अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 131/ मन्त्र 12
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - दैवी बृहती
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
0
पाक॑ ब॒लिः ॥
स्वर सहित पद पाठपाक॑ । ब॒लि: ॥१३१.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
पाक बलिः ॥
स्वर रहित पद पाठपाक । बलि: ॥१३१.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(पाक) हे रक्षक श्रेष्ठ पुरुष ! (बलिः) बलि [भोजन आदि की भेंट होवे] ॥१२॥
भावार्थ
मनुष्य उचित रीति से भोजन आदि का उपहार वा दान और कर आदि का ग्रहण करके दृढ़चित्त होकर शत्रुओं का नाश करे ॥१२-१६॥
टिप्पणी
१२−(पाक) इण्भीकापा०। उ० ३।४३। पा रक्षणे-कन्। पाकः प्रशस्यनाम-निघ० ३।८। पाकः पक्तव्यो भवति विपक्वप्रज्ञ आदित्यः-निरु० ३।१२। हे रक्षक। प्रशस्य (बलिः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। बल प्राणने धान्यावरोधने च-इन्। भोजनादिदानम्। उपहारः। राजग्राह्यः करः ॥
विषय
त्याग व प्रभु-प्राप्ति
पदार्थ
१. (पाक) = हे साधना द्वारा ज्ञानाग्नि में अपना परिपाक करनेवाले जीव ! तू तो (बलि:) = भूतयज्ञ में पड़नेवाली आहति ही हो गया है। २. (शक) = हे शक्तिशालिन् साधक! तु (बलि:) = भूतयज्ञ की आहुति बना है। 'तैजस' [शक] व 'प्राज्ञ' [पाक] बनकर तू 'वैश्वानर' बनता है। इसप्रकार इन तीनों पगों को रखकर तु चौथे पग में [सोऽयमात्मा चतुष्पात्] उस 'सत्य, शिव, सुन्दर' प्रभु को पानेवाला बना है। ३. उस सर्वव्यापक 'अश्व' नामक [अश् व्याप्ती] प्रभु में स्थित होनेवाले 'अश्वत्थ' [अश्वे तिष्ठति] तू (खदिरः) = [खद स्थैर्य]-स्थिर वृत्तिवाला है। तेरा मन डॉवाडोल नहीं रहा। (धव:) = [धू कम्पने] तूने सब वासनाओं को कम्पित करके अपने जीवन को बासनाओं से शून्य बनाया है।
भावार्थ
हम ज्ञानाग्नि में अपने को परिपक्व करके तथा शक्तिशाली बनकर भूतयज्ञ में प्राणिमात्र के हित के लिए अपने को आहुत कर दें तभी हम प्रभु में स्थित होंगे। प्रभु में स्थित होने पर स्थिर वृत्ति के बनेंगे तथा वासनाशून्य जीवनवाले होंगे।
भाषार्थ
और वे सद्गुरु परमेश्वर के प्रति कहते हैं कि (पाक) हे परिपाकरूप में मोक्ष-फल देनेवाले! (बलिः) हमने अपने आपको आपके प्रति बलिरूप में समर्पित कर दिया है।
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
This life on top of maturity is food for Divinity, offered as havi for the sacred fire.
Translation
The man of guard give food to others.
Translation
The man of guard give food to others.
Translation
The soul becomes powerful and strong with the ripening of knowledge and experience of the world.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१२−(पाक) इण्भीकापा०। उ० ३।४३। पा रक्षणे-कन्। पाकः प्रशस्यनाम-निघ० ३।८। पाकः पक्तव्यो भवति विपक्वप्रज्ञ आदित्यः-निरु० ३।१२। हे रक्षक। प्रशस्य (बलिः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। बल प्राणने धान्यावरोधने च-इन्। भोजनादिदानम्। उपहारः। राजग्राह्यः करः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
ঐশ্বর্যপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ
भाषार्थ
(পাক) হে রক্ষক শ্রেষ্ঠ পুরুষ! (বলিঃ) বলি [ভোজনাদির উপহার দান/বন্টন হোক] ॥১২॥
भावार्थ
মনুষ্য উচিত রীতিতে ভোজন আদির উপহার বা দান এবং কর আদি গ্রহণ করে দৃঢ়চিত্ত হয়ে শত্রুদের বিনাশ করুক ॥১২-১৬॥
भाषार्थ
এবং সে সদ্গুরু পরমেশ্বরের প্রতি বলে, (পাক) হে পরিপাকরূপে মোক্ষ-ফল প্রদানকারী! (বলিঃ) আমি নিজেকে আপনার প্রতি বলিরূপে/উপহাররূপে সমর্পিত করে দিয়েছি।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal