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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गोपथः देवता - रात्रिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रात्रि सूक्त
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    ष॒ष्टिश्च॒ षट्च॑ रेवति पञ्चा॒शत्पञ्च॑ सुम्नयि। च॒त्वार॑श्चत्वारिं॒शच्च॒ त्रय॑स्त्रिं॒शच्च॑ वाजिनि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    षष्टिः॑। च॒। षट्। च॒। रे॒व॒ति॒। प॒ञ्चा॒शत्। पञ्च॑। सु॒म्न॒यि॒। च॒त्वारः॑। च॒त्वारिं॒शत्। च॒। त्रयः॑। त्रिं॒शत्। च॒। वा॒जि॒नि॒ ॥४७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    षष्टिश्च षट्च रेवति पञ्चाशत्पञ्च सुम्नयि। चत्वारश्चत्वारिंशच्च त्रयस्त्रिंशच्च वाजिनि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    षष्टिः। च। षट्। च। रेवति। पञ्चाशत्। पञ्च। सुम्नयि। चत्वारः। चत्वारिंशत्। च। त्रयः। त्रिंशत्। च। वाजिनि ॥४७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 47; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रात्रि में रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (रेवति) हे धनवती ! (षष्टिः च षट्) साठ और छह [छियासठ] (च) और (सुम्नयि) हे सुखप्रदे ! (पञ्चाशत् पञ्च) पचास और पाँच [पचपन], (च) और (वाजिनि) हे बलवती ! [वा वेगवती] (चत्वारिंशत् चत्वारः) चालीस और चार [चवालीस], (च) और (त्रिंशत् त्रयः) तीस और तीन [तेंतीस] ॥४॥

    भावार्थ

    मन्त्र ३-५ में ९९ में से ११, ११ घटते-घटते ११ तक रहे हैं और [नीचे] शब्द से शेष संख्या एक तक मानी है। भाव यह है कि मनुष्य अपनी योग्यता के अनुसार बहुत वा थोड़े रक्षकों द्वारा रात्रि में रक्षा करते रहें •॥३-५॥

    टिप्पणी

    ४−(षष्टिः षट्) षडुत्तरषष्टिसंख्याकाः (च) (च) (रेवति) हे धनवति (पञ्चाशत् पञ्च) पञ्चोत्तरपञ्चाशत्संख्याकाः (सुम्नयि) छन्दसि परेच्छायां क्यच्। वा० पा० ३।१।८। सुम्न-क्यच्, अच्, गौरादित्वाद् ङीप्। सुम्नं सुखं परेषामिच्छतीति या सा सुम्नयी तत्सम्बुद्धौ। हे सुखप्रदे (चत्वारिंशत् चत्वारः) चतुरुत्तरचत्वारिंशत्संख्याकाः (च) (त्रयस्त्रिंशत्) त्रिरुत्तरत्रिंशत्संख्याकाः (च) (वाजिनि) हे बलवति हे वेगवति ॥

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    भाषार्थ

    (रेवति) हे सम्पत्-शालिनि रात्रि! (षष्टिः च षट् च) और जो ६६ द्रष्टा हैं; (सुम्नयि) हे दूसरों की सुख चाहनेवाली! (पञ्चाशत् पञ्च च) तथा जो ५५ द्रष्टा हैं; (चत्वारः चत्वारिंशत् च) और जो ४४ द्रष्टाः हैं; (वाजिनि) हे बलवाली! (त्रयः त्रिंशत् च) और जो ३३ द्रष्टा हैं।।

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    विषय

    छियासठ, पचपन, चवालीस व तेतीस

    पदार्थ

    १. हे रेवति लोगों के उत्तम सुरक्षित धनोंवाली रात्रि! जो तेरे (षष्टिः च षट् च) = साठ और छह, अर्थात् छियासठ रक्षक हैं। हे (सुम्नयि) = सुखवाली, निश्चन्तता के कारण सुख को प्राप्त करानेवाली रात्रि! जो तेरे (पञ्चाशत् पञ्च) = पचास और पांच [पचपन] रक्षक हैं, अथवा हे (वाजिनि) = अन्नों की सुरक्षावाली रात्रि! जो तेरे (चत्वारः च चत्वारिंशत् च) = चार और चालीस, अर्थात् चवालीस रक्षक है (च) = अथवा (त्रयस्त्रिंशत्) = तेतीस रक्षक हैं, उन सबके द्वारा तू हमारा रक्षण कर। तू हमें सुरक्षित धनोंवाला, सुखवाला व उत्तम अन्नोंवाला बना।

    भावार्थ

    राजा रात्रि में आवश्यकतानुसार छियासठ, पचपन, चवालीस व तेतीस रक्षकों को नियुक्त करता हुआ प्रजा को सुरक्षित धनों व अन्नोंवाला बनाकर सुखी करे।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ratri

    Meaning

    O Night of abundant riches of rest and refreshment, harbinger of peace and well being, overflowing with restorative speed and energy for new victories, all these watchful vigils of yours which are sixty-six, fiftyfive, forty four, or thirty-three, all yours,...

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    Translation

    ‘And sixty-six, O opulent one, and fifty-five. O delightful. and forty-four and thirty-three O speeding one;

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    Translation

    These watching and examining forces in the night which gives wealth, which gives corn and which gives happiness are sixty six, fifty five, forty four and thirty three.

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    Translation

    O night, beautiful to look at, moving fast, whether it be sixty-six, or fifty-five, or forty-four, or thirty-three.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(षष्टिः षट्) षडुत्तरषष्टिसंख्याकाः (च) (च) (रेवति) हे धनवति (पञ्चाशत् पञ्च) पञ्चोत्तरपञ्चाशत्संख्याकाः (सुम्नयि) छन्दसि परेच्छायां क्यच्। वा० पा० ३।१।८। सुम्न-क्यच्, अच्, गौरादित्वाद् ङीप्। सुम्नं सुखं परेषामिच्छतीति या सा सुम्नयी तत्सम्बुद्धौ। हे सुखप्रदे (चत्वारिंशत् चत्वारः) चतुरुत्तरचत्वारिंशत्संख्याकाः (च) (त्रयस्त्रिंशत्) त्रिरुत्तरत्रिंशत्संख्याकाः (च) (वाजिनि) हे बलवति हे वेगवति ॥

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