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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 131 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 131/ मन्त्र 5
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    श॒तमा॒श्वा हि॑र॒ण्ययाः॑। श॒तं र॒थ्या हि॑र॒ण्ययाः॑। श॒तं कु॒था हि॑र॒ण्ययाः॑। श॒तं नि॒ष्का हि॑र॒ण्ययाः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒तम् । आ॒श्वा: । हि॑र॒ण्यया॑: ॥ श॒तम् । र॒थ्या । हि॑र॒ण्यया॑: ॥ श॒तम् । कु॒था: । हि॑र॒ण्यया॑: ॥ श॒तम् । नि॒ष्का: । हि॑र॒ण्यया॑: ॥१३१.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शतमाश्वा हिरण्ययाः। शतं रथ्या हिरण्ययाः। शतं कुथा हिरण्ययाः। शतं निष्का हिरण्ययाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शतम् । आश्वा: । हिरण्यया: ॥ शतम् । रथ्या । हिरण्यया: ॥ शतम् । कुथा: । हिरण्यया: ॥ शतम् । निष्का: । हिरण्यया: ॥१३१.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (शतम्) सौ (हिरण्ययाः) सुनहरे (आश्वाः) घोड़े हैं। (शतम्) सौ (हिरण्ययाः) सुनहरे (रथ्याः) रथ हैं। (शतम्) सौ (हिरण्ययाः) सुनहरी (कुथाः) हाथी की झूलें हैं। (शतम्) सौ (हिरण्ययाः) सुनहरे (निष्काः) हार हैं ॥॥

    भावार्थ

    मनुष्य पूर्वज विद्वानों के समान विघ्नों को हटाकर अनेक प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त करें ॥१-॥

    टिप्पणी

    −(शतम्) (आश्वाः) स्वार्थे अण्। अश्वाः। तुरगाः (हिरण्ययाः) हिरण्यमयाः। सुवर्णयुक्ताः। तेजोमयाः (शतम्) (रथ्याः) खलगोरथात्। पा० ४।२।०। रथ-य। रथसमूहाः (हिरण्ययाः) (शतम्) (कुथाः) कुथ, कुन्थ संश्लेषणे-अच्। गजपृष्ठस्थचित्रकम्बलाः। (हिरण्ययाः) (शतम्) (निष्काः) निस् निश्चयेन+कै शब्दे-क। उरोभूषणानि। हाराः (हिरण्ययाः) ॥

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    विषय

    'अश्व-रथ्य-कुथ-निष्क'

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र में वर्णित वासना का निवारण करनेवाले वरुण के (शतम्) = शतवर्षपर्यन्त (हिरण्ययाः) = ज्योतिर्मय [हिरण्यं वै ज्योतिः] व हितरमणीय (अश्वाः) = इन्द्रियरूप अश्व होते हैं। (शतम्) = शतवर्षपर्यन्त ये इन्द्रियाश्व (हिरण्ययाः) = वीर्यवान् [हिरण्यं वै वीर्यम्] (रथ्या:) = शरीर-रथ का उत्तमता से वहन करनेवाले होते हैं। २. (शतम्) = शतवर्षपर्यन्त (हिरण्ययाः) = ज्योतिर्मय (कुथाः) = [कुन्थ दीसौ]-ज्ञानदीतियाँ होती है अथवा [कुत्थति हिनस्ति अशोभाम्] शतवर्षपर्यन्त इसका जीवन शोभामय बना रहता है। (शतम्) = शतवर्षपर्यन्त यह (हिरण्ययाः) = ज्योतिर्मय (निष्का:) = ज्ञानरूप कण्ठाभरणोंवाला होता है।

    भावार्थ

    धन का भोगों में व्यय न करके, सद्व्यय करने पर इन्द्रियों प्रकाशमय बनी रहती हैं। ये इन्द्रियों शरीर-रथ का उत्तमता से वहन करती हैं। सब अशोभाओं का निराकरण होकर शोभा की वृद्धि होती है और विविध विज्ञान इसके कण्ठाभारण बनते हैं।

