अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 7
ऋषिः - गोपथः
देवता - रात्रिः
छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा जगती
सूक्तम् - रात्रि सूक्त
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माश्वा॑नां भद्रे॒ तस्क॑रो॒ मा नृ॒णां या॑तुधा॒न्यः। प॑र॒मेभिः॑ प॒थिभिः॑ स्ते॒नो धा॑वतु॒ तस्क॑रः। परे॑ण द॒त्वती॒ रज्जुः॒ परे॑णाघा॒युर॑र्षतु ॥
स्वर सहित पद पाठमा। अश्वा॑नाम्। भ॒द्रे॒। तस्क॑रः। मा। नृ॒णाम्। या॒तु॒ऽधा॒न्यः᳡। प॒र॒मेभिः॑। प॒थिऽभिः॑। स्ते॒नः। धा॒व॒तु॒। तस्क॑रः। परे॑ण। द॒त्वती॑। रज्जुः॑। परे॑ण। अ॒घ॒ऽयुः। अ॒र्ष॒तु॒ ॥४७.७॥
स्वर रहित मन्त्र
माश्वानां भद्रे तस्करो मा नृणां यातुधान्यः। परमेभिः पथिभिः स्तेनो धावतु तस्करः। परेण दत्वती रज्जुः परेणाघायुरर्षतु ॥
स्वर रहित पद पाठमा। अश्वानाम्। भद्रे। तस्करः। मा। नृणाम्। यातुऽधान्यः। परमेभिः। पथिऽभिः। स्तेनः। धावतु। तस्करः। परेण। दत्वती। रज्जुः। परेण। अघऽयुः। अर्षतु ॥४७.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
रात्रि में रक्षा का उपदेश।
पदार्थ
(भद्रे) हे कल्याणी ! (मा) न (तस्करः) लुटेरा (अश्वानाम्) घोड़ों का, और (मा) न (यातुधान्यः) पीड़ा देनेवाली [सेनाएँ] (नृणाम्) मनुष्यों की [राजा होवें]। (स्तेनः) चोर, (तस्करः) लुटेरा (परमेभिः पथिभिः) अति दूर मार्गों से (धावतु) दौड जावे। (परेण) दूर [मार्ग] से (दत्वती रज्जुः) दंतीली रसरी [साँप], और (परेण) दूर [मार्ग] से (अघायुः) द्रोही जन (अर्षतु) चला जावे ॥७॥
भावार्थ
मनुष्य ऐसा प्रबन्ध करें कि चोर-डकैत आदि दुष्ट लोग और भेड़िया-सर्प आदि हिंसक जीव प्राणियों और सम्पत्ति को हानि न पहुँचावें ॥६, ७॥
टिप्पणी
७−(मा) निषेधे, ईशत इत्यनुवर्तते (अश्वानाम्) तुरङ्गाणाम् (भद्रे) हे कल्याणि (तस्करः) परधनहारकः (मा) निषेधे (नृणाम्) मनुष्याणाम् (यातुधान्यः) पीडाप्रदाः सेनाः (परमेभिः) अतिदूरैः (पथिभिः) मार्गैः (स्तेनः) (धावतु) शीघ्रं गच्छतु (तस्करः) (परेण) अतिदूरेण मार्गेण (दत्वती) दन्तवती (रज्जुः) रज्जुवत्सर्पादिः (परेण) अतिदूरेण मार्गेण (अघायुः) अघ-क्यच्-उ प्रत्ययः। पापेच्छुकः (अर्षतु) ऋषी गतौ भौवादिकाः। गच्छतु ॥
भाषार्थ
(भद्रे) हे सुखादायिनि! (तस्करः) लुटेरा (अश्वानाम्) अश्वों का (मा) ईश्वर न हो, अर्थात् हमारे अश्वों पर प्रभुत्व न करे, तथा (यातुधान्यः) यातनादाई दुर्घटनाएँ (नृणाम्) हम मनुष्यों पर (मा) प्रभुत्व न करें। (स्तेनः) चोर तथा (तस्करः) लुटेरा [हम से डर कर] (परमेभिः) दूर-दूर के (पथिभिः) मार्गों से (धावतु) भाग जाए। (दत्वती) दान्तोंवाली (रज्जुः) रस्सी अर्थात् सांप (परेण अर्षतु) दूर मार्ग द्वारा चला जाय, (अघायुः) तथा हत्या चाहनेवाला (परेण अर्षतु) दूर के मार्ग द्वारा चला जाय।
टिप्पणी
[तस्करः= तत्करः। उस पापकर्म को करनेवाला (निरु० ३।३।१५)। अथवा उपक्षयकारी, तसु (उपक्षये)+करः। दत्वती रज्जुः (रूपकालंकार)।]
विषय
उत्तम रक्षण-व्यवस्था
पदार्थ
१. हे (भद्रे) = सुरक्षा की व्यवस्था से सुख देनेवाली रात्रि। (तस्करः) = प्रसिद्ध अनर्थों को करनेवाला चोर (अश्वानाम्) = हमारे घोड़ों का (मा) = [ईशत] मत स्वामी बने । (यातुधान्य:) = पीड़ा का आधान करनेवाले लोग (नृणां मा) = हमारे मनुष्यों पर प्रबल न हो जाएँ। वे उन्हें पीड़ित न कर सकें। २. (तस्करः) = अनर्थ करनेवाला (स्तेन:) = धन चुरानेवाला चोर (परमेभिः पथिभिः) = अति दूर मार्गों से (धावतु) = भाग जाए। रक्षकों की व्यवस्था के कारण चोरों का भय ही न रहे। (दत्वती रज्जुः) = यह दाँतवाली रस्सी-रस्सी की भाँति लम्बे सर्प आदि डसनेवाले प्राणी परेण-अति दूर मार्ग से गतिवाले हौं। (अघायु:) = दूसरे की हिंसा की कामनावाला दुष्ट पुरुष (परेण अर्षतु) = सुदूर मार्ग से जानेवाला हो।
भावार्थ
उत्तम रक्षण-व्यवस्था से हमारे पशुओं व बसुओं को हिंसा का भय न हो। चोर, सर्प व अघायु पुरुष समीप भी न फटकने पाएँ।
इंग्लिश (4)
Subject
Ratri
Meaning
O noble night of peace and restfulness, let there be no thief to steal our horses, no devilish damagers of our people. Let the thief and robber go farthest far by farthest paths in the distance away.
Translation
O benign one, not a robber of horses, nor the torturers of men (overpower us). By remotest pathways may the thief and the robber flee; by the distant road the fánged rope and by the distant one may the wicked husten.
Translation
Let not the thief of our-horses and let not the torturer of our men be powerful over us in this comfort-giving night. Let thief and robber run away on the path far away from us, let flee away on its way from us the rope which has fangs (snake) and let wicked run away by the way far away from us.
Translation
O blessed one, let not the robber seize our horses nor the troublesome females harass our men. Let the thief as well as the robber run away by the paths far distant from us. Let the snake and the mischief-monger take to the far-off route.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(मा) निषेधे, ईशत इत्यनुवर्तते (अश्वानाम्) तुरङ्गाणाम् (भद्रे) हे कल्याणि (तस्करः) परधनहारकः (मा) निषेधे (नृणाम्) मनुष्याणाम् (यातुधान्यः) पीडाप्रदाः सेनाः (परमेभिः) अतिदूरैः (पथिभिः) मार्गैः (स्तेनः) (धावतु) शीघ्रं गच्छतु (तस्करः) (परेण) अतिदूरेण मार्गेण (दत्वती) दन्तवती (रज्जुः) रज्जुवत्सर्पादिः (परेण) अतिदूरेण मार्गेण (अघायुः) अघ-क्यच्-उ प्रत्ययः। पापेच्छुकः (अर्षतु) ऋषी गतौ भौवादिकाः। गच्छतु ॥
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