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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गोपथः देवता - रात्रिः छन्दः - पञ्चपदानुष्टुब्गर्भा परातिजगती सूक्तम् - रात्रि सूक्त
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    न यस्याः॑ पा॒रं ददृ॑शे॒ न योयु॑व॒द्विश्व॑म॒स्यां नि वि॑शते॒ यदेज॑ति। अरि॑ष्टासस्त उर्वि तमस्वति॒ रात्रि॑ पा॒रम॑शीमहि॒ भद्रे॑ पा॒रम॑शीमहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न। यस्याः॑। पा॒रम्। ददृ॑शे। न। योयु॑वत्। विश्व॑म्। अ॒स्याम्। नि। वि॒श॒ते॒। यत्। एज॑ति। अरि॑ष्टासः। ते॒। उ॒र्वि॒। त॒म॒स्व॒ति॒। रात्रि॑। पा॒रम्। अ॒शी॒म॒हि॒। भद्रे॑। पा॒रम्। अ॒शी॒म॒हि॒ ॥४७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न यस्याः पारं ददृशे न योयुवद्विश्वमस्यां नि विशते यदेजति। अरिष्टासस्त उर्वि तमस्वति रात्रि पारमशीमहि भद्रे पारमशीमहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न। यस्याः। पारम्। ददृशे। न। योयुवत्। विश्वम्। अस्याम्। नि। विशते। यत्। एजति। अरिष्टासः। ते। उर्वि। तमस्वति। रात्रि। पारम्। अशीमहि। भद्रे। पारम्। अशीमहि ॥४७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 47; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रात्रि में रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (न) न तो (यस्याः) जिस [रात्रि] का (पारम्) पार और (न)(योयुवत्) [प्रकाश से] अलग होनेवाला [स्थान] (ददृशे) दिखाई पड़ता है, (यत्) जो कुछ (एजति) चेष्टा करता है, (सर्वम्) वह सब (अस्याम्) उस [रात्रि] में (नि विशते) ठहर जाता है। (उर्वि) हे फैली हुई, (तमस्वति) अंधेरी (रात्रि) रात्रि ! (अरिष्टासः) बिना कष्ट पाये हुए हम (ते) तेरे (पारम्) पार को (अशीमहि) पावें, (भद्रे) हे कल्याणी ! [तेरे] (पारम्) पार को (अशीमहि) पावें ॥२॥

    भावार्थ

    पृथिवी के अपनी धुरी पर घूमने और सूर्य की परिक्रमा करने में प्रकाश की निवृत्ति और अन्धकार की प्रवृत्ति ऐसी शीघ्र होती है कि मनुष्य को उस समय का अनुभव करना अति कठिन है। मनुष्य विश्राम करके यथायोग्य अपने कामों में प्रवृत्त होवें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(न) निषेधे (यस्याः) रात्रेः (पारम्) अन्तः (ददृशे) दृष्टम् (न) निषेधे (योयुवत्) यौतेर्यङ्लुगन्तात्-शतृ। प्रकाशाद् विभज्यमानं स्थानम् (विश्वम्) सर्वम् (अस्याम्) रात्रौ (निविशते) तिष्ठति (यत्) यत्किञ्चित् (एजति) चेष्टते (अरिष्टासः) अरिष्टाः। अहिंसिताः (ते) तव (उर्वि) हे विस्तृते (तमस्वति) हे अन्धकारयुक्ते (पारम्) अन्तम् (अशीमहि) वयं प्राप्नुयाम (भद्रे) हे कल्याणि (पारम् अशीमहि) आदरार्थं पुनरुक्तिः ॥

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    भाषार्थ

    (यस्याः) जिस रात्री का (पारम्) पार (ददृशे न) दिखाई नहीं देता, और जो (न योयुवत्) न समाप्त होती है, (अस्याम्) इस रात्री में (विश्वम्) वह सब (नि विशते) विश्राम पा जाता है (यद्) जो कि (एजति) चेष्टा वाला है। (उर्वि) हे आच्छादन करनेवाली! (तमस्वति रात्रि) हे तमोमयी रात्रि! (अरिष्टासः) अहिंसित हुए हम (ते) तेरे (पारम्) पार को (अशीमहि) प्राप्त हों, (भद्रे) हे कल्याणि! (पारम्) तेरे पार को (अशीमहि) हम प्राप्त करें।

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    विषय

    कल्याणकारिणी रात्रि

    पदार्थ

    १. (यस्या:) = जिस रात्रि का (पारम्) = पर-तीर, अर्थात् अन्त (न ददशे) = नहीं दिखता, (अस्याम्) = इस रात्रि में (विश्वम्) = यह चराचरात्मक जगत् (योयुवत् न) = विभजमान [विभक्त] न था-सारा विश्व एकाकार-सा हो गया था। (यत् एजति) = जो कुछ गति करता है, वह इसमें (निविशते) = इधर-उधर जाने में असमर्थ हुआ-हुआ उस-उस स्थान पर निद्राण हो जाता है। २. हे (उर्वि) = अतिविशाल (तमस्वति) = बहुल अन्धकारबाली (रात्रि) = रात्रिदेवि! हम (अरिष्टास:) = अहिंसित होते हुए (ते) = तेरे (पारन) = पार को (अशीमहि) = प्राप्त करें। (भद्रे) = हे कल्याण करनेवाली रात्रि! हम (पारम् अशीमहि) = तरे पार को प्राप्त करें।

    भावार्थ

    यह अनन्त फैलाववाली, जिसमें सम्पूर्ण जगत् एकाकार स्थिर-सा हो जाता है, यह अन्धकारमयी रात्रि हमारे लिए कल्याणकर हो। हम अहिंसित होते हुए रात्रि के पार को प्राप्त करें।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ratri

    Meaning

    The night is a vast veil of darkness, no end of which is visible, nor anything distinct and separate that recedes from the dark. The whole world that moves in the day enters and lies concealed in it. O Night, vast and deep and dark, surely we would reach beyond the dark, O noble restful harbinger of peace and well being, we would reach, unhurt, unscathed, beyond the dark and attain to the morning light.

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    Translation

    In her, whose other end is not seen and who does not allow all things to be scen separately, all that moves, enters (to rest). O vast, darksome night, may we reach your other end unharmed; O benign one, may we reach the other end.

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    Translation

    It is he night whose end or boundary is not seen. All the world which moves rest in it and whole of the world does separate itself from this night. We free from anguish and troubles reach the end of this darksome spacious and rest- giving night and let us reach its end.

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    Translation

    All things that are in motion are engulfed by the night, whose yonder boundary is never seen, nor does it ever get separated from the world. O great, dark night, may we find thy end uninjured, quite safe and sound. O gracious one, let us pass on to your end safely.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(न) निषेधे (यस्याः) रात्रेः (पारम्) अन्तः (ददृशे) दृष्टम् (न) निषेधे (योयुवत्) यौतेर्यङ्लुगन्तात्-शतृ। प्रकाशाद् विभज्यमानं स्थानम् (विश्वम्) सर्वम् (अस्याम्) रात्रौ (निविशते) तिष्ठति (यत्) यत्किञ्चित् (एजति) चेष्टते (अरिष्टासः) अरिष्टाः। अहिंसिताः (ते) तव (उर्वि) हे विस्तृते (तमस्वति) हे अन्धकारयुक्ते (पारम्) अन्तम् (अशीमहि) वयं प्राप्नुयाम (भद्रे) हे कल्याणि (पारम् अशीमहि) आदरार्थं पुनरुक्तिः ॥

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