुञ्जीथा:') = प्रभु के इस आदेश का ध्यान करते हुए पहले त्याग व पीछे भोग को समझें । केवलादी न बनें, यह हमें न भूले कि ('केवलाघो भवति केवलादी') = अकेला खानेवाला शुद्ध पाप को ही खाता है। ('अपञ्चयज्ञो मलिम्लुचः') = पञ्चयज्ञ न करके स्वयं सब खा जानेवाला चोर है। ऐसा हम समझें और सदा बाँटकर ही खाएँ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभुकृपा से हमें मानवहितकारी धन प्राप्त हों और उन्हें पात्रों में बाँटकर हम सदा यज्ञशेष का सेवन करनेवाल बनें। हम इस बात को न भूलें कि धनों के स्वामी हम नहीं, वे प्रभु ही हैं। उसके धनों का विनियोग उसके आदेश के अनुसार ही करें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ज्या ईश्वराने माणसांच्या सुखासाठी धन, वेद व खाण्यापिण्याने पदार्थ निर्माण केलेले आहेत. सदैव त्याचीच सर्व माणसांनी सदैव उपासना करावी.

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    विषय

    ईश्‍वराची उपासना कशी करावी, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - जो (अर्यः) ईश्‍वर (मानुषाणाम्) मनुष्यांच्या (एना) या (विश्‍वानि) सर्व (द्युम्नामि) सुंदर कीर्तीची रक्षा करतो (त्याला सदाचार मार्गावर प्रवृत्त करून दुष्कीर्तीपासून वाचवितो) त्या परमेश्‍वराची (सिषासन्तः) सेवा उपासना करण्याची कामना करीत आम्ही (उपासक) (आ, वनामहे) त्यांच्यापासून सुख-आनंदाची कामना करतो. ॥18॥

    भावार्थ

    भावार्थ - ज्या ईश्‍वराने मनुष्याच्या सुखासाठी धन, वेद आणि अन्य भोजन-पान आदीविषयी उपयोगी पदार्थ उत्पन्न केले आहेत, सर्व मानवांनी त्याच ईश्‍वराची उपासना केली पाहिजे ॥18॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    God gives instruction for all these graceful glories of men. Willing to serve God, we pray for pleasures.

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    Meaning

    The lord and master of the world rules and watches all these powers, wealths and honours of men and women. Wishing to serve the master and humanity, we pray for His grace and favour for all these.

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    Translation

    With the aid of this (divine elixir) alone, may we procure all the wealth that belongs to men and enjoy it not alone, but distributing it judiciously among ourselves. (1)

    Notes

    Arya, O Lord. Dyumnāni, धनानि, riches. Sisāsantah, √षणु दाने; दातुमिच्छन्तः, willing to distribute judiciously among ourselves.

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    बंगाली (1)

    विषय

    ঈশ্বরঃ কথমুপাস্য ইত্যাহ ॥
    ঈশ্বরের উপাসনা কেমন ভাবে করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–যে (অর্য়ঃ) ঈশ্বর (মানুষাণাম্) মনুষ্যদিগের (এনা) এই (বিশ্বানি) সব (দ্যুম্নানি) শোভায়মান কীর্ত্তির শিক্ষা প্রদান করে তাহার (সিষাসন্তঃ) সেবা করিবার ইচ্ছা করিয়া আমরা (আ, বনামহে) সুখসমূহকে কামনা করি ॥ ১৮ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যে ঈশ্বর মনুষ্যদিগের সুখের জন্য ধন, বেদ ও ভোজ্যাদি বস্তুকে উৎপন্ন করিয়াছে তাহারই উপাসনা সকল মনুষ্যদিগকে সর্বদা করা উচিত ॥ ১৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    এ॒না বিশ্বা॑ন্য॒র্য়ऽআ দ্যু॒ম্নানি॒ মানু॑ষাণাম্ ।
    সিষা॑সন্তো বনামহে ॥ ১৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    এনেত্যস্য মহীয়ব ঋষিঃ । বিদ্বান্ দেবতা । বিরাড্গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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