Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 4 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 20
    ऋषिः - गरुत्मान् देवता - तक्षकः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सर्पविषदूरीकरण सूक्त
    0

    अही॑नां॒ सर्वे॑षां वि॒षं परा॑ वहन्तु सिन्धवः। ह॒तास्तिर॑श्चिराजयो॒ निपि॑ष्टासः॒ पृदा॑कवः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अही॑नाम् । सर्वे॑षाम् । वि॒षम् । परा॑ । व॒ह॒न्तु॒ । सिन्ध॑व: । ह॒ता: । तिर॑श्चिऽराजय: । निऽपि॑ष्टास: । पृदा॑कव: ॥४.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अहीनां सर्वेषां विषं परा वहन्तु सिन्धवः। हतास्तिरश्चिराजयो निपिष्टासः पृदाकवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अहीनाम् । सर्वेषाम् । विषम् । परा । वहन्तु । सिन्धव: । हता: । तिरश्चिऽराजय: । निऽपिष्टास: । पृदाकव: ॥४.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 4; मन्त्र » 20
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (सिन्धवः) नदियाँ (सर्वेषाम्) सब (अहीनाम्) महाहिंसक [साँपों] के (विषम्) विष को (परा वहन्तु) दूर बहा ले जावें (तिरश्चिराजयः) तिरछी धारीवाले, (पृदाकवः) फुँसकारनेवाले साँप (हताः) मार डाले गये और (निपिष्टासः) कुचिल डाले गये [हों] ॥२०॥

    भावार्थ

    मनुष्य सर्पसमान दुःखदायी दुर्गुणों को ऐसा नष्ट करे, जैसे मल आदि को पानी में बहा देते हैं ॥२०॥

    टिप्पणी

    २०−(अहीनाम्) म० १। सर्पाणाम् (सर्वेषाम्) (विषम्) (परा) दूरे (वहन्तु) नयन्तु (सिन्धवः) नद्यः। अन्यत् पूर्ववत्−म० १३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    माहिर्भ:, मा पृदाकुः, [यजु:०८.२३]

    पदार्थ

    १. (सिन्धव:) = ज्ञान-जल (सर्वेषां अहीनाम्) = सब विहिंसिका वृत्तियों के (विषम्) = विष को विषैले प्रभाव को (परावहन्तु) = दूर बहा दें। हम ज्ञान प्राप्त करके हिंसा की वृत्ति से ऊपर उठे। इन ज्ञान-जलों द्वारा ही (तिरश्चिराजय:) = [तिरशी crooked] छल-छिद्र की वृत्तियों की पंक्तियाँ (हता:) = नष्ट कर दी गई हैं और (पृदाकव:) = [पर्द कुत्सिते शब्दे; कुत्सितवाक्-यजुः०८.२३] कुत्सितवाणी बोलने की प्रवृत्तियाँ निपिष्टास:-पीस डाली गई हैं। यजुर्वेद ८.२३ में यही तो कहा है कि ('माहिर्भूर्मा प्रदाकु:') = न हिंसक बन, न कुत्सितवाणीवाला।

    भावार्थ

    ज्ञान-जलों द्वारा शुद्ध जीवनवाले बनकर हम 'हिंसा, कुटिलता व कुत्सितवाणी' से ऊपर उठे।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (सर्वेषाम, अहीनाम, विषम्) सब सांपों के विष को (सिन्धवः) स्यन्दनशील अर्थात् बहती हुई नदियां (परा वहन्तु) परे बहा ले जायें। (तिरश्चिराजयः) टेढ़ी धारियों वाले सर्प (हताः) मार दिये हैं, (पृदाकवः) महाकाय सर्प (निपिष्टासः) पीस दिये हैं।

    टिप्पणी

    [सिन्धु की प्रवाहित धारा में जल चिकित्सा (१९) की भावना को, "परा वहन्तु" द्वारा स्पष्ट किया है।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Snake poison cure

    Meaning

    Let the rivers wash and carry away the poison of all snakes. Thus the Tirashchirajis, snakes with stripes across, are killed, Prdakus, snakes with deadly poison, are crushed.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May the streams wash the poison, of all the snakes far away. The cross-lined (snakes) have been killed; the vipers have been crushed thoroughly.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let the rivers with their floods cary away the poison of all these snakes. Let these Tiraschirajis be destroyed and the Pridakus be crushed to pieces.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let the floods hurry on and bear the poison of all snakes afar. Tiraschirajis have been slain and vipers crushed and brayed to pieces.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २०−(अहीनाम्) म० १। सर्पाणाम् (सर्वेषाम्) (विषम्) (परा) दूरे (वहन्तु) नयन्तु (सिन्धवः) नद्यः। अन्यत् पूर्ववत्−म० १३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top