Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 131 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 131/ मन्त्र 15
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा छन्दः - याजुषी गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    0

    अर॑दुपरम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अर॑दुपरम् ॥१३१.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अरदुपरम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अरदुपरम् ॥१३१.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (अरदुपरम) हे हिंसा से निवृत्तिवाले ! ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य उचित रीति से भोजन आदि का उपहार वा दान और कर आदि का ग्रहण करके दृढ़चित्त होकर शत्रुओं का नाश करे ॥१२-१६॥

    टिप्पणी

    १−(अरदुपरम) वर्त्तमाने पृषद्बृहन्महज्। उ० २।८४। ऋ हिंसायाम-अति+उप-रम निवृत्तौ-घञ्। हिंसनात् निवृत्तिशील ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अहिंसा-वासनाशून्यता

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार हे ब्रह्मनिष्ठ [अश्वत्थ]! तू (अरत् उपरम) = [ऋto kill]-हिंसा से उपरत हो। किसी भी प्राणी का तू हिंसन करनेवाला न बन। २. (हत: इव) = जिसकी सब वासनाएँ मर गई हैं, ऐसा बना हुआ तू (शय:) = [शी अच्] इस संसार में निवास करनेवाला हो [शेते इति शयः] ३. ऐसे वासनाशुन्य व्यक्ति को (पूरुषः) = वह परम पुरुष प्रभु (व्याप) = विशेष रूप से प्राप्त होता है।

    भावार्थ

    हम हिंसा से निवृत्त हों। वासनाओं को मारकर संसार में पवित्र जीवनवाले बनें। तभी हमें उस परमपुरुष की प्राप्ति होगी।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (अरत्) हे समाधि को प्राप्त हुए उपासक! तू (उपरम) सांसारिक इच्छाओं से पूर्णतया उपरत हो जा। [अरत्=ऋ प्राप्तौ+शतृ।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Risen above existential involvements, come to absolute renunciation and freedom.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O man be free from violence.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O man be free from violence.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    He (God) is Free from attachment of all sorts, like the leaves of an Artoo tree.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(अरदुपरम) वर्त्तमाने पृषद्बृहन्महज्। उ० २।८४। ऋ हिंसायाम-अति+उप-रम निवृत्तौ-घञ्। हिंसनात् निवृत्तिशील ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ঐশ্বর্যপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অরদুপরম) হে হিংসা থেকে নিবৃত্তিকারী/নিবৃত্তিশীল! ॥১৫॥

    भावार्थ

    মনুষ্য উচিত রীতিতে ভোজন আদির উপহার বা দান এবং কর আদি গ্রহণ করে দৃঢ়চিত্ত হয়ে শত্রুদের বিনাশ করুক ॥১২-১৬॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (অরৎ) হে সমাধিপ্রাপ্ত উপাসক! তুমি (উপরম) সাংসারিক ইচ্ছা-সমূহ থেকে পূর্ণরূপে উপরত হয়ে যাও। [অরৎ=ঋ প্রাপ্তৌ+শতৃ।]

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top