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    भाषार्थ

    (हिरण्ययाः) सुवर्ण-विभूषित (शतम्) सैकड़ों (आश्वाः) अश्वारोही; (हिरण्ययाः) सुवर्ण-विभूषित (शतम्) सैकड़ों (रथ्याः) रथवाही अश्व; (हिरण्ययाः) सुवर्ण-विभूषित (कुथाः) झूलोंवाले (शतम्) सैकड़ों हाथी; (हिरण्ययाः) सुवर्ण-निर्मित (शतम्) सैकड़ों (निष्काः) सिक्के तथा मालाएँ [तस्य अनु यान्ति] उस अर्थात् सांसारिक-भोगों को त्याग देनेवाले के पीछे-पीछे चलते हैं।

    टिप्पणी

    [गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, गुरु नानक, महर्षि दयानन्द, महात्मा गान्धी आदि—जिन्होंने कि सांसारिक भोग त्याग कर प्रजा को उठाया है, उनके नामों पर और उनकी स्मृतियों में उनके अनुयायी सम्पत्तियाँ वारते, और शानदार जलूस निकालते हैं। मन्त्र में ऐसी ही भावनाओं का वर्णन है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Hundreds of golden gifts, horses and warriors, hundreds of chariot gifts of golden grace and beauty, hundreds of elephants decked with gold, hundreds of golden garlands and vessels laden with gold mohurs, these follow and court him. (Refer Yoga-sutras of Patanjali, 2, 37 and 39: If a person is established in renunciation and is free from greed and hoarding, all wealths of the world stand around him to attend and serve. But his choice stands higher and remains firm, for nothing short of divine grace.)

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    Translation

    A man should possess hundred brilliant horses, hundred golden chariots, hundred golden covers of elephant and hundred golden coins.

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    Translation

    A man should possess hundred brilliant horses, hundred golden chariots, hundred golden covers of elephant and hundred golden coins.

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    Translation

    There are hundreds of decorative qualities like the ornaments.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    −(शतम्) (आश्वाः) स्वार्थे अण्। अश्वाः। तुरगाः (हिरण्ययाः) हिरण्यमयाः। सुवर्णयुक्ताः। तेजोमयाः (शतम्) (रथ्याः) खलगोरथात्। पा० ४।२।०। रथ-य। रथसमूहाः (हिरण्ययाः) (शतम्) (कुथाः) कुथ, कुन्थ संश्लेषणे-अच्। गजपृष्ठस्थचित्रकम्बलाः। (हिरण्ययाः) (शतम्) (निष्काः) निस् निश्चयेन+कै शब्दे-क। उरोभूषणानि। हाराः (हिरण्ययाः) ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ঐশ্বর্যপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ

    भाषार्थ

    (শতম্) শত (হিরণ্যযাঃ) তেজোময় (আশ্বাঃ) অশ্ব। (শতম্) শত (হিরণ্যযাঃ) সুবর্ণযুক্ত (রথ্যাঃ) রথ। (শতম্) শত (হিরণ্যযাঃ) সুবর্ণযুক্ত (কুথাঃ) হাতির পৃষ্ঠস্থ চিত্রকম্বল। (শতম্) শত (হিরণ্যযাঃ) সুবর্ণযুক্ত/উজ্জ্বল (নিষ্কাঃ) হার/মালা ॥৫॥

    भावार्थ

    মনুষ্য পূর্বজ বিদ্বানদের মতো বিঘ্নসমূহ দূর করে অনেক প্রকার ঐশ্বর্য প্রাপ্ত করুক॥১-৫॥

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    भाषार्थ

    (হিরণ্যয়াঃ) সুবর্ণ-বিভূষিত (শতম্) শত (আশ্বাঃ) অশ্বারোহী; (হিরণ্যয়াঃ) সুবর্ণ-বিভূষিত (শতম্) শত (রথ্যাঃ) রথবাহী অশ্ব; (হিরণ্যয়াঃ) সুবর্ণ-বিভূষিত (কুথাঃ) দোলনাবিশিষ্ট (শতম্) শত হাতি; (হিরণ্যয়াঃ) সুবর্ণ-নির্মিত (শতম্) শত (নিষ্কাঃ) মুদ্রা তথা মালা [তস্য অনু যান্তি] সেই অর্থাৎ সাংসারিক-ভোগ বর্জনকারীর পেছন-পেছন চলে।

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