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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 6
    ऋषिः - गोपथः देवता - रात्रिः छन्दः - पुरस्ताद्बृहती सूक्तम् - रात्रि सूक्त
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    रक्षा॒ माकि॑र्नो अ॒घशं॑स ईशत॒ मा नो॑ दुः॒शंस॑ ईशत। मा नो॑ अ॒द्य गवां॑ स्ते॒नो मावी॑नां॒ वृक॑ ईशत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रक्ष॑। माकिः॑। नः॒। अ॒घऽशं॑सः। ई॒श॒त॒। मा। नः॒। दुः॒शंसः॑। ई॒श॒त॒। मा। नः॒। अ॒द्य। गवा॑म्। स्ते॒नः। मा। अवी॑नाम्। वृकः॑। ई॒श॒त॒ ॥४७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रक्षा माकिर्नो अघशंस ईशत मा नो दुःशंस ईशत। मा नो अद्य गवां स्तेनो मावीनां वृक ईशत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रक्ष। माकिः। नः। अघऽशंसः। ईशत। मा। नः। दुःशंसः। ईशत। मा। नः। अद्य। गवाम्। स्तेनः। मा। अवीनाम्। वृकः। ईशत ॥४७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 47; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रात्रि में रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (रक्ष) तू रक्षा कर, (अघशंसः) बुराई चीतनेवाला, (माकिः) न कभी (नः) हमारा (ईशत) राजा होवे, और (मा)(दुःशंसः) अनहित सोचनेवाला (नः) हमारा (ईशत) राजा होवे। (मा)(स्तेनः) चोर (अद्य) आज (नः) हमारी (गवाम्) गौओं का, और (मा)(वृकः) भेड़िया (अवीनाम्) भेड़ों का (ईशत) राजा होवे ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्य ऐसा प्रबन्ध करें कि चोर-डकैत आदि दुष्ट लोग और भेड़िया-सर्प आदि हिंसक जीव प्राणियों और सम्पत्ति को हानि न पहुँचावें ॥६, ७॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ६ का प्रथम पाद ऋग्वेद में है-६।७१।३ तथा ६।७५।१० और यजुर्वेद ३३।६९ ॥ ६−(रक्ष) पालय (माकिः) न कदापि (नः) अस्माकम् (अघशंसः) पापवक्ता (ईशत) ईश्वरो भवेत् (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (दुःशंसः) दुष्टहिंसकः (ईशत) (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (अद्य) अस्मिन् दिने (गवाम्) धेनूनाम् (स्तेनः) चोरः (मा) निषेधे (अवीनाम्) अजानाम् (वृकः) अरण्यश्वा (ईशत) समर्थो भवेत् ॥

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    भाषार्थ

    हे रात्रि! (रक्षा=रक्ष) रक्षा कर। (अघशंसः) पापप्रशंसक अर्थात् पापी (नः) हमारा (ईशत माकिः) अधीश्वर न हो (दुःशंसः) दुर्भावनाओं वाला (नः) हमारा (ईशत मा) अधीश्वर न हो। (अद्य) आज [सोते समय] (स्तेनः) चोर (नः गवाम्) हमारी गौओं का (ईशत मा) अधीश्वर न हो, तथा (वृकः) भेड़िया या लुटेरा (अवीनाम्) भेड़ों का (ईशत मा) अधीश्वर न हो।

    टिप्पणी

    [वृकः=भेड़िया। लुटेरा Robber (आप्टे)।]

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    विषय

    'अघशंस व दुःशंस' से बचाव

    पदार्थ

    १. हे रात्रि! (रक्ष) = तू हमारा रक्षण कर । (न:) = हमें (कि:) = कोई भी (अघशंस:) = [अधेन पापेन क्रूरेण शस्त्रेण शंसति हिनस्ति] क्रूर शस्त्रों से हिंसा करनेवाला (मा ईशत) = मत शासित करनेवाला हो। (न:) = हमें (दुःशंस:) = दुवर्चन का कहनेवाला व बुरी तरह से हिंसित करनेवाला (मा ईशत) = अपने अधीन न करले। २. अद्य-आज कोई (गवां स्तेन:) = गौओं का अपहर्ता (न:) = हमें (मा ईशत) = अपने अधीन न करले। (वृक:) = आरण्य पशु भेड़िय आदि (मा अवीनाम् ईशत) = हमारी भेड़ों पर शासक न हो जाए।

    भावार्थ

    रात्रि में रक्षा की उत्तम व्यवस्था हो, जिससे कोई अपशंस व दु:शंस हमारा हिंसन न कर पाये। हमारी गौवों व भेड़ों का अपहरण न हो।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ratri

    Meaning

    O Night, pray protect us. Let no sinner rule over us. Let no notorious scandalous power rule over us. Let there be no thief who may rule to steal our cows, let no wolf master and devour our sheep.

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    Translation

    Protect us; may no cruel killer overpower us; may no abusing rogue overpower us. May not a thief of cows overpower us today; may not a wolf to the sheep overpower us.

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    Translation

    Let this night be the source of our protection, let not wicked men be our master, let not men of bad repute be our rulers, let not the thief of cows and wolf of sheep’s have their impact on us.

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    Translation

    O night, protect, so that no wicked person may rule us, nor may any evil-seeker hold sway over us. Let not any thief of cows, nor any killer of sheep like a wolf overpower us.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ६ का प्रथम पाद ऋग्वेद में है-६।७१।३ तथा ६।७५।१० और यजुर्वेद ३३।६९ ॥ ६−(रक्ष) पालय (माकिः) न कदापि (नः) अस्माकम् (अघशंसः) पापवक्ता (ईशत) ईश्वरो भवेत् (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (दुःशंसः) दुष्टहिंसकः (ईशत) (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (अद्य) अस्मिन् दिने (गवाम्) धेनूनाम् (स्तेनः) चोरः (मा) निषेधे (अवीनाम्) अजानाम् (वृकः) अरण्यश्वा (ईशत) समर्थो भवेत् ॥

